कल दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद में एक ऐसी घटना घटी जिसने अंदर तक हिला कर रख दिया…साथ ही बहुत कुछ सोचने को भी मजबूर कर दिया…जब पूरे भारत में विदेशी दुकानों को एंट्री के सवाल पर बवाल मचा हुआ था, उस वक्त इन मुद्दों से पूरी तरह बेखबर देश के दो नौनिहाल कानों पर हेडफोन लगाकर मोबाइल से गाने सुनने में इतने मशगूल थे कि और किसी चीज़ की होश ही नहीं रही..
दोनों स्कूल से बंक मार कर रेलवे ट्रैक के किनारे इसी रूटीन को पिछले तीन दिन से दोहरा रहे थे…लोगों ने चेताया भी लेकिन वो नहीं माने…कानों पर हेडफोन पर फुल वोल्यूम में गाने बज रहे हों तो किसी की आवाज़ सुनाई ही कहां देती है…दोनों को पीछे से तूफ़ानी रफ्तार से आ रही देहरादून जनशताब्दी ट्रेन का भी आभास नहीं हुआ…जब तक लोग कुछ करने के लिए दौड़ते, तब तक बहुत देर हो चुकी थी…ट्रेन के गुज़रने के बाद वहां जो मंज़र था, वो किसी के भी कलेजे को दहलाने के लिए काफ़ी था…स्कूल यूनिफ़ार्म में दो क्षत-विक्षत शव…बस्ते से बिखरी किताबें…जूते…पहचान बताते दो स्कूल आई कार्ड…गाज़ियाबाद के देहरादून पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले दोनों छात्र…बारहवीं का रोहित और नौवीं का कुलदीप…
दो घरों के चिराग बुझने से जहां उनके परिवार बेहाल हैं, वहीं हैरान भी हैं कि उनके ला़डले रोज़ सुबह घर से तैयार होकर स्कूल के लिए निकलते थे, वो रेलवे ट्रैक के पास कैसे पहुंच गए…यही सवाल स्कूल की प्रिंसिपल से पूछा गया तो उनका कहना था कि दोनों बच्चे पिछले तीन दिन से स्कूल नहीं आ रहे थे…दोनों ने स्कूल में जो फोन नंबर दे रखे थे वो भी गलत थे…हादसे के बाद बड़ी मुश्किल से स्कूल ने दोनों बच्चों के घरों के फोन नंबर पता कराके सूचना दी…इस घटना से कई सवाल उठते हैं जिन पर हर व्यक्ति, माता-पिता और स्कूल प्रबंधनों का सोचना बहुत ज़रूरी है…
क्या स्कूल पढ़ने वाले बच्चों के लिए मोबाइल ज़रूरी है…
सड़क पर हेडफोन के ज़रिए मोबाइल से बातें करना या गाने सुनना कितना महफूज़ है…
क्या बच्चों को स्कूल भेजने के बाद अभिभावकों की ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है…
अगर कोई बच्चा स्कूल नहीं आता तो क्या स्कूल प्रबंधन या क्लास टीचर की ये ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि वो उसके घर इस बात की सूचना दे…इसके लिए एक बड़ा अच्छा रास्ता कुछ बड़े कोचिंग इंस्टीट्यूट अपनाते हैं…वहां अगर कोई बच्चा क्लास मिस करता है तो उसकी सूचना एसएमएस के ज़रिए पेरेन्ट्स को दे दी जाती है…इससे पेरेन्ट्स भी अलर्ट हो जाते हैं…मुझे लगता है ऐसा सिस्टम डवलप करने में स्कूलों को भी कोई परेशानी नहीं आनी चाहिए…
बच्चों पर भरोसा करना अच्छी बात है, लेकिन ये भी अभिभावकों का फर्ज़ है कि पेरेन्ट्स टीचर मीटिंग (पीटीएम) में रेगुलर जाकर बच्चों की प्रोग्रेस या दिक्कतों के बारे में टीचर्स से संवाद कायम करते रहें…
अगर इन सब बातों पर ध्यान दिया होता तो गाज़ियाबाद में दो नौनिहालों की जान शायद इस तरह न जाती…
भगवान दोनों बच्चों की आत्मा को शांति दे और उनके घरवालों को ये असीम दुख सहने की शक्ति दे…
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बहुत दुखद दुर्घटना
आप पोस्ट लिखते है तब हम जैसो की दुकान चलती है इस लिए आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – शहद में छुपे हैं सेहत के अनेक राज – ब्लॉग बुलेटिन
मल्टीटास्किंग घातक रूप भी ले सकती है।
दिल दहला देने वाली दुखद घटना।
जिम्मदार अभिभावक और स्कूल की व्यवस्था दोनो है लेकिन अधिक जिम्मेदारी अभिभावक की ही बनती है। स्कूल कितने बच्चों का खयाल रखेगा जब हम अपने बच्चों का भी नहीं रख पा रहे हैं।
व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि बच्चे स्कूल से अभिभावक की जानकारी में ही अनुपश्थित हों।
बहुत दुखद दुर्घटना ।
लेकिन आजकल सड़कों पर भी ऐसे नज़ारे आम देखने को मिलते हैं ।
जान हथेली पर लेकर चलते हैं आज के युवा । और जिंदगी बर्बाद होती है मात पिता की ।
अब तो यही मानें, इन दोनों ने जान दे कर, नसीहत दे दी है.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!चर्चा मंच में शामिल होकर चर्चा को समृध्द बनाएं….
