पाकिस्तान पड़ोसी मुल्क़ है…ये भी सोलह आने सच है कि मर्ज़ी से कभी पड़ोसी बदले नहीं जा सकते…फिर पाकिस्तान जैसे मर्ज़ की दवा क्या है…जवाब जानना चाहते हैं तो पोस्ट के आख़िर में स्लॉग ओवर पढ़ना ना भूलिएगा…
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेज़ अशरफ़ ज़ियारत के लिए आज अजमेर शरीफ़ आ रहे हैं…पहले भी पाकिस्तान के कई हुक्मरान ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह पर चादर चढ़ाने के लिए आ चुके हैं…ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का घर हर एक के लिए खुला है…मज़हब या मुल्क की हदों जैसी यहां कोई बंदिशें नहीं हैं…कोई भी यहां आकर दुआ कर सकता है…अब राजा परवेज़ कौन सी दुआ करने के लिए आ रहे हैं ये तो वहीं जाने…पाकिस्तान में उनकी हुकूमत चंद दिनों की और मेहमान है…वहां की नेशनल असेंबली 16 मार्च को भंग होने जा रही है…
पाकिस्तान में कोई भी हुक्मरान घरेलू मुश्किलात में फंसता है तो अजमेर शरीफ़ का रुख करता है…राजा परवेज़ से पहले भी जिया उल हक़, बेनज़ीर भुट्टो, परवेज़ मुशर्रफ़ और आसिफ़ अली ज़रदारी ये ज़ियारत कर चुके हैं…ज़ाहिर है कि ऐसा कभी भी किया जा सकता है, इसके लिए दिल्ली से बाकायदा न्यौते की ज़रूरत नहीं होती…ये बात अलग है कि हिंदुस्तान की सरकार के लिए ज़रूर अजीबोग़रीब हालात हो जाते हैं…विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद जयपुर में राजा परवेज के लिए शनिवार दोपहर को ख़ास दावत भी देने जा रहे हैं…शायद ऐसे ही मौकों के लिए निदा फ़ाज़ली साहब ने क्या ख़ूब कहा है…
बात कम कीजिए,
ज़हानत को छुपाते रहिए,
अजनबी शहर है,
दोस्त बनाते रहिए,
दुश्मनी लाख सही,
ख़त्म ना कीजिए रिश्ता,
दिल मिले ना मिले,
हाथ मिलाते रहिए…
– निदा फ़ाज़ली
अब स्लॉग ओवर के ज़रिए जानिए वो दवा, जिसका ज़िक्र मैंने पोस्ट के शुरू में किया था…
स्लॉग ओवर…
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की हुकूमतों के प्रमुख परमाणु हथियारों के मसले पर बातचीत करने के लिए इस्लामाबाद में जुटे…दोनों कुर्सियों पर बैठ गये तो हिंदुस्तानी प्रमुख ने देखा कि पाकिस्तानी प्रमुख की कुर्सी के हत्थे पर तीन बटन लगे हैं…दोनों ने बातचीत शुरू की…पांच मिनट बाद पाकिस्तानी ने एक बटन दबा दिया…ऐसा करते ही हिंदुस्तानी की कुर्सी से एक बॉक्सिंग ग्लव्स निकला और हिंदुस्तानी के मुंह पर झन्नाटेदार मुक्का जड़ दिया…हिंदुस्तानी को यकीन नहीं हुआ लेकिन उसने बातचीत फिर भी जारी रखी…कुछ देर बाद पाकिस्तानी ने दूसरा बटन दबाया…इस बार हिंदुस्तानी की कुर्सी से एक बड़ा बूट (जूता) निकला और हिंदुस्तानी को ज़ोरदार किक जड़ दी…हिंदुस्तानी प्रमुख इस तरह के बर्ताव से सन्न था लेकिन उसने फिर भी खुद को संभाला…फिर बातचीत के दौर को शुरू किया…थोड़ी देर बाद फिर वही किस्सा…पाकिस्तानी प्रमुख ने तीसरा बटन दबा दिया…इस बार कुर्सी के बीचों-बीच नीचे से एक मुक्का निकला और हिंदुस्तानी को दिन में ही तारे नज़र आ गए…लेकिन उसने फिर धैर्य का परिचय दिया…साथ ही उसने पाकिस्तानी से हाथ मिलाते हुए कहा- “इस बातचीत को अब हम अगले हफ्ते दिल्ली में जारी रखेंगे”...हिंदुस्तानी की ऐसी दयनीय हालत देखकर पाकिस्तानी का हंसते-हंसते बुरा हाल था…इसी चक्कर में वो हिंदुस्तान आने के न्योते से मना भी नहीं कर सका…
