सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे संजय पत्नी मान्यता और फिल्मकार महेश भट्ट के साथ घर से निकले और कार से टाडा कोर्ट की ओर रवाना हुए…घर के बाहर से संजय की कार के साथ ही अनगिनत गाड़ियों ने चलना शुरू कर दिया…कैमरामैन और फोटोग्राफ़र संजय दत्त की हर झलक को कैद करने के लिए बेताब थे तो पत्रकार रिपोर्टिंग के लिए…
कार में संजय दत्त के साथ बैठे महेश भट्ट के मुताबिक उस वक्त बड़ा खतरनाक नज़ारा था…कई कार और बाइक्स साथ-साथ दौड़ रही थीं…यही सब संजय के घर से लेकर कोर्ट पहुंचने तक लगातार चलता रहा…उस वक्त संजय दत्त और उनकी पत्नी मान्यता की तस्वीरें लेने कि कोशिश में कोई हादसा भी हो सकता था…संजय साढ़े तीन साल के लिए जेल जा रहे थे, इसलिए उनकी और मान्यता की उस वक्त क्या मनोदशा होगी, इसे कोई भी समझ सकता है…लेकिन कवरेज के नाम पर किसी भी हद तक जाना क्या किसी की निजता का उल्लंघन नहीं है…यही फर्क पत्रकारिता और पेपाराज़्जी को अलग करता है…
कोर्ट रूम के बाहर संजय की कार पहुंची तो वहां भीड़ का ये आलम था कि कार का दरवाज़ा भी बहुत मुश्किल से खुल सकता था…पुलिस से रास्ता दिलाने के लिए कहा गया तो उसने असमर्थता जता दी…पुलिस का कहना था कि वहां भीड़ को हटाने के लिए लाठी चार्ज भी नहीं किया जा सकता…क्योंकि भीड़ में ज़्यादातर मीडियाकर्मी ही थे…महेश भट्ट और संजय दत्त की ओर से रास्ता देने की गुहार किए जाने पर भी कोई असर नहीं हुआ…उधर सरेंडर का टाइम भी नज़दीक आता जा रहा था…आखिर करीब ढाई बजे संजय को भीड़ को चीरते हुए ही कोर्ट तक बढ़ना पड़ा…
संजय दत्त ने चार दिन पहले ही टाडा कोर्ट से गुहार लगाई थी कि उन्हें कोर्ट की जगह सीधे जेल में सरेंडर करने दिया जाए…उन्होंने हवाला भी दिया था कि उनके पिछली बार मुंबई से पुणे की यरवडा जेल जाते समय 120 किलोमीटर की रफ्तार से पुलिस वैन का पीछा किया गया था…हालांकि संजय ने जेल में सीधे सरेंडर की अपनी अर्ज़ी बाद में वापस ले ली थी…संजय ने 16 मई को टाडा कोर्ट में ही सरेंडर किया…
संजय दत्त के घर से कोर्ट रूम तक जो हुआ, उसे टाडा जज ने सुरक्षा व्यवस्था की खामी मानते हुए मुंबई पुलिस को कड़ी फटकार भी लगाई…अब संजय दत्त 16 मई की रात से ही ऑर्थर रोड जेल में बंद है…अभी अधिकारी ये तय नहीं कर सके हैं कि उन्हें पुणे या नासिक में से कहां की जेल में शिफ्ट करना है…ज़ाहिर है उनके लिए संजय दत्त को शिफ्ट कराते वक्त वैन में बिना किसी असुविधा के ले जाना भी बड़ी चुनौती होगा…
महेश भट्ट ने इस घटना का ज़िक्र किया तो साथ ही 31 अगस्त 1997 को पेरिस में कार हादसे में ब्रिटेन की राजकुमारी डायना की मौत का भी हवाला दिया…जुलाई 2008 में लंदन में क्रोनर जूरी ने फैसला भी दिया था कि डायना और उनके दोस्त डोडी फयाद की मौत इसलिए हुई क्योंकि उनकी कार के पीछे पेपाराज्ज़ी ( कुछ फोटोग्राफर) लगे हुए थे...ऐसे में डायना की कार का ड्राइवर तूफ़ानी रफ्तार से कार दौड़ा रहा था…ड्राइवर नशे में था, इसने और काम बिगाड़ दिया और एक अंडरपास से गुज़रते वक्त ये हादसा हो गया…
