आज जोकर के पिटारे में बहुत कुछ है…थोड़ा विचार…थोड़ी खबर…थोड़ा गाना-बजाना, थोड़ा हंसना-हंसाना…यानि चांद पर मक्खन और ढक्कन ने कॉकटेल का पूरा इंतज़ाम कर लिया है…
तो सबसे पहले थोड़ा विचार…देश की आज़ादी का और कुछ लाभ हो न हो, हमने बढ़-चढ़ कर बोलना ज़रूर सीख लिया है…आज़ादी के 63 सालों में बस 1975 में इमरजेंसी के नाम पर थोड़े वक्त के लिए काला दौर आया, जब बोलने की आज़ादी छीन ली गई थी…तब हुक्मरान को जो पसंद था, वही आप बोल सकते थे…कोई ज़रा इधर से उधर बोला नहीं कि जेल में ठूंस दिया गया…शुक्र है वो दौर लंबा नहीं चला…उस वक्त के हुक्मरान को नसीहत के साथ समझ भी मिल गई कि लोकतंत्र को कुचलने का क्या अंजाम हो सकता है…
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है…ब्लॉगिंग पांचवां स्तंभ बनने की दिशा में है…हम सभी चाहते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना रहे…हमारी आवाज़ का कोई गला न घोंटे…फिर ब्लॉगिंग में यही सिद्धांत हम क्यों नहीं मानते…मैं तुझे पंत कहूं, तू मुझे निराला वाली परिपाटी रचनाकर्म का कितना भला कर सकती है…ये ठीक है कि ब्लागिंग को बेनामियों की बेजा हरकतों से बचने के लिए मॉडरेशन का कवच मिला हुआ है…लेकिन इस कवच का इस्तेमाल अगर मीठा-मीठा गप-गप और कड़वा-कड़वा थू-थू की तर्ज़ पर किया जाए तो ये ब्लॉगिंग का कौन सा विकास कर सकता है…अगर कोई अश्लील टिप्पणी, गाली-गुफ्तार, देशद्रोह, संविधान विरोधी, किसी दूसरे ब्लॉगर को निशाना बनाने, दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने, वैमनस्य फैलाने वाली बातें लिखता है तो आपको पूरा हक़ बनता है कि कमेंट मॉडरेट करते वक्त बेरहमी से उस टिप्पणी का कत्ल कर दें…लेकिन यही काम सिर्फ इसलिए किया जाए कि दूसरा आपकी लाइन से कुछ अलग विचार व्यक्त कर रहा है…उसे मतभेद की जगह मनभेद मान लिया जाए तो मामला गड़बड़ है…और हद तो तब है कि आप मॉडरेशन से ग्रीन सिगनल देकर किसी टिप्पणी को प्रकाशित कर दें…और फिर वो टिप्पणी आपकी पोस्ट पर किरकिरी की तरह आंख में चुभने लगे तो कुछ देर बाद उसे हलाल कर दिया जाए…पहली नज़र में ही ये काम क्यों नहीं किया जाता… कोई दूसरा टिप्पणी में अपनी योग्यता अनुसार विचार व्यक्त करता है, मेहनत करता है, वक्त खपाता है और फिर कोई गले में न पचने वाला तर्क देकर उस मेहनत पर पानी फेर दिया जाए, निश्चित रूप से आहत करने वाला है…
जहां तक मेरा सवाल है मैं कभी भी मॉडरेशन के हक़ में नहीं रहा…मेरा ब्लॉग हमेशा खुली किताब रहा है…कोई भी जब चाहे, जैसे चाहे दस्तखत कर सकता है…हां, मर्यादित भाषा का इस्तेमाल न होने पर ज़रूर उस टिप्पणी को हटा देता हूं…रहा आलोचना का सवाल तो फूलों की बरसात का आनंद लेता हूं तो साथ ही पत्थर खाने का हौसला भी रखता हूं…मेरी खामियां ढूंढिए, बुरा-भला कहिए, मुझे कोई परहेज़ नहीं, बल्कि मुझे तो जहां अपने से अलग कोई दूसरी राय टिप्पणी के तौर पर दिखती है तो मैं ब्लॉगिंग के उद्देश्य को सफल मानता हूं…ज़ाहिर है हर इनसान की अपनी सोच है, अपना नज़रिया है…उसका सम्मान किया जाना चाहिए…
अरे बाबा ये विचार तो द्रौपदी की साड़ी की तरह खिंचता ही चला जा रहा है…चलिए इस पर यहीं विराम लगाइए…अब आता हूं खबर पर….
