बच्चों के साथ अपना बचपन भी लौटाइए…खुशदीप

संयुक्त परिवार को लेकर कल मेरी पोस्ट पर शिखा वार्ष्णेय जी ने बड़ा जायज़ सवाल उठाया था…बुज़ुर्ग हमेशा सही हों, ऐसा भी नहीं होता…न्यूक्लियर फैमिली का प्रचलन बढ़ रहा है तो इसके लिए दोष अकेली युवा पीढ़ी का नहीं है, ताली हमेशा दो हाथों से ही बजती है…इसीलिए मैंने अपनी पोस्ट पर एडजेस्टमेंट को लेकर बड़ा ज़ोर दिया था…बड़ों को भी क्या ध्यान रखना चाहिए, इस पर कल पोस्ट लिखूंगा…आज मेरा मन मासूम शिवम को लेकर बड़ा दुखी है…शिवम के ज़रिेए आज पेरेंटिग का एक ज़रूरी मुद्दा…

दिल्ली में द्वारका के हाईप्रोफाइल आईटीएल पब्लिक स्कूल में पांचवी में पढ़ने वाला नौ साल का शिवम अब इस दुनिया में नहीं है…मां-बाप का इकलौता चिराग शिवम स्कूल के साथ पिकनिक पर मसूरी गया था…वहां होटल की बॉलकनी से गिरने से संदिग्ध परिस्थितियों में शिवम की मौत हो गई…शिवम के माता-पिता स्कूल के स्टाफ पर लापरवाही बरतने का आरोप लगा रहे हैं…स्कूल इस आरोप को खारिज़ करते हुए कह रहा है कि कोई लापरवाही नहीं बरती गई…रात को शिवम अपने कमरे में सो गया था…आधी रात को हादसा हुआ, इसमें स्कूल का स्टाफ क्या कर सकता है…हादसा कहीं भी किसी के साथ भी हो सकता है…

अब इससे कुछ दिन पहले की बात सुनिए…शिवम की मां निर्मल वर्मा ने शिवम से पूछा था कि वो 30 अप्रैल को अपने बर्थडे की पार्टी मनाना पसंद करेगा या मसूरी के ट्रिप पर जाना…ज़ाहिर है शिवम के लिए मसूरी का ट्रिप ज़्यादा रोमांचक था…उसने वही चुना…काश उसने ऐसा नहीं किया होता तो आज उसके मां-बाप की दुनिया नहीं उजड़ी होती…

शिवम की आत्मा के लिए शांति की प्रार्थना के साथ ये दुआ भी करता हूं कि ऐसा हादसा फिर कभी किसी बच्चे के साथ न हो…लेकिन शिवम की कहानी मेरे ज़ेहन में कई सवाल भी छोड़ गई है…क्या इस हादसे में सारा दोष स्कूल का ही है…पिकनिक पर साथ गई टीचर्स का ही है…निश्चित रूप से कहीं न कहीं बच्चे की देखभाल में स्कूल के स्टाफ से कोई चूक हुई होगी जो हंसता-मुस्कुराता शिवम आज इस दुनिया में नहीं है…लेकिन शिवम को हमेशा के लिए खोने में क्या उसके मां-बाप का कोई कसूर नहीं है….

शिवम की दुखद घटना कई पहलुओं पर शिद्दत के साथ सोचने को मजबूर करती है…क्या नौ साल का मासूम अपनी देखभाल करने लायक होता है…कहा जा सकता है कि बच्चों को ऐसे एडवेंचर टूर पर भेजने से उनके व्यक्तित्व का विकास होता है…लेकिन ये एडवेंचर टूर क्या मां-बाप अपने साथ बच्चे को नहीं करा सकते…जहां उसकी हर हरकत पर मां-बाप की नज़र रहेगी…स्कूल लाख सावधानी बरत ले लेकिन मां-बाप बच्चे की जितनी केयर कर सकते हैं, उतनी और कोई नहीं कर सकता…लेकिन जनाब गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में मां-बाप के पास इतना वक्त ही कहां हैं जो बच्चे पर खर्च कर सकें…

जैसे हमने रिश्वत देकर हर जगह काम चलाना सीख लिया है…ऐसे ही हमने अपनी कमज़ोरियों को छुपाने के लिए बच्चों को रिश्वत देना सीख लिया है…सिर्फ इसलिए कि बच्चे हम पर उंगली न उठा सकें कि हम उन्हें प्रॉपर वक्त नहीं दे पा रहे हैं…बच्चों को पढ़ाने के लिए हमारे पास वक्त नहीं है, हम उनके लिेए झट महंगी से महंगी ट्यूशन और कोचिंग की व्यवस्था कर देते हैं…बच्चों को पार्क में ले जाने का वक्त नहीं है, घर पर ही कम्प्यूटर, वीडियो गेम और भी जाने क्या क्या गैजेट्स का इंतज़ाम हम कर देते हैं…बच्चा अब दिन भर बिना बाहर की फ्रेश हवा खाए नेट पर क्या क्या देखता है, हिंसा से भरे कौन कौन से गेम देखता है, हमारी बला से…कम से कम हमें तो तंग नहीं कर रहा…

बस बच्चा खुश रहना चाहिए…हम ये सोच सोच कर इतराते रहेंगे कि हम बच्चे के लिए क्या क्या नहीं कर रहे…कितना पैसा खर्च कर रहे हैं इन बच्चों पर…और करें भी क्यों न, इन बच्चों के लिए ही तो है सब कुछ…पिज्जा, बर्गर, फिंगर चिप्स, कोक खा-पीकर फलते-फू…लते जा रहे अपने बच्चे हमें नज़र नहीं आएंगे….बल्कि उलटे बच्चे की सलामती के लिए ही कोई टोटका कर डालेंगे कि हमारा लाल बुरी नज़र से बचा रहे…रिच डाइट का हम बखान तो बहुत करते हैं लेकिन क्या जंक फूड तक बच्चों की पहुंच रोकने के लिए गंभीरता से कुछ करते हैं…नहीं जनाब हम बच्चे को पॉकेट मनी और मोबाइल देकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं…क्यों…क्योंकि हमारे अंदर खुद चोर है…कहीं बच्चा हमसे सवाल न पूछ बैठे कि हम उनके साथ खेलने के लिए, पढ़ने के लिए, आउटिंग पर जाने के लिए वक्त क्यों नहीं निकालते…इसीलिए हम बच्चों को खुश रखने के बहाने ढूंढते हैं तो असल में हम खुद की खाल बचा रहे होते हैं…

बच्चों के साथ एक बार बच्चा बन कर देखिए…सच में आपका बचपन लौट आएगा…आज ही शाम को बच्चे को साथ लेकर पार्क जाइए…पकड़ा-पकड़ी खेलिए, प्लास्टिक की बॉल से एक दूसरे को मारिए…सच कहता हूं, अपने दुनिया जहां के तनाव भूल जाएंगे और अपने उसी बचपन में लौट जाएंगे, जो न जाने कब का हमसे रूठ चुका है…एक बार करके तो देखिए…गाना गाने लगेंगे…कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन…