ब्लॉगिंग में सब अच्छा हो रहा है…

हिंदी ब्लॉगिंग जगत में गंदगी घुस आई है…जो हो रहा है, वो अच्छा नहीं हो रहा…धर्म को लेकर क्रिया-प्रतिक्रिया में आस्तीनें चढ़ी ही रहती हैं…नाक के सवाल पर एक-दूसरे के मान-मर्दन तक की नौबत…ये क्या हो रहा है…भाई ये क्या हो रहा है…इसी स्थिति से खिन्न होकर कल्पतरू वाले विवेक रस्तोगी जी ने एक हफ्ते तक पोस्ट न लिखने का ऐलान कर दिया…
 
धर्म प्रचार पर हंगामा हो रहा है हमारी ब्लॉग दुनिया में, इसे दूर करें !!!!! विरोध में सात दिन ब्लॉग पर पोस्ट पब्लिश नहीं करुँगा…
 
उड़न तश्तरी वाले गुरुदेव समीर लाल जी समीर ने भी कहा-

ये क्या हो रहा है?
आज कल जो हालात हुए हैं, मजहब के नाम पर जो दंगल मचा है, उसे देख कुछ कहने को मन है:
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है, आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
-समीर लाल ’समीर’


ये तो रही विवेक भाई और समीर जी की बात…लेकिन मैं इससे ठीक उलटा सोच रहा हूं…अपनी बात साफ करने के लिए आज मैं स्लॉग ओवर में कोई गुदगुदाने वाली बात नहीं कहने जा रहा…बल्कि एक महान हस्ती के साथ पेश आया वाकया सुनाने जा रहा हूं…महान हस्ती कौन थीं, जानकर उनका नाम नहीं बता रहा..क्योंकि हर बात को मज़हब के चश्मे से देखने वाले उनके नाम को लेकर ही कोई टंटा न खड़ा कर दें, ये मैं नहीं चाहता…एक बात और संत या सूफी किसी मज़हब या कौम के नहीं होते बल्कि पूरी इंसानियत के लिए होते हैं…
 
स्लॉग ओवर
कई सदियों पहले की बात है…एक सिद्ध पुरुष अपने चेले के साथ भ्रमण पर निकले हुए थे…घूमते-घूमते एक गांव में पहुंचे…वहां पूरा गांव सिद्ध पुरूष की सेवा में जुट गया…कोई एक से बढ़ कर एक पकवान ले आया…कोई हाथ से पंखा झलने लगा…कोई पैर दबाने लगा…किसी ने नरम और सुंदर बिस्तर तैयार कर दिया…सुबह उठे तो फिर वही सेवाभाव…सिद्ध पुरुष का गांव से विदाई लेने का वक्त आ गया…गांव का हर-छोटा बड़ा उन्हें विदा करने के लिए मौजूद था…सिद्ध पुरुष ने गांव वालों के लिए कहा…जाओ तुम सब उजड़ जाओ…यहां से तुम्हारा दाना-पानी उठ जाए…
सिद्ध पुरुष के मुंह से ये बोल सुनकर उनके चेले को बड़ा आश्चर्य हुआ…ये महाराज ने गांव वालों की सज्जनता का कैसा ईनाम दिया लेकिन चेला चुप रहा…गुरु और चेला, दोनों ने फिर चलना शुरू कर दिया…शाम होने से पहले वो एक और गांव में पहुंच गए…
ये गांव क्या था साक्षात नरक था…कोई शराब के नशे में पत्नी को पीट रहा है…कोई जुआ खेलने में लगा है…कोई गालियां बक रहा है…यानि बुराई के मामले में हर कोई सवा सेर…सिद्ध पुरुष को देखकर कुछ गांव वालों ने फब्तियां कसना शुरू कर दिया…ढोंगी महाराज आ गया…सेवा तो दूर किसी ने गांव में पानी तक नहीं पूछा…खैर गांव के पीपल के नीचे ही किसी तरह सिद्ध पुरुष और चेले ने रात बिताई…विदा लेते वक्त सिद्ध पुरुष ने गांव वालों को आशीर्वाद दिया…गांव में तुम सब फूलो-फलो…यहीं दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करो…यहीं तुम्हे जीवन की सारी खुशियां मिलें…
चेला वहां तो चुप रहा लेकिन गांव की सीमा से बाहर आते-आते अपने को रोक नहीं पाया…बोला…महाराज ये कहां का इंसाफ है…जिन गांव वालो ने सेवा में दिन-रात
एक कर दिया, उन्हें तो आपने उजड़ने की बद-दुआ दी और जो गांव वाले दुष्टता की सारी हदें पार कर गए, उन्हें आपने वहीं फलने-फूलने और खुशहाल ढंग से बसे रहने का आशीर्वाद दे दिया…

ये सुनने के बाद सिद्ध-पुरुष मुस्कुरा कर बोले…सज्जनों में से हर कोई जहां भी उज़ड़ कर जाएगा, वो उसी जगह को चमन बना देगा…और इन दुर्जनों में से कोई भी स्वर्ग जैसी जगह भी पहुंचेगा तो उसे नरक बना देगा…इसलिए अच्छा यही है कि वो जहां है, वहीं बसे रहे…इससे और दूसरी जगह तो बर्बाद होने से बची रहेंगी…