पृथ्वी पर सबसे पहले जीवन कैसे आया, ये हम सबके लिए हमेशा से दिलचस्पी का सबब रहा है…इस सवाल का जवाब आज भी वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बना हुआ है…दो सौ साल से डॉर्विन की विकास की थ्योरी सबसे मान्य थ्योरी रही है…इस थ्योरी के मुताबिक 3.9 अरब साल पहले समुद्र में सबसे पहला जीवन आया…अमोनिया, मिथेन, कार्बन डाई आक्साइड और पानी और अन्य यौगिकों के मिलने से ये मुमकिन हुआ…RNA (Ribo-Nucleic Acid) का निर्माण इस दिशा में पहली कड़ी था…
इससे भी थोड़ा पहले की बात की जाए तो 4.6 अरब साल पहले सूर्य के चारों ओर घूम रही Accretion Disc से पृथ्वी बनी…Accretion Disc को ऐसे वलय से समझा जा सकता है जो घटता-बढ़ता रहता है…फिर पृथ्वी और थेइया (Theia) ग्रहों के आपस में टकराने से कई मूनलेट्स निकलीं जिनके जुड़ने से चंद्रमा बना…चंद्रमा के Gravitational Pull (गुरुत्वाकर्षण बल) की वजह से ही पृथ्वी के चक्कर काटने की धुरी (Axis) स्थिर हुई…इसी प्रक्रिया के बाद ऐसे हालात का निर्माण हुआ जिसमें आगे चलकर जीवन का पृथ्वी पर आना संभव हो सका…
करीब 4.1 अरब साल पहले पृथ्वी का Crust ठंडा होकर ठोस हुआ…साथ ही वायुमंडल और समुद्र बने…समुद्र में बहुत गहराई में आयरन सल्फाइड बनना, प्लेटलेट्स की दीवार , RNA जैसे कार्बनिक यौगिक का निर्माण, RNA का खुद को रिपीट करना…यही पहले जीवन का संकेत था…रिपीटिशन या Replication के लिए ऊर्जा, जगह, बिल्डिंग ब्लॉक्स की बड़े पैमाने पर ज़रूरत पड़ी…इससे कंपीटिशन या प्रतिस्पर्धा को मौका मिला…Survival Of Fittest के प्राकृतिक चयन ने उन्हीं मॉलीक्यूल्स को चुन लिया जो खुद को परिस्थितियों के अनुरूप ढालने और Replication में सबसे असरदार थे…फिर DNA (Deoxyribo Nucleic Acid) ने मुख्य रिप्लीकेटर का स्थान लिया…इसी DNA को आज भी जीवन की सबसे छोटी इकाई या Building Blocks of Life माना जाता है…हर जीव का DNA से बना genome अलग होता है…इन्हीं Genomes ने अपने चारों तरफ खोल या Membrane विकसित की और Replication में उन्हें और आसानी हुई… इसके बाद उल्काओं की लगातार बरसात से ये मुमकिन था कि उस वक्त तक जो भी जीवन था सब खत्म हो गया हो…या कुछ Microbes (सूक्ष्म जीव) ऐसे थे जिन्होंने पृथ्वी की सतह पर हाइड्रोथर्मल खोलों में खुद को छुपा लिया हो…और वहीं धीरे-धीरे विकास के रास्ते सभी जीवों को जन्म देने का आधार बने…यहां तक तो थी डार्विन की प्रचलित थ्योरी…
लेकिन यहां से अब एक अलग थ्योरी निकलती है…इसके मुताबिक पृ्थ्वी पर जीवन दूसरे ग्रह से धूमकेतु (Comet) या उल्का (Meteroide) के ज़रिए आया…कार्डिफ यूनिवर्सिटी में एस्ट्रोबायोलॉजी के निदेशक प्रोफेसर एन चंद्रा विक्रमसिंघे के मुताबिक पहली बार इसका सबूत तब मिला जब 1986 में हैली कॉमेट पृथ्वी के बिल्कुल पास से गुज़रा..अंतरिक्ष यान गिओटो के उपकरणों की मदद से वैज्ञानिकों ने देखा कि धूमकेतु जटिल जैविक पदार्थों से ही बने होते हैं…इसी आधार पर प्रोफेसर विक्रमसिंघे ने दावा किया कि जीवन को धरती पर लाने के लिए धूमकेतु ही ज़िम्मेदार थे, न कि समुद्र में जीवन की उत्पत्ति हुई…उनका ये भी कहना है कि जब पांच अरब साल पहले Solar-System (सौर-मंडल) में सिर्फ गैस मौजूद थी तब भी आकाशगंगा में जीवन मौजूद था…धूमकेतुओं ने ही धरती पर बैक्टीरिया के रूप में जीवन का बीज बोया…
धूमकेतुओं या उल्कापिंडो के ज़रिए पृथ्वी पर जीवन आने की थ्योरी को अब नासा के अनुदान पर की गई एक स्टडी से भी बल मिला है…इस में उल्कापिंडो में वही अवयव या components पाए गए हैं जो हमारे जीवन की इकाई DNA में पाए जाते हैं…क्या है ये क्रांतिकारी स्टडी, जो मुमकिन है आगे चलकर डार्विन की समुद्र में जीवन की उत्पत्ति के सिद्धांत को ही गलत ठहरा दे…इस स्टडी को जानने के लिए लिंक है- Is the popular theory of origin of life wrong …Khushdeep
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