कुछ साल पहले की घटना याद आ गयी…जब मुंबई में ऐसे ही रेलवे ट्रैक क्रॉस करते मोबाइल पर बात करती दो लड़कियों को आती हुई ट्रेन ने चपेट में ले लिया…दोनों लडकियाँ अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं.. ..यहाँ रोज ही ट्रैक क्रॉस करते वक्त कहीं ना कहीं ऐसे हादसे होते हैं…
बच्चों द्वारा ,मोबाइल का दुरूपयोग ही ज्यादा हो रहा है..
मुझे भी स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों के लिए मोबाइल फ़ोन की उपयोगिता समझ नहीं आती , मगर क्या कीजे ,सब भेड़ चाल के शिकार हैं !
सड़क पर चलते हुए भी गाना सुनना इतना ज़रूरी कि जान के लाले पड़ जाएँ ..हद है !
आह …दिल दहला देने वाला हादसा है …
और सवाल बहुत से हैं.पर क्या फायदा. सुनना और समझना ही कौन चाहता है.बस दौड़े जा रहे हैं अंधी दौड में.
अभिभावकों की लापरवाही के साथ-साथ स्कूल वाले भी इसके लिये उत्तरदायी हैं।
प्रणाम
हेडफोन,मोबाइल का दुरपयोग बहुत बड़ी समस्या
बनता जा रहा है.समय रहते चेतना जरूरी है.
दुखद घटना.
ईश्वर मृत आत्माओं को शान्ति प्रदान करे.
मोबाईल पर गाने सुनते सुनते ट्रेन की आवाज नहीं सुनाई दी और दो जानें चली गईं….
दोष मां बाप का ही ज्यादा है…. स्कूल जाने वाले बच्चों को मोबाईल देना और फिर वो स्कूल जा रहे हैं या नहीं, उनकी गतिविधियां क्या है… इस ओर ध्यान न देना……
मां बाप को अपना दायित्व समझना चाहिए।
दिल दहला देने वाला हादसा है मै तो इसमे माँ बाप को अधिक कसूरवार समझती हूँ जो स्कूल के बच्फ्चों को मोबाईल ले कर देते हैं। सब से बडी बात कि स्कूल वालों को फोन ऩ घर वालों से लेना चाहिये न कि बच्चों से।\ माँ बाप को स्कूल के सम्पर्क मे भी रहना चाहिये। सब कुछ स्कूल पर ही छोड देना भी अच्छी बात नही। भगवान उन बच्चों की आत्मा को शान्ति दे और परिवारों को इस दुख को सहने की शक्ति।
हम अभिवावक इस घटना के लिए जिम्मेवार हैं ….
यदि बच्चे बिना किसी सूचना के स्कूल नहीं आ रहे थे .. तो स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी उनके परिवार वालों को सूचित करने की बनती है .. लेकिन बच्चों में हर वक्त हेडफोन लगाने की ये जो नई आदत बनती जा रही है .. बच्चों की चौकस रहने की क्षमता को तो समाप्त करती ही है .. लापरवाही के कारण कभी भी ये किसी दुर्घटना का शिकार बन सकते हैं !!
1- इस देश का ही विदेश बनकर रहेगा और लोगों की विदेश भागने की लालसा ही समाप्त हो जाएगी।
2- म्यूज़िक सुनते हुए चलना या ड्राइव करना आज आम बात है।
एक्सीडेंट्स में मरे हुए लोगों को देखना हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।
सभ्यता के विकास की या फिर सही तरीक़ों के नज़रअंदाज़ करने की क़ीमत है यह।
खुशदीप भाई, ऐसा ही एक वाकया पिछले हफ्ते प्रीत विहार लाल बत्ती पर हुई, किसी दफ्तर में काम करने वाली एक नौजवान युवती, हैड फोन पर बात करते अथवा गाना सुनते हुए सड़क पास कर रही थी, तभी किसी मोटर साईकिल से हल्का सा टकराई और बचने के चक्कर में पीछे से आ रही बस की चपेट में आ गई… थोड़ी से लापरवाही जान ले लेती है, पर लगता है आजकल किसी को जान की परवाह ही नहीं है…