ख़बर हरियाणा के यमुनानगर से है…देश में करोड़ों लोग रोज आधे पेट सोने को मजबूर होते हैं…अनाज की महंगाई ने गरीब तो गरीब मध्यम वर्ग की भी कमर तोड़ रखी है…अब उसी अनाज का हमारे सरकारी अधिकारी क्या हश्र करते है, इसकी नायाब मिसाल यमुनानगर में मिली…वहां जिला आयुक्त ने एक सरकारी गोदाम पर छापे के दौरान जो नज़ारा देखा, आंखें खुली की खुली रह गईं…गोदाम में खाद्य आपूर्ति विभाग के ही दो इंस्पेक्टरों ने शराब की महफिल सजा रखी थी…साथ ही गेहूं की बोरियों पर बड़े पाइपों से पानी डाला जा रहा था…मकसद यही था कि गेहूं का गीला होने से वजन बढ़ जाए और फिर क्विंटलों के हिसाब से स्टॉक में हेराफेरी की जा सके…अब ये हुनर न दिखाया जाए तो शराब और अय्याशी की महफिलें कैसे सजें…दोनों इंस्पेक्टरों को निलंबित कर दिया गया है…कुछ गारंटी नहीं कि उन्हें सख्त सज़ा मिलती भी है या नहीं, या फिर चांदी के जूते के बल पर जल्दी ही दोनों छुट्टे घूमने लगे और फिर पुराने ढर्रे पर लौट आएं…वाकई मेरे भारत महान के महान अधिकारी हैं ये दोनों…
अब गाना बजाना…ये गाना भी हमेशा मेरे दिल के बहुत करीब रहा है…
क्या मिलिए ऐसे लोगों से, जिनकी फितरत छिपी रहे
नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छिपी रहे….
आखिर में हंसना-हंसाना
स्लॉग ओवर
मक्खन-ढक्कन टाइप के एक बंदे का ऊपर का टिकट कट गया…सीधे नर्क में एंट्री मिली…नर्क में जनाब को अपनी पत्नी की याद आई…यमराज से गुहार लगाई…क्या मैं घर फोन कर सकता हूं और इसके लिए मुझे कितना भुगतान करना होगा…यमराज ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और फिर फोन की अनुमति दे दी…साथ ही कहा…
एक नर्क से दूसरे नर्क में आउटगोइंग कॉल फ्री है…
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बहुत बढिया पोस्ट पढवाई आपने ।
कारण 1. जो प्रश्न और आपत्तियां मेरे मन में इस माडरेशन प्रक्रिया के खिलाफ चल रही थी वही मेरे इस क्षेत्र में सक्रिय होने के पूर्व ही आप न सिर्फ दे चुके थे बल्कि मीठा मीठा गप और कडवा कडवा थू जैसे शब्द भी यहाँ आलरेडी मौजूद लग रहे हैं । इसके अलावा इस क्षेत्र में आपकी पूर्व लोकप्रियता के चलते इस माडरेशन प्रणाली के पक्ष में भी जितने विचार यहाँ पढने को मिले वे मुझे अपने ब्लाग पर मिल पावेंगे ऐसी खुशफहमी भी मुझे नहीं है ।
कारण 2. मेरा भारत महान में दारु का खर्च जुटाने के लिये उन अफसरों की कारगुजारी मेरी जानकारी में नहीं थी ।
कारण 3. स्लाग ओवर तो मजेदार रहा ही है । गुरुदेव भी इसकी मुक्तकंठ प्रशंसा करते दिख रहे हैं ।
शायद इसी लेख के तत्काल बाद आपके पिताश्री के अवसान की दुःखद स्थिति आपके जीवन में देखने को मिली थी । जब मैं ये समझने की कोशिश कर रहा था कि हिन्दी ब्लाग जगत की ये दुनिया कैसे चल रही है और मैं इसमें कैसे प्रविष्ट हो सकता हूँ ।
आभार आपका इस लेख तक मुझे पहुंचाने के लिये । जय हिंद…
very good Khushdeep darling, lage raho.