एक हफ्ता बीतने के बाद पाकिस्तानी प्रमुख दिल्ली में हिंदुस्तानी प्रमुख के दफ्तर में था…दोनों बातचीत के लिए आमने-सामने बैठे…पाकिस्तानी ने देखा कि हिंदुस्तानी प्रमुख की कुर्सी के हत्थे पर तीन बटन लगे हैं…पाकिस्तानी ये देखकर अपनी कुर्सी पर संभल कर बैठ गया…पांच मिनट की बातचीत के बाद हिंदुस्तानी ने एक बटन दबाया…पाकिस्तानी सतर्क था, उसने हिंदुस्तानी को ऐसा करते देखते ही अपना सिर तेज़ी से नीचे कर लिया….लेकिन ये क्या…कुछ भी नहीं हुआ…पाकिस्तानी थोड़ा सकपकाया…तब तक हिंदुस्तानी के चेहरे पर गज़ब की मुस्कान आ चुकी थी…पाकिस्तानी के संभलने के बाद दोनों ने फिर बातचीत शुरू की…दस मिनट बाद हिंदुस्तानी ने दूसरा बटन दबाया…ये देखते ही पाकिस्तानी बिजली की तेज़ी से अपनी कुर्सी से उठ गया…लेकिन फिर वही कहानी, कुछ नहीं हुआ…अब तक पाकिस्तानी के चेहरे पर हैरानी साफ़ दिखने लगी थी…उधर, हिंदुस्तानी ने ये सब देखकर ज़ोर से हंसना शुरू कर दिया था…ख़ैर बातचीत का दौर फिर आगे बढ़ा…कुछ देर बाद हिंदुस्तानी ने तीसरा बटन दबाया…इस बार पाकिस्तानी प्रमुख कुर्सी पर शांत बैठा रहा…कुछ नहीं हुआ…लेकिन तब तक हिंदुस्तानी प्रमुख हंसते-हंसते बेहाल हो गया था और पेट पकड़ कर कुर्सी से नीचे आ गया था…..ये सब देखकर पाकिस्तानी का सब्र जवाब दे गया…उसने बेहद गुस्से से कहा- “बस, बहुत हो गया…मैं वापस पाकिस्तान जा रहा हूं”...
ये सुनकर हिंदुस्तानी प्रमुख ने ज़मीन पर ही लोटते-लोटते कहा...“पाकिस्तान! कौन सा पाकिस्तान?…तुम क्या समझते हो, वो अब भी वहां मौजूद है??”…
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वहां तो बंदर के हाथ में उस्तरा है। यही सबसे बड़ी मुश्किल है। अब यथास्थिती ही बनी रहेगी। आगे हालात तब ही बदलेंगे जब पूरी दुनिया परमाणु बम से लगभग तबाह हो चुकी होगी।
उनकी उछलकूद हम पर निर्भर है, हमें भी इस तरह दिखने में अच्छा लगने लगा है।
जब तक पाकिस्तान के हुकमरानों की प्रवृत्ति नही बदलती,यह बीमारी लाइलाज ही है.हम गालिब की गजल -इस बीमारी ए इश्क की दवा क्या है गाने के सिवा कुछ नही कर सकते.
वो सब के सब आतंकवादी है….agar atankwadi nahi hote to pakistan nahi banta…
अलीगढ़ कॉलेज के संस्थापकों और वहाँ से निकले छात्रों के राष्ट्रीयता-विरोधी रवैये से अलीगढ़ प्रतिक्रियावादियों का गढ़ समझा जाने लगा। 1906 ई. में अलीगढ़ के कुछ स्नातकों ने मुसलमानों की आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए मुस्लिम लीग की स्थापना की। कुछ वर्षों तक मुस्लिम लीग ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ मिलकर भारत के लिए, शासन-सुधार की माँग की, लेकिन अन्त में, वह घोर साम्प्रदायिक संस्था बन गयी और पाकिस्तान की माँग की। 1946 में उसी माँग के आधार पर भारत का विभाजन हो गया।
jai baba banaras….
जिया उल हक़, बेनज़ीर भुट्टो,chale gaye baaaki ke line main lage hai aur apnee baari ka intijaar kar rahe hai….
jai baba banaras…..
हा हम ऐसा नहीं करेंगे , क्योकि हमारे पास जो है वो पाकिस्तान के बटन दबाने वाले के पास नहीं है , समझ और इंसानियत , पाकिस्तान दुनिया के नक्से में बस एक देश भर नहीं है जिसे मिटा दिया जाये , वहां भी जीते जागते इन्सान ही रहते है और वो सब के सब आतंकवादी नहीं है , जब बटन दबता है तो वो अपराधियों और निर्दोषों में फर्क नहीं करता है और याद रखिये बटन उनके पास भी है पर बटन दबाने वालो के पास समझ और इंसानियत नहीं है , बन्दर के हाथ में उस्तरा ।
हम जोक बना सकते हैं, कर कुछ भी नहीं सकते, यही असलियत है.
कुलदीप जी आप बताइए क्या ऐसा हो सकता है