मैंने कल श्री श्री रविशंकर के ज़रिए सरकार के हरकत में आने का अपनी पोस्ट में ज़िक्र किया था…फेस सेविंग के लिए दूसरी तरफ़ से भी रास्ता ढूंढा जा रहा था…चलिए अंत भला तो सब भला…सरकार भी खुश, बाबा जी का खेमा भी खुश…वैसे समझौता तो सरकार और बाबा के बीच चार जून को ही हो गया था…जिसका सबूत बालकृष्ण जी की चिट्ठी के तौर पर पूरा देश देख चुका है…
अब ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा इस प्रकरण के प्लस और माइनस प्वाइंट क्या रहे…बाबा रामदेव का कद बढ़ा या उनका कारोबारी चेहरा जनता के सामने बेनकाब हुआ…चलिए जो हुआ सो हुआ, लेकिन इस पूरी खींचतान के दौरान बहुत कुछ बढ़िया और पढ़ने को मिला…मेरी समझ से सबसे बेहतरीन लिखा सृजन और सरोकार के रवि कुमार जी ने अपनी इस पोस्ट में—
अ..अ..अनुलोम कर रहे थे, बस जरा सा व..वि..विलोम हो गया
स्लॉग ओवर
सदी का सबसे बड़ा ज़ोक…
देहरादून के अस्पताल में बाबा रामदेव से पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओमप्रकाश चौटाला (हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री) मिले और बाबा की सेहत के बारे में जाना। उन्होंने बताया कि वो बाबा रामदेव के साथ हैं, काला धन और भ्रष्टाचार देश का सबसे बड़ा मसला है, पूरा देश चाहता है कि ये काला धन देश में आए और गरीब लोगों के लिए उपयोग में लाया जाए…
बादल जी और चौटाला जी !
भ्रष्टाचार को लेकर आपकी चिंता, ईमानदारी और देशभक्ति को शत-शत नमन…
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बाबा जी बाहर आ गये .. चलो एक मुद्दा तो ख़त्म हुवा … बाकी आपके स्लॉग ओवर का सिक्सर निशाने पर लगा है …
achchhi post…
ब्लॉग जगत के जिस शख्स ने हमारीवाणी.कॉम का नामकरण किया था उससे पहले उसने ही हमारीअंजुमन.कॉम का भी नामकरण किया था.
धनोअ जी मुफ्त ईलाज? क्या आपने करवाया? इतनी मंहगी दवायें और इलाज है उनका हम जा चुके हैं वहाँ। योग सिखा कर तो वो अपनी ग्राहक इकट्ठे करते थे वो तो मुफ्त सिखाई जाने वाली विधा योग के शिविर भी मुफ्त नही लगाते थे? वाकई रचना जी ने सही कहा चाण्क्यनिती लेकिन चान्क्य जैसा आचरन नही रख सके। शुभकामनायें। डाक्टर अमर जी आप अमर रहें हम भी आपके साथ हैं।
कारोबारी चेहरा जनता के सामने बेनकाब हुआ. जितने भ्रष्टाचारी सब बाबा के साथ हो लिये शायद उन्हें लगने लगा था कि बाबा जरूर सरकार को गिरा देंगे। मुझे उमीद थी आज की पोस्ट मे तुम उस का ज़िक्र करोगे जो 74 दिन अनशन पर बैठे रहेऔर किसी ने नही पूछा और उनकी मौत हो गयी, मुद्दा गम्गा प्रदूशण का था
और उसी जगह दाखिल थे जहाँ बाबा राम देव निशंक जी का प्रेम उनके लिये क्यों नही उमडा न बीजेपी का जो हिन्दू संस्कृ्ति का ठेका लिये फिरती है और न ही मीडिया का। क्या कारण हुया इस पर भी अपने विचार देना। मीडिया सरकार की अनदेखी की बात करता है उसने क्यों नही इस संत को पूछा या सब के सामने लाये?भारतीय नागरिक ने सही कहा है भ्रष्टाचार उतना बडा मुद्दा नही जितना इसके पीछे खडे लोग। बादल और चौटाला कितने ईमानदार हैं कि से छिपा है?शुभकामनायें
जिसका काज उसी को साझे…
चौटाला जी और बादल जी के जाने का अर्थ यह भी हो सकता है कि उनके पास विदेशों में पैसा नहीं है। जिनके पास हैं वे ही चिल्ल-पौ मचा रहे हैं कि बाबा को बदनाम करो और हमें सुखी रहने दो। आपने यह नहीं पूछा कि मेडम सोनिया वर्तमान में कहाँ हैं? यह इस देश का सबसे बड़ा जोक नहीं है कि देश इतना उद्वेलित है और माँ बेटे का देश में पता नहीं? क्या पत्रकार इसपर भी प्रकाश डालेंगे?