माफ़ करना खुशदीप भैय्ये,
कल इधर को नहीं आया, और अभी टिप्पणी करने का समय नहीं है,
मैंनें अपने विरोध या असहमति के तर्क को एक जगह कल ही लिख रखा है, वही यहाँ ठोंक देता हूँ,
यह मेरा सैद्धान्तिक मामला है, मैं यानि
कि तीसरी दुनिया का एक आम आदमी
इस प्रयोजन में एक अभिजात्य दूरी देखता है
कँधे पर झोले और भर-चेहरा दाढ़ी की भाषा में
a bourgeon priviledge to keep away masses
मेरी क्लीनसेव्ड समझ इसे एक अभिजातिक अछूतवाद मानती है
बहुत से होंगे नकाबपोश विकृत मानसिकता के गरियाते व्यक्तित्व
पर वह इसी समाज के अँग हैं, हमारे ब्लॉगवुड के स्लॅम-निवासी
यदि आप इनसे असहमत हैं, तो भी इन्हें अपनी जगह पड़े रहने दीजिये,
इनका गला मत घोँटिये, डॉ. दिव्या.. ठग और पिंडारी किस युग में नहीं थे ?
लगता है, मैं बोझिल होता जा रहा हूँ.. सो,
कल घर से निकलने से लेकर घर लौटने तक 672 गालियों की आवाज़ मेरे कानों में आयी थीं
और मैनें भी एक-डेढ़ दर्जन गालियाँ तो निकाली ही होंगी, क्योंकि इन सड़कों पर मुझे भी जीना है
चील्लर के डरे भगवा कहाँ तक लुकायें ?
( यह तिरहुतिया कहावत है, भावार्थ "चीलर लगने के डर से लँगोट छिपा कर रखने का क्या तुक है ?" )
रही बात ब्लॉगमालिक के अधिकार की…
तो यह मुफ़्त आउटगोईंग काल को जबरन काल डाइवर्ट पर लगाने जैसी बात है ।
मैंनें सालाना किराया देते हुये भी अपने स्वयँ के साइट पर ऎसा कोई प्रयोजन नहीं रखा, जबकि वर्डप्रेस प्लेटफ़ार्म पर ’बाई डिफ़ाल्ट’ मॉडरेशन लगा हुआ है, और इसे डिसेबल करना होता है । चाहूँ तो मैं भी ’उम्दा लेखन’.. ’उत्तम-विचा्र’…’आप तो छा गये’ जैसी टिप्पणियों को कत्ल कर दूँ, और एक वज़नी तर्क चस्पॉ कर दूँ कि "मुझे केवल आलोचनात्मक टिप्पणियाँ ग्राह्य हैं, कृपया यहाँ प्रशँसात्मक टिप्पणियाँ न मढ़ें !"
हद तो तब है जब अपने अपने अहँकारों को लेकर आगे बढ़ते लोग, अपने को कुत्ते-बिल्लियों के मध्य जीने को मज़बूर बताते हैं । बलिदान के नाम पर पाखँड की बलिवेदी पर हम सब धीरे-धीरे रेते जाने वाले कुत्ते-बिल्लियाँ हैं, जिबह होने की छटपटाहट को बलपूर्वक रोकने के लिये जिस्म पर रोपा हुआ कसाई का घुटना मॉडरेशन है, क्योंकि हमारी कुर्बानी जनहित में की जा रही है । तू इतना ढोंग भी नहीं पहचानता, कैसा पत्रकार है रे, तू ?
फ़्रि काल हे जी…. लेकिन वो आदमी भारत का नही पडोसी देश का था 🙂
यहाँ सब कुछ फ्री है ।
aaccha hai ki dipression sai bahar aa kar kuch aaccha likha .
