संसद में महिला रिज़र्वेशन बिल पर सोमवार से जो तूफ़ान आएगा सो आएगा…लेकिन ब्लॉगवुड में नारी विमर्श पर युद्ध चरम पर पहुंच गया लगता है…संसद में लालू यादव, मुलायम यादव और शरद यादव महिला रिज़र्वेशन बिल को फेल कराने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे…उनका कहना है कि एक तिहाई रिजर्वेशन दिया गया तो सब पढी लिखी आधुनिक अगड़े समाज की महिलाएं ही उन सीटों पर कब्ज़ा कर लेंगी…जबकि ओबीसी की महिलाओं में पढ़ाई लिखाई का स्तर कम होने की वजह से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा….इसलिए वो कोटे में भी कोटा पहले सुनिश्चित करना चाहते हैं…
ये तो खैर संसद की बात है…लेकिन ब्लॉगवुड में जो हो रहा है वो बहुत ही दुखद है…मेरा ये मानना है कि नारी विमर्श पर ये बहस ही बेमानी है…जब दो हाथ बराबर हैं तो फिर ये किसी को जताने की ज़रूरत ही क्यों होती है कि पुरुष और नारी बराबर है…मैंने एक बार गांधी जी के धर्म के बारे में विचार पड़े थे…गांधी जी के अनुसार अगर ये कहा जाता है कि हिंदू धर्म सहिष्णु है, तो यहां भी कहीं न कहीं अपने को श्रेष्ठ साबित करने की ग्रंथि ही काम कर रही होती है…इसलिए अगर कोई कहता है कि महिलाओं को वो सभी अधिकार मिलने चाहिए जो पुरुषों को हासिल हैं…मेरी समझ में यहां भी कहीं न कहीं पुरुष की अपने को श्रेष्ठतर बताने की मंशा ही काम कर रही होती है…
एक सवाल और नारी का पहनावा क्या हो, इसको लेकर भी आए-दिन सवाल उठाए जाते रहते हैं…मानो सारी संस्कृति का ठेका हमने ही ले रखा है…राखी सावंत, बिपाशा बसु या मल्लिका शेरावत अगर रिवीलिंग कपड़े पहनती हैं तो संस्कृति के ठेकेदार शालीनता का सवाल उठा कर आसमान सिर पर उठा लेते हैं…लेकिन अगर सलमान खान शर्ट उतारते हैं या रणबीर नंगे बदन टॉवल भी खोल देता है, फिर कहीं संस्कृति को आंच नहीं आती, फिर कहीं कोई सवाल नहीं उठते, ये दोहरे मानदंड क्यों…किसी ने सच ही कहा है कि ये देखने वाले की आंखों पर होता है कि वो किस निगाह, किस मानसिकता से किसी को देखता है…
इसी सिलसिले में सती अनुसुईया की कहानी का जिक्र करना चाहता हूं…एक बार किसी सद्पुरुष का प्रवचन सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था…वहीं सुनी थी ये कथा…पता नहीं कितनी याद रही है…अगर कुछ गलत हो तो जिन्हें ठीक से पता हो, सुधार दीजिएगा…
अत्री महाराज के लिए सती अनुसुईया का पत्नी धर्म कितना महान था कि नारद जी ने उसकी कीर्ति देवलोक में भी पहुंचा दी…सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती के लिए ये सुनना बड़ा कष्टप्रद था…हठ कर उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, महेश को अनुसुईया का इम्तिहान लेने भेज दिया…तीनों साधु का वेश बनाकर अनुसुईया के द्वार पहुंच गए…अतिथि और साधु का सत्कार धर्म जानकर अनुसुईया ने तीनों से भोजन का आग्रह किया…लेकिन तीनों तो इम्तिहान लेने की ठाने थे…तीनों ने कहा कि भोजन हम इसी शर्त पर करेंगे, अगर तुम नग्न होकर हमें भोजन कराओगी…वाकई सती अनुसुईया के लिए ये धर्मसंकट वाली स्थिति थी…साधुओं को भोजन नहीं कराती तो अतिथि धर्म का पालन नहीं होगा…लेकिन जो शर्त है वो पतिव्रता स्त्री के लिए पूरी करना किसी स्थिति में संभव नहीं…फिर पूरे मनोयोग से सती अनुसुईया ने इस धर्मसंकट से निकलने के लिए प्रार्थना की…इस प्रार्थना ने ही सती अनुसुईया को वो शक्ति दी कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश को छह-छह माह के बालक बना दिया…तीनों को पालने में लिटा दिया…तीनों शिशु की तरह ही पैर पटकने लगे…अब मां अगर शिशु को दूध पिलाती है तो सृष्टि चलती है…अब अपने नवजात शिशुओं से लज्जा का सवाल ही कहां…
पता नहीं मैंने क्यों यहां इस कहानी का ज़िक्र किया…लेकिन एक बार फिर यही कहना चाहूंगा, दूसरे पर उंगली से उठाने से पहले खुद को आइने में देख लेना चाहिए…
बाकिया दी गल्ला छडो, बस दिल साफ़ होना चाहिदा…