(ये व्यंग्य मैं दोबारा पोस्ट कर रहा हूं…क्योंकि ब्लॉगवाणी के ब्लैक आउट के दौरान स्वाभाविक है, हर किसी का ध्यान ब्लॉगवाणी के दोबारा शुरू होने पर ही था…इसलिए किसी विषय पर ध्यान दे पाना सभी के लिेए मुश्किल था…खास तौर पर व्यंग्य पर…लेकिन मैं वादा कर चुका था, इसलिए मुझे ब्लैक आउट के दौरान ही इस पोस्ट को…लो जी बम फट गया…के नाम से ब्लॉग पर डालना पड़ा था…अब ब्लॉगवाणी के वापस आने से दीवाली से पहले ही दीवाली का माहौल है…ऐसे में इस व्यंग्य की सार्थकता और बढ़ जाती है….)
सपने में देखा एक सपना…
वो जो है अमिताभ अपना…
मार्केट से आउट हुआ…
लोगों को डाउट हुआ…
मैं अमिताभ हो गया…हो गया…
करीब तीन दशक पहले ऋषिकेश दा ने फिल्म बनाई थी गोल-माल…उसी फिल्म में अमोल पालेकर सपना देखते हुए ये गाना गाते हैं और अमिताभ बच्चन स्टू़डियो के बाहर स्टूल पर चपरासी की तरह बैठे नज़र आते हैं…कुछ ऐसा ही सपना मैंने भी देखा है…लेकिन यहां दिक्कत ये है कि यहां शेखचिल्ली के हसीन सपने में मैं अकेला ही अमिताभ नहीं हुआ मेरे साथ बी एस पाबला जी भी हैं…”बीएसपी (बी एस पाबला) एंड केडीएस (खुशदीप सहगल) फ्री स्माइल्स कंपनी” के सीनियर पार्टनर…सपना ये है कि बिज़नेस में हमारी कंपनी ने रिलायंस को भी पीछे छोड़ दिया है…क्या कहा…कौन सी रिलायंस…बड़े भाई वाली या छोटे भाई वाली…अजी हमारा कहना है दोनों भाइयों की कंपनियां भी मिला लीजिए, फिर भी हमारी “बीएसपी एंड के़डीएस फ्री स्माइल्स कंपनी” पर लोगों को ज़्यादा रिलायंस होगा…वो क्यों…एक तो हर ची़ज़ को हम मुनाफे की तराजू पर नहीं तौलते..दूसरी बात मुस्कुराहटें बांटने का जो धंधा हमने सोचा है वो… आई मौज फ़कीर की, दिया झोंप़ड़ा फूंक… की तर्ज पर होगा…ग्राहक को हमारी कंपनी की सेवाएं लेने के बदले धेला नहीं खर्च करना होगा…बल्कि उसका चाय-पानी से स्वागत और किया जाएगा…मेरी हैसियत तो कंपनी में कंपाऊडर जैसी होगी लेकिन ये मैं यकीन के साथ कहता हूं कि लाफ्टर के डॉक्टर बीएस पाबला गुदगुदी का ऐसा इंजेक्शन लगाएंगे कि ग्राहक सोते हुए भी उठ-उठ कर ठहाके मारेगा…
अब आप कहेंगे कि ये कौन सा धंधा हुआ जिसमें दुकानदार का अपना कोई फायदा ही न हो…है भईया है… फायदा है…बस जो हमारी कंपनी में आएगा, उसे हम दोनों की सिर्फ 100-100 पोस्ट को पढ़ना होगा…है न, एक हाथ दे, दूसरे हाथ ले, वाली तर्ज का धंधा…ऐसा हुआ तो बकौल अवधिया जी हमें दूसरों को लेकर शिकायत भी नहीं रहेगी कि अपनी पोस्ट तो पढ़वा ली और जब हमारी पोस्ट पढ़ने की बारी आई तो खुद भाग गये…
देखी, हमारी अर्थशास्त्र की समझ…खैर हमारी दुकान का मुहूर्त भी हो गया…पाबलाजी और मैं दोनों अपनी-अपनी सीटों पर जम गए…इंतज़ार होने लगा ग्राहक का…दो घंटे बाद एक खाकी वर्दीधारी दुकान की तरफ बढ़ता दिखाई दिया…हमने सोचा बेचारा पुलिसवाला हर वक्त चोर-चोरियों, अपराध-अपराधियों और अंडर द टेबल डीलिंग का हिसाब लगाते-लगाते चकराया रहता है, इसलिए शायद मानसिक तनाव से राहत पाने और खुद को तरोताजा करने के लिए हमारी सेवाएं लेना चाहता है…पाबलाजी ने दूर से ही ताड़ लिया और मुझे आदेश दिया…पुलिस रिलेटे़ड जितना जितना भी लाफ्टर मैटीरियल है, सब की फाइल्स खोल लो…जो हुक्म मेरे आका वाले अंदाज़ में मैंने आदेश का तत्काल प्रभाव से पालन करना शुरू कर दिया…