बुद्धिजीवी शोक मना रहे हैं और भ्रष्टाचार के जोंक मुद्दे को जोक बना रहे हैं।
भारतीय नागरिक और डॉ अमर कुमार की टिप्पणियों की पूरकता अच्छी लगी। जमालघोटा खाकर क्षत्रिय बनने वालों को जय राम जी की!
लोग सब समझते ही हैं…
फिर भी तात्कालिक हितार्थों में जानबूझकर भ्रम को ओढ़े रहना समसामयिक अभिशप्तता है…
खैर जी…
ये अपनी समझ का तमगा हमारे माथे चढ़ाए दिए हैं…लगता है अगला अनशन उल्टेलाल जी की जगह हमसे कराना चाह रहे हैं… 🙂
अंत भला तो सब भला
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बढ़िया पटाक्षेप पोस्ट …
शुक्रिया खुशदीप भाई !
बादल जी और चौटाला जी की चिंता देख कर आँख नम हो आई…:)
अंत तो हो गया अब भला हो तो कुछ बात है.
बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता हुआ यह घटनाक्रम।
बहुत बढ़िया!
badhiya post !
भ्रष्ट्राचार के खिलाफ़ तो लड़ना ही होगा।
बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता हुआ यह घटनाक्रम।
आखिरकार सरकार ने भ्रष्टाचारियों का खुलेआम समर्थन किया और अब यह तय है कि सरकार की इच्छाशक्ति भ्रष्टाचार मिटाने में नहीं है। तो अब क्या आम आदमी को भ्रष्टाचारियों की पिटाई शुरु कर देना चाहिये, क्या यह आने वाले गृहयुद्ध का बीज है ?
.तेरहवीं टिप्पणी 🙁
हमारे बाबा ने जूस पी लिया…..और, बाबा बन गये हीरॊ ?
जब मुझे यह याद आता है कि While in jail, Bhagat Singh and other prisoners launched a hunger strike advocating for the rights of prisoners and those facing trial. The reason for the strike was that British murderers and thieves were treated better than Indian political prisoners, who, by law, were meant to be given better rights. The aims in their strike were to ensure a decent standard of food for political prisoners, the availability of books and a daily newspaper, as well as better clothing and the supply of toiletry necessities and other hygienic necessities. He also demanded that political prisoners should not be forced to do any labour or undignified work.During this hunger strike that lasted 63 days and ended with the British succumbing to his wishes, he gained much popularity among the common Indians.". तो मुझे अनायास रोना आ जाता है !
गाँधी जी डँडे खाते रहे, और पुनः पुनः उठ कर नमक बनाते रहे…. ऎसा उनका सत्याग्रह था । आख़िर उनमें क्या ऎसा था कि उन्हें भाग कर प्राणरक्षा की नहीं सूझी । उनको भी देश के लिये जीना था ! जनता को सुरक्षा का विश्वास दिलाने हेतु वह नोआखाली की रक्तरँजित गलियों में अकेले घूमते रहे… न जाने क्यों उन्हें अपनी हत्या की साज़िश से डर नहीं लगा ।
और तो और कैसा सिरफिरा था यतीन्द्र नाथ दास, जिसने भारतीय कैदियों को समान अधिकार दिलाने के लिये अपने प्राणों की बलि दे दी ।" In the Lahore jail, Jatin Das started a hunger strike along with other revolutionary fighters, demanding equality for Indian prisoners and undertrials. The conditions of Indian inhabitants of the jails was deplorable-the jail uniforms that they were provided with were not washed since several days, the kitchen area and the food was covered with rats and cockroaches, they were not provided with any reading material-no newspapers, no paper, while the condition of the English prisoners in the same jail was strikingly different.
The memorable hunger strike started on 13 July 1929 and lasted 63 days.The jail authority took many measures to forcibly feed Jatin Das and the other freedom fighters, beat them and did not even provide them with drinking water.[3] However, Jatindra did not eat. He died, hunger strike unbroken, on 13 September. स्वतँत्रता सँग्राम के इतिहास का यह पहला अनशन था… इसी नज़ीर से अँग्रेज़ गाँधी के आमरण अनशन से खौफ़ खाने लगे थे ।
पर, हमारे हमारे बाबा ने जूस पी लिया !
