प्रोटेस्ट का हक़ इनसानों को ही क्यों, सांडों को क्यों नहीं…खुशदीप

(सांड कह रहा है, कूद जाऊंगा, फांद जाऊंगा, मगर क्यों…)
देश में हर तरफ विरोध की बयार चल रही है. कुछ लोग जन्मजात विरोधी होते हैं. उनका काम हर बात का विरोध करना होता है. 2014 से पहले अरविंद केजरीवाल में भी विरोध की इन-बिल्ट चिप थी. लेकिन उन्होंने दिल्ली की सत्ता में आने पर पहले कार्यकाल में इसे कुछ दिन तक संभाले रखा और इसी की खातिर महज़ कुछ हफ्तों में ही इस्तीफा दे डाला. ये बात अलग है कि दूसरे कार्यकाल में सत्ता का स्वाद उन्हें भा गया और उन्होंने विरोध की चिप को शरीर से बाहर निकाल फेंका.
ख़ैर हम बात कर रहे हैं विरोध की. और विरोध जताने का हमारे देश में सबसे मशहूर तरीका टंकी पर चढ़ना रहा है. लोकतंत्र में विरोध जताने के इस तरीके को पॉपुलर करने के लिए धर्मेंद्र पाजी भारत रत्न  के हक़दार हैं. 1975 में जब देश में एमरजेंसी के जरिए अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोटा जा रहा था, तब उसी साल रिलीज़ हुई फिल्म शोले  में वीरू बने धर्म पाजी ने विरोध जताने के लिए टंकी का रुख किया. अब बसंती (हेमा मालिनी) का हाथ देने के लिए मौसी तैयार नहीं हो रही थी तो धर्म पाजी विरोध जताने के लिए और क्या करते?  
ये तो रही धर्म पाजी की बात. इसे छोड़िए आपको यूपी के लखीमपुर खीरी लिए चलते हैं. इस ज़िले के पलिया कस्बे में 19 दिसंबर को सुबह लोग सुबह उठे तो उन्हें अजब नज़ारा देखने को मिला. यहां पोस्ट ऑफिस वाली नगरपालिका की बनी दो मंज़िला मार्केट की छत के बिल्कुल मुहाने पर खड़ा सांड नीचे ताकता मिला. बिल्कुल शोले टंकी स्टाइल में. अब ये तो पता नहीं कि सांड ने विरोध जताने के लिए इमारत की छत पर चढ़ने से पहले वीरू बने धर्म पाजी की तरह दारू की बोतल गटकी थी नहीं.

  

सांडाधिकारों की रक्षा कौन करेगा?
लोगों ने सांड को इमारत से उतारने के लिए बड़ी मान-मनुहार की. लेकिन सांड मानने को तैयार ही नहीं. सांड का इरादा साफ़ था जब तक उसकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं वो हर्गिज़ नीचे नहीं उतरेगा. उसका सवाल था कि मानवाधिकारों की हर कोई फ़िक्र करता है लेकिन सांडाधिकारों पर भी कोई सुनवाई करेगा या नहीं.
आखिर बड़ी मुश्किल से सांड अपनी चार मांगे बताने को तैयार हुआ. मसलन,
1.              इन दिनों पता नहीं चलता कि सड़क पर कहां विरोध जताने वाले प्रदर्शनकारी पत्थर-पेट्रोल बम चलाना शुरू कर दें. फिर पुलिस भी लाठी-डंडे से उनकी खासी ख़बर लेती है. कहीं कहीं पानी की बौछार, आंसू गैस, गोलियां तक चल जाती हैं. ऐसे में सांडों को सड़क पर स्वच्छंदता से विचरण करने में बड़ी तकलीफ़ होती है. ऐसे में शासन-प्रशासन से मांग है कि सांडों को सेफ पैसेज देने के लिए तत्काल प्रभाव से डेडिकेटेड ट्रैक्स का निर्माण किया जाए.   
2.              सांडों को विरोध जताने के लिए ऊंची इमारतों की संकरी सीढ़ियों पर चढ़ने-उतरने में बहुत दिक्कत होती है, इसलिए या तो सीढ़ियों को चौड़ा बनवाया जाए या फिर हर इमारत में हेवी कैपेसिटी लिफ्ट लगवाई जाएं.
3.              गायों की हर कोई बात करता है. योगी सरकार ने उनके लिए जाड़ों में सर्दियों से बचाने के लिए कोट पहनाने तक का एलान कर डाला. तो सांड क्या ठंडप्रूफ होते हैं. उन्हें सर्दी नहीं लगती क्या? इसलिए योगी सरकार तत्काल प्रभाव से सांडों के लिए भी चेस्टर या लॉन्ग कोट मुहैया कराने की व्यवस्था करे.
4.              मानवाधिकार आयोग की तर्ज़ पर अलग से सांडाधिकार आयोग बनाया जाए.

 

जो भी हो लखीमपुर-खीरी में गुरुवार को सांड महाराज को इमारत से नीचे उतारने में पुलिस-प्रशासन और लोगों के पसीने छूट गए. चार घंटे की मशक्कत के बाद सांड को चारा दिखाते दिखाते नीचे उतारा गया. लेकिन सांड ने चेतावनी दी है कि अगर दो दिन में उसकी मांगें नहीं मानी गईं तो वो दिल्ली की किसी बहुमंजिली इमारत पर चढ़ने के लिए कूच कर जाएगा.

#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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ENTERTAINMENT ZONE
3 years ago

😂😂😂😂😉
http://www.funnyjok.com

Love Shayari
4 years ago

Haha very funny ��

Love Shayari

writer
5 years ago

ये चढ़ा कैसे होगा

india indipendence day photo

Khushdeep Sehgal
5 years ago

चारा दिखा दिखा कर बड़ी मुश्किल से उतारा…

Khushdeep Sehgal
5 years ago

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

डॉ टी एस दराल

सोचो ये चढ़ा कैसे होगा , फिर उतरा कैसे होगा !

Sagar
5 years ago

मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
आजादी हमको मिली नहीं, हमने पाया बंटवारा है !

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