बलात्कार, विरोध और नगरवधू…
नगरवधू !
मेरे मन में बढ़ गया तेरा सम्मान…
नहीं उठते तेरे लिए कभी झंडे-बैनर,
नहीं सहता कोई पानी की तेज़ बौछार,
नहीं मोमबत्तियों के साथ निकलता मोर्चा,
नहीं जोड़ता तुझसे कोई अपना अभिमान,
नगरवधू !
मेरे मन में बढ़ गया तेरा सम्मान…
कितने वहशी रोज़ रौंदते तेरी रूह,
देह तेरी सहती सब कुछ,
बिना कोई शिकायत, बिना आवाज़,
नहीं आता कभी आक्रोश का उफ़ान,
नगरवधू !
मेरे मन में बढ़ गया तेरा सम्मान,
सोचता हूं अगर तू ना होती तो क्या होता,
कितने दरिन्दे और घूमते सड़कों पर,
आंखों से टपकाते हवस, ढूंढते शिकार,
नगरों को बनाते वासना के श्मशान,
नगरवधू !
मेरे मन में बढ़ गया तेरा सम्मान…
शिव विष पीकर हुए थे नीलकंठ,
क्योंकि देवताओं को मिले अमृत,
तू जिस्म पर झेलती कितने नील,
क्योकि सभ्य समाज का बना रहे मान,
नगरवधू !
मेरे मन में बढ़ गया तेरा सम्मान…
– खुशदीप
(वीडियो…रवीश की रिपोर्ट से साभार)
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दर्द को शब्दों में अभिव्यक्त किया है …
एक पहलु यह भी है जिस पर कोई नहीं सोचता। समाज का दोगला व्यवहार।
दिल का दर्द
मानते हैं कि नगरवधू कभी समाज की दीवार बनी हुई थी लेकिन सभ्य समाज में पुरुष को संस्कारित होना ही होगा। नगरवधू भी क्यों इनकी हवस का शिकार बने। ये ही कारण है कि आज शिकारी मासूम बच्चियों का शिकार करते हैं और उन्हे नगरवधू बनाने पर मजबूर कर देते हैं। कमजोर प्रशासन केवल आँखे बन्द किए तमाशा देखता है कि कब विपक्ष की एन्ट्री हो और कब इसे राजनैतिक आंदोलन करार देकर उसकी भर्त्सना करे। विगत वर्ष जितने भी आंदोलन हुए हैं, यदि सरकार संवेदनशील और कर्तव्य वाली होती तो देश की ऐसी स्थिति नहीं होती।
सार्थक पोस्ट। रवीश की रिपोर्ट के लिए आभार
nagarwadhu , ki zarurat hi nahin hongi agar darindae naa banaaye jaayae
darindae paedaa nahin hotae haen banayae jaatae haen , paeda ladka yaa betaa hi hotaa haen
baki dinesh ji ki baat hi sahii haen
आज सुबह-सुबह सबसे पहले यह पोस्ट/कविता पढ़ी। अच्छा लगा।
रवीश की रिपोर्ट पहले भी देखी थी। आज फ़िर देखी। बहुत अच्छा लगा। जी.बी.रोड की पुलिस अधिकारी , सुरिन्दर कौर को सलाम।
नगरवधू के नाम पर महिलाओं का शोषण न जाने कब से होता आ रहा है। सोचकर अफ़सोस होता है।
अच्छा लगा आपकी रिपोर्ट पढ़कर। नियमित लिखते रहो भाई। तुम तो रोज लिखने वाले थे। सचिन भी निकल लिये वन डे से। उस पर कुछ नहीं आया। 🙂
मानके चल रहे हैं कि तबियत अब ठीक होगी। शुभकामनायें।
नगर वधू होने की बेबसी नहीं देखता कोई।
यह विष पीकर न बिखरे यदि,
शंकर होना मान्य मुझे।