बुल्ला कि जाणां मैं कौन…खुशदीप

बेशक मंदिर मस्जिद तोड़ो,
बुल्ले शाह ये कहता,
पर प्यार भरा दिल कभी ना तोड़ो,
जिस दिल में दिलबर रहता…

बचपन में जब भी ये गाना सुनता था तो सोचा करता था कि ये बुल्ले शाह कौन हैं…जो मंदिर-मस्जिद को तोड़ने की बात करते हैं….बॉबी फिल्म के लिए ये गाना इंद्रजीत सिंह तुलसी ने प्रेमिका का दिल टूटने की सिचुएशन के लिए लिखा था…लेकिन बुल्ले शाह ने हक़ीक़त में जो  कहा  था, उसका कैनवास बहुत बड़ा है…उनके मुताबिक….

मस्जिद ढा दे, मंदिर ढा दे,
ढा दे जो कुज दिसदा,
पर किसे दा दिल ना ढावीं,
रब दिल्‍लां विच वसदा…

(अर्थात…मस्जिद गिरा दो, मंदिर गिरा दो, जो कुछ भी दिखता है उसे गिरा दो, पर उस दिल को कभी मत चोट पहुंचाना, जिस दिल में रब बसता है)

दिल में बसने वाले इस रब का अर्थ बहुत व्यापक है…चाहो तो इसे अल्लाह मान लो…चाहो तो इसे ईश्वर मान लो…लेकिन मैं इस रब को भरोसा मानता हूं…भरोसा जो एक इनसान का दूसरे इनसान पर होता है…प्यार भी इसी भरोसे का दूसरा नाम है…भरोसा सिर्फ स्त्री-पुरूष के आत्मीय संबंधों तक ही सीमित नहीं किया जा सकता…भरोसा दूसरे रिश्तों में भी होता है…दोस्ती में भी होता है…गुरु-शिष्य में भी होता है…मालिक-नौकर में भी होता है…

आप ये मानकर चलते हैं कि जिसे आप भरोसे लायक मानते हैं, वो हमेशा आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा…लेकिन वही शख्स जब आपके भरोसे को तोड़ता है तो कलेजे को सबसे ज़्यादा चोट पहुंचती है…जिन पर आप भरोसा नहीं करते, वो कैसा भी सितम ढाएं, आप दिल पर नहीं लगाते…मगर जिसे बरसों से आप अपना समझ रहे हों, वो अंदर से कुछ और निकले, ये हक़ीक़त आपके दिल को नश्तर की तरह चीर देती है…

बुल्ले शाह

बुल्ले शाह इसी भरोसे को रब बताते हुए सबसे ऊपर होने की बात करते हैं…उसे किसी भी कीमत पर न टूटने की दुहाई देते हैं…दूसरे के जज़्बातों की कद्र करने की सीख देते हैं…लेकिन हम कई बार खुद को इतना ऊंचा समझने लगते हैं कि दूसरों को हद में रहने की नसीहत देने लगते हैं…ये हद आखिर है क्या…क्या ऊपर वाले ने हमे जब दुनिया में भेजा था तो किसी हद में बांध कर भेजा था…पैसा, रूतबा, ओहदा सब छलावा है…इस दुनिया का दिया है, इस दुनिया में ही रह जाना है…सिर्फ इसके चलते अपनी हद को दूसरे इनसान से ऊपर मान लेना नादानी है…लेकिन इनसान ये सब जानते हुए भी अहंकार के घोड़े से नीचे नहीं उतरना चाहता…उतरता तभी है जब ऊपर वाला उसे पटक देता है…फिर उसे अपने किए बर्ताव का अहसास भी होता है तो बहुत देर हो चुकी होती है…

बुल्ला कि जाणां मैं कौन…