दूसरी समस्या ये है की कई बार पोस्ट से अलग विचार रखने वाले के टिप्पणी की भाषा इस तरह की होती है जो व्यक्तिगत रूप से कटाक्ष करने वाली होती है | how right u r anshumala
khushdeep
if our comment is moderated its the owners right
i moderate many comments because i want to promote woman empowerment and i get maximum comments against it i dont want to go into any discussions on this as it as its 3 years almost since the naari blog came into existence
those people who are against woman empowerment can write a post on their blog and trash my post with a link but that does not happen what happens is that people want to write comments on my post which spoils the total readership of the post
now i have a question
many blogs have moderation and yet they permit all the comments which have filth against someone why ??? what is the point in having the moderation . in this case the moderation is selective so that the b;log owner does not want to give the chance to "target" to comment
i am in favor of moderation and i dont grudge if someone deletes my comment
i always save the comment and publish it with link on one of my blogs which is solely for this purpose
`मैं तुझे पंत कहूं, तू मुझे निराला….'
मैं पंत हू या निराला? ताकि अपको सम्बोधित करते में सहुलियत रहेगी:)
स्लाग ओवर पढ कर हंसते हुये कमेन्ट ही भूल गयी दोबारा पोस्ट पढी। हम तो आज़ाद भारत मे रहते हैं हमने भी माडरेशन नही लगायी। शायद बेनामी को हम पर तरस आता है कि इसे तो कमेन्ट हटाना भी नही आयेगा बेचारी बुढिया पर रहम करो। धन्यवाद बेनामी जी। शुभकामनायें
moderation की अपनी अहमियत है..
घर में भी लोग दरवाज़े, परदे लगाते हैं…. इसलिए नहीं कि कुछ छुपाया जा रहा है….बल्कि इसलिए कि हर आने जाने वाले को पता हो कि उनकी सीमा कहाँ तक है…अब अगर कोई इसे 'वाह-वाही' टूल समझता है, तो समझता रहे…सान्नू की..!
हाँ नहीं तो..!!
समस्या ये है की यहाँ पर मेरे ही विचार सबसे सही है बाकि सब बकवास की सोच ज्यादा है इसलिए जैसे ही आप पोस्ट से कुछ अलग विचार रखते है आप को कोई ना कोई वादी बना दिया जाता है ज्यादातर लोग सिर्फ वाह वाह की ही चाह रखते है | दूसरी समस्या ये है की कई बार पोस्ट से अलग विचार रखने वाले के टिप्पणी की भाषा इस तरह की होती है जो व्यक्तिगत रूप से कटाक्ष करने वाली होती है | क्योकि ज्यादातर की सोच ये होती है की ऐसी टिप्पणी दूंगा की बोलती बंद हो जाएगी | मै चाहे जितना बोलू पर दूसरे की बोलती बंद कर दूंगा |
आज तो बहुत कुछ समेट लिया एक ही पोस्ट में…कई रंग देखने को मिले…और हर रंग शानदार…
एक उम्दा पोस्ट
स्लाग ओवर अच्छा लगा…………बाकी दी गल्लां छ्डो दिल साफ़ होना चाहिदा……………………।
बाप रे ..आज तो बहुत कुछ कह दिया ..वो भी ढका छुपा के :).स्लोग ओवर बढ़िया लगा .
यदि हम एक दूसरे के अलग नजरिये को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो कैसा लोकतंत्र …
गीत तो अच्छा है ही …हम हर कदम पर ऐसे लोगों से मिलते हैं …
घर से नरक की तुलना …बुरी बात …उनसे पूछिये जिनका घर नहीं होता …मगर मजाक है तो कोई बात नहीं ..:)
सही कहा जी अपने से अलग राय वाली टिप्पणियों से ही तो हम अपने अन्दर झांक पाते हैं और विषय पर गहरा विचार कर पाते हैं।
अकेले-अकेले मजे लूट रहे थे दोनों इंसपेक्टर, छापा मारने वाले अफसरों का गला तर नहीं किया गया होगा।
प्रणाम
slogover ha ha ha ha ha ha ha 🙂
बढ़िया पोस्ट लिखी। स्लॉगओवर बहुत बढ़िया लगा।;)
achhe aur suljhe vichar……
pranam.
