पल दो पल या ज़िंदगी हर इक पल…खुशदीप






रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें ख़त्म नहीं होती, ख्वाबों की और उमंगों की, मियादें ख़त्म नहीं होती…

कल यूहीं खाली बैठा अपनी पसंदीदा  फिल्म कभी-कभी के गाने सुन रहा था…साहिर लुधियानवी साहब ने इस फिल्म के लिए एक ही गाने को दो बार लिखा…मैं पल दो पल का शायर हूं…और फिर…मैं हर इक पल का शायर हूं…पहला वर्जन फिल्म के ओपनिंग सीन में तब आता है जब अमिताभ और राख़ी गुलज़ार कॉलेज में पढ़ रहे होते हैं…अमिताभ कॉलेज के स्टेज से गाते हैं…दूसरा वर्जन फिल्म के क्लाईमेक्स में ऋषि कपूर और नीतू सिंह की शादी के दौरान बैकग्राउंड में बजता है…



फिल्म में अमिताभ और राखी एक दूसरे को पसंद करने के बावजूद एक दूसरे के नहीं हो पाते…ये कहते हुए अलग हो जाते हैं कि हमें कोई हक़ नहीं बनता कि हम अपने मां-बापों के अरमानों की चिता पर अपने ख़्वाबों के महल खड़े करें…राखी की शादी शशि कपूर और अमिताभ की वहीदा रहमान से हो जाती है…






वक्त गुज़रता है शशि-राखी का बेटा ऋषि कपूर और अमिताभ-वहीदा की बेटी नीतू सिंह (वहीदा के पहले रिश्ते से बेटी) एक दूसरे को चाहने लगते हैं…कुछ टर्न लेने के बाद ऋषि और नीतू की शादी होती है…वहां अमिताभ भी होते हैं और राखी भी…गाना बजता है लेकिन उसके बोल बिल्कुल उलट गए होते हैं…अब इन बोलों में आए बदलाव की खूबसूरती को आप खुद ही महसूस कीजिए…वाकई ज़िंदगी के कुछ पल कितने ख़ूबसूरत होते हैं, जिन्हें आदमी चाहे भी तो कभी भुला नही सकता…






मैं पल दो पल का शायर हूं…
पल दो पल मेरी कहानी है,
पल दो पल मेरी हस्ती है,
पल दो पल मेरी जवानी है,
मैं पल दो पल…


मुझसे पहले कितने शायर आए और आकर चले गए,
कुछ आहें भरक लौट गए कुछ नगमे गा कर चले गए,
वो भी इक पल का किस्सा थे, मैं भी इक पल का किस्सा हूं,
कल तुमसे जुदा हो जाऊंगा जो आज तुम्हारा हिस्सा हूं…
मैं पल दो पल…


कल और आएंगे नगमों की खिलती कलियां चुनने वाले,
मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले,
कल कोई मुझको याद करे, क्यों कोई मुझको याद करे,
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिए क्यों वक्त अपना बर्बाद करे,


मैं पल दो पल का शायर हूं…


 



 
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मैं हर इक पल का शायर हूं…


हर इक पल मेरी कहानी है,
हर इक पल मेरी हस्ती है,
हर इक पल मेरी जवानी है,
मैं हर इक पल…


रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें ख़त्म नहीं होती,
ख्वाबों की और उमंगों की, मियादें ख़त्म नहीं होती,
इक फूल में तेरा रूप बसा, इक फूल में मेरी जवानी है,
इक चेहरा तेरी निशानी है, इक चेहरा मेरी निशानी है,
मैं हर इक पल…


तुझको मुझको जीवन अमृत, अब इन हाथों से पीना है,
इनकी धड़कन में बसना है, इनकी सांसों में जीना है,
तू अपनी अदाएं बख्श इन्हें मैं अपनी वफ़ाएं देता हूं,
जो अपने लिए सोची थीं कभी वो सारी दुआएं देता हूं,


मैं हर इक पल का शायर हूं…
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सच में रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें ख़त्म नहीं होती…
 
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