कांस्टेबल के चरण-कमल दुकान में पड़ते ही पाबलाजी ने कहा…आइए दारोगा जी, क्या पसंद करेंगे…कांस्टेबल खुद के लिए दारोगा का संबोधन सुन कर वैसे ही चौड़ा हो गया…मूंछ पर ताव देकर बोला…पसंद-वसंद कुछ नहीं, इंस्पेक्टर साब ने तुम दोनों को थाने पर बुलाया है…हम दोनों ने एक दूसरे को देखा, आखिर माजरा क्या है…सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय के मंत्र के साथ हम दोनों ने सोचा कि कांस्टेबल नहीं इंस्पेक्टर साब फ्री स्माइल्स सेवाएं लेना चाहते हैं…आखिर इंस्पेक्टर हैं…पूरे एरिया में लॉ एंड ऑर्डर संभालना पड़ता है, मुंशी की तरह हिसाब रखो अलग कहां कहां से हफ्ता आया और कहां कहां रह गया…ऊपर से ऊपर वाले अफसरान को हर वक्त खुश रखने की जेहमत और…पाबलाजी और मैंने अपने-अपने लैपटॉप लिए और कांस्टेबल के पीछे हो लिए…थाने में जैसे इस्पेक्टर साब हमारे ही इंतज़ार में पलक-पावड़े बिछाए बैठे थे…हमें देखते ही गब्बर सिंह के अंदाज़ में बोले….आओ, आओ महारथी…आज आए हैं दो-दो ऊंट पहाड़ के नीचे…हमने सोचा इंस्पेक्टर साहब हमसे भी बड़े लाफ्टर चैंपियन हैं…हम भी खीं॥खीं..खीं। खीं कर हंस दिए…ऐसी बेबस हंसी हमने शायद ज़िंदगी में पहली बार हंसी थी…तभी इंस्पेक्टर की कड़कदार आवाज गूंजी….खामोश…अबे हम तो अच्छे अच्छे फन्ने खानों को रूला-रूला कर उनकी जेब ढीली कर लेते हैं…और तुम दोनों लोगों को फ्री में गुदगुदा कर खुद को बड़ा तीसमारखां समझ बैठे हो…क्या समझ कर ये धंधा शुरू किया था…सरदार बहुत खुश होगा…शाबाशी देगा…क्यों ….अबे तुम दोनों के चक्कर में ऊपर मैडम तक मेरे इलाके की रिपोर्ट चली गई…मेरी जान को टंटा करा दिया…बहनजी का आदेश आया है कि ये तुम दोनों ने अपनी कंपनी में बीएसपी कैसे जोड़ लिया…क्या बीएसपी का नाम लेकर भवसागर तरना चाहते हो…सच-सच बताओ कौन सी पार्टी ने तुम्हें प्लांट किया है बहनजी के खिलाफ…इस धोखे में मत रहना कि सेंटर या सीबीआई तुम्हें बचा लेगी…ऐसे-ऐसे एक्ट लगाएंगे जाएंगे तुम्हारे खिलाफ कि लोगों को हंसाना तो क्या खुद भी आधी इंच मुस्कान के लिए तरस जाओगे….
इंस्पेक्टर के सदवचन सुनकर मामला थोड़ा-थोड़ा समझ में आने लगा था…ये नाम के चक्कर में किस फट्टे में जान फंसा ली…पाबला जी ने सफाई देनी चाहिए…हुजूर, बीएसपी पार्टी का जब जन्म हुआ था उससे तो कई साल पहले मेरा नाम बीएस पाबला यानि बीएसपी रख दिया गया था…इस नाते तो मेरा इस नाम पर पहले हक बनता है…और हमें पार्टी पर केस कर देना चाहिए कि ये नाम कैसे रख लिया…इसके बाद इंस्पेक्टर का कहा सिर्फ एक ही वाक्य याद रह गया…हमें कानून सिखाते हो, हमें…जो हाथी को चूहा बना दे और चूहे को हाथी…गजोधर ज़रा ले चल तो इन्हें लॉक-अप के अंदर…इसके बाद धूम-धड़ाके की आवाजें बढ़ती ही गईं…और अचानक मेरी नींद खुल गई…
मैंने पहला काम बीएस पाबला जी को ई-मेल करने का किया…अगर अपनी खुद की स्माइल्स बरकरार रखनी है तो “बीएसपी एंड केडीएस फ्री स्माइल्स कंपनी” खोलने का इरादा कैंसिल…
स्लॉग ओवर
ढक्कन…मेरे दादाजी की उम्र 98 साल की है…और उनकी आंखे बेहद तेज़ हैं…कभी उन्होंने ग्लासेस का इस्तेमाल नहीं किया…
मक्खन…यार ढक्कन, ये तो मैंने सुना था कि कई लोग बिना ग्लास का इस्तेमाल किए सीधे बॉटल से ही खींच जाते हैं…लेकिन इस तरह दारू पीने से आंखे तेज़ हो जाती हैं, ये मैंने पहली बार आज तुझसे सुना…
पाबलाजी और मैं ‘अमिताभ’ हो गए…
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