ईश्वर उन्हें दीर्घायु करे, मेरी ऎसी कोई मँशा नहीं है कि बाबा वीरगति को प्राप्त हो जायें, उन्हें मेरी उमर लग जाये । पर, उपरोक्त सँदर्भ मैंनें नेतृत्व का उत्कर्ष और इच्छाशक्ति का परम दर्शाने हेतु दिया है ।
टिप्पणी के लिये ढेर सा स्पेस घेरने के लिये क्षमा करना, खुशदीप भइय्ये !
आजकल ब्लॉगर पर मैं काँग्रेसी एज़ेन्ट कहा जाने लगा हूँ 🙂
जमाल साहब
जब
क्षत्रियोचित्त भोजन करने वाले लोग कंम्पयूटर पर ची ची करते रहेँगे.
तब 15 साल से अन्न त्यागे और फलाहार पे निर्भर योगी को ही आगे आना पड़ेगा.
सबसे बड़ा जोक
" 70 करोड़ से ज्यादा लोग डेली 20 रु पर निर्भर है. और अपने को सिँह बताने वाले प्रधानमंत्री कह रहे है.
" हो रहा भारत निर्माण
"
लगता है अब खच्चर अपने नाम के आगे सिँह लगाने लगे है.
अब जब कि बाबा ने खाना पीना शुरू कर ही दिया है और एक क्षत्रिय की तरह उन्होंने अंतिम साँस तक लड़ने का ऐलान भी कर दिया है तो हालात का तक़ाज़ा है कि या तो वे पी. टी. ऊषा को अपना कोच बना लें या फिर क्षत्रियों की तरह वीरोचित भोजन ग्रहण करना शुरू कर दें ।
क्या आदमी को बुज़दिल बना देता है लौकी का जूस ?
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बी पी ऊपर नीचे करना और सांस रोकना तो हर योगी को आता हैं यही होती हैं "चाणक्य नीति "
बाबा एक नेक दिल इंसान है मेरी नजर मे …जो इंसान लाखो लोगो को मुफ्त में बीमारियों का इलाज बताता है मेरी निगाहों में वो खुदा के दूत जेसा है …
एक अध्याय समाप्त हुआ। लेकिन लड़ाई जारी रहेगी। इस लड़ाई में भ्रष्टाचार से व्यथित देश का श्रमजीवी जनगण सम्मिलित नहीं होगा इसे अपने अंजाम तक पहुँचाना संभव नहीं होगा। यदि नेतृत्व श्रमजीवी जनगण के हाथों नहीं हुआ तो यह संघर्ष फिर बेकार चला जाएगा। क्यों कि तब फिर से भ्रष्टाचार पनपेगा। सब से जरूरी है संघर्ष की मुख्य ताकत श्रमजीवी जनगण होना और नेतृत्व भी उन के हाथों होना।
वास्तव में इससे बड़ा कोई जोग हो ही नहीं सकता हैं … ये नेता तो वहां वाह वाही लूटने गए थे की चलो यार बहती गंगा में अपुन भी हाथ धो ले… शायद ईमानदारी का ठप्पा लग जाये …
आंदोलन अंतिम सांस तक लड़ा जाना चाहिए ..
अंत भला तो सब भला…
यह तो सबसे बड़ा जोक है ही, इसके साथ यह और भी बड़ा जोक है कि किसी पार्टी से हमारे मीडियावीर लेखा जोखा पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाये. किसी नेता से हिसाब नहीं मांग पाये. सुशील को मारने वाले पत्रकारों से किसी ने नहीं पूछा कि ये कैसा लोकतन्त्र. किसी चैनल वाले वीर एंकर ने अपने चैनल की कमाई के बारे में नहीं बताया. नैतिकता का दावा करने वाले चैनल आधी रात में जैसे विज्ञापन दिखाते हैं शायद वह उनकी नैतिकता में आते होंगे. भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं है, उसके खिलाफ खड़ा हुआ आदमी मुद्दा है.
बादल जी और चौटाला जी द्वारा काले धन को लाने का समर्थन करना वाकई सदी का सबसे बड़ा ज़ोक है | दोनों के पास कितना काला,पीला,सफ़ेद धन है शायद इनको खुद ही पता नहीं होगा ?