मॉडरेशन के खिलाफ़ मैं भी था और हूं, लेकिन मजबूरीवश लगा रखा है… आप पूछेंगे कि मजबूरी कैसी? वो ऐसी कि मेरे ब्लॉग का उपयोग कोई अपनी धार्मिक सड़ी-सड़ाई लिंक्स पेलने के लिये ना करे इसलिये…
मैंने मोडरेशन लगाने के कारण, बेनामी टिप्पणी की सुविधा बढ़ा दी है, अब कई बार बेनामी भी बड़ी सारगर्भित टिप्पणी कर जाते हैं… फ़िर भी मैं दिल से मॉडरेशन के खिलाफ़ हूं…
@सतीश भाई,
फूल आहिस्ता फेंकों,
फूल बड़े नाज़ुक होते हैं,
वैसे भी तो हम बदकिस्मत.
सेज पे कांटों की सोते हैं…
जय हिंद…
"वे शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फ़ेंक गए
हम समझ नही पाए, हमको
क्यों मारा ? इस बेदर्दी से ,
हम चोटें लेकर भी दिल पर, अरमान लगाये बैठे हैं !
वे नफरत बांटे इस जग में हम प्यार लुटाने बैठे हैं "
खुशदीप भाई, मैं भी मोडरेशन के सख्त खिलाफ हूँ। आप यहाँ लोगों के विचार आमंत्रित कर रहे हैं या अपने विचारों की पुष्टि करा रहे हैं? कहीं कोई अभद्रता करता भी है तो उसे आप ब्लाक कर दें। मोडरेशन करने पर भी आपने तो उसकी अभद्र टिप्पणी पढ़ ही ली और वह आपका ही मानसिकत संतुलन बिगाड़ना चाह रहा था तो आपको क्या फायदा हुआ? मेरी नजर में किसी भी विचारवान व्यक्ति के लिए अपमानजनक स्थिति है कि उसके विचार को पहले पढ़ा जाएगा फिर स्वीकृति प्राप्त होगी।
@दराल सर,
हमने हर गम को सीने से लगा रखा है,
राख़ के ढेर में शोलों को दबा रखा है…
जय हिंद…
ऑल इन वन पोस्ट । लेकिन राज़ तो राज़ ही रह गया ।
आपकी बात से सौ फीसदी सहमत हूँ. बल्कि मोडरेशन की जगह अभद्र टिपण्णी को हटा देना ही अच्छा विकल्प समझता हूँ, अगर कोई व्यस्त है तो मोडरेशन में भी कोई परेशानी नहीं है. लेकिन यह केवल अभद्र टिप्पणियों के लिए ही हो तभी सही है. संयमित भाषा में की गई आलोचनाओ से क्या डरना, वही तो ताकत बनती हैं, वर्ना झूटी वाह-वाह इंसान में केवल दंभ ही पैदा करती है.
जनाब तेवर में हैं आज 🙂
स्लॉगओवर में आनन्द आ गया..हा हा!!
उम्दा पोस्ट.
Aapke different moods dekhane ko mile……..
sharmnak hakeekat Yamunanagar kee…….aur inspector……..kya kiya jae aisee mansikta ka………..kaise line par aaenge…….bhrusht officer………?
bahut bhareepan chod jatee hai aisee vaardate………
राजीव भाई, कुछ राज़ राज़ बने रहे तो ही अच्छा है …….. हम लोगो को खुशदीप भाई के फैसले का सम्मान करते हुए यह बात उन पर ही छोडनी चाहिए कि वह क्या बताना चाहते है और क्या नहीं !
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो…
क्या गम है जो छिपा रहे हो?..
विचारणीय पोस्ट के साथ-साथ स्लोग ओवर भी बढ़िया रहा
(आपसे अनुरोध है कि ऊपर कही गई बात पे गौर फरमाते हुए सब कुछ साफ़-साफ़ बयाँ किया जाए)