ऐसे में महेश भट्ट का सवाल है कि क्या हम भारत में भी ऐसे ही किसी हादसे का इंतज़ार कर रहे हैं…क्या ऐसी नौबत आने से पहले ही कोई उपचारात्मक कदम नहीं उठाए जाने चाहिए…
महेश भट्ट के सवाल में मुझे दम नज़र आता है…इससे पहले कि सरकार या कोर्ट कुछ निर्देश दे, या पुलिस सुरक्षा बंदोबस्त के दौरान सख्ती से पेश आए, क्या मीडिया को खुद ही कोई आत्मसंयमन या नियमन का रास्ता नही निकाल लेना चाहिए…
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मीडिया को TRP से मतलब है.वो इसके लिए अपराधी को भी कैश करा लेता है. उसे देश हित में सोचना चाहिए,बाबा भविष्य वक्ता,कुंडली मारे टीवी दिखते हैं, तो बड़ी कोफ़्त होती है.
Ak 56 रखने वाला मीडिया कर्मी की निगाह मैं महान हो सकता है अतंकवादियो को पनाह देने वाला आप मीडिया की निगाह मैं महान हो सकता है हमारे लिए एक आतंकवादी है देश द्रोही है देश भक्त मीडिया को किया करना है वह खुद समझता है नहीं तो मीडिया बिकाऊ है …
जय बाबा बनारस…
मीडिया बचा भी है ??? अब तो एकता कपूर के किसी सीरियल से कम नहीं लगतीं ख़बरें.
शायद ही सरकार इनकी कारगुजारियों पर बंदिश लगा सके …
जिगर चाहिए …
क्या मीडिया को खुद ही कोई आत्मसंयमन या नियमन का रास्ता नही निकाल लेना चाहिए…
..यही तो वो विकट प्रश्न है खुशदीप भाई जिसका उत्तर तलाशा जाना चाहिए और न सिर्फ़ मीडिया बल्कि हर क्षेत्र के लिए , अफ़सोस कि कहीं भी ये सोचा नहीं जा रहा है
मीडिय खुद अपने पेट और टी.आर.पी. पर लात कैसे मारे?
मीडिया की चिंताजनक दीवानगी.
व्यवसायिकता , पैसा , प्रतिद्वंदता — शायद ये सब जिम्मेदार हैं इन पागलों जैसी हरकतों के लिए। सेलेब्रिटी होना भी एक अभिशाप सा हो जाता है।
.सार्थक प्रस्तुति.आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
कवरेज के लिए किसी भी सीमा पर चले जाना एक बात है लेकिन कवरेज करते समय यह भूल जाना कि कवरेज के दोनों मुहानों पर इंसान ही हैं । सबसे पहले हमने ख़बर दिखाई का बार-बार उद्घोष करना अपने मियां मिठ्ठु बनने वाली बात है । पत्रकारिता में घुस आई इस पेपाराज़्जी के कारण अनेक अप्रिय घटनाएं सामने आती रहती हैं । इस संदर्भ में मीडिया को गंभीरता से चिंतन करना चाहिए कि छोटी से छोटी बात को भी ब्रेकिंग या सबसे पहले जैसी वाक्यों को हर दिन उच्चारित करने से उसकी अहमियत खत्म हो रही है । और कवरेज के दौरान इंसान होने का अहसास हमेशा रहना चाहिए ।
सारी ऊर्जा जहाँ देना चाहिये, वहाँ नहीं दे पाते हैं।
क्या कहा जाये? मिडिया कर्मी भी इतने उत्साहित हो जाते हैं तो फ़िर सामान्य जनता को क्या कहा जाये? हालात वाकई वैसे ही हैं जैसे आपने बयान किये हैं.
रामराम.
गलती तो सब करते हैं इसलिए सुधारना सबको है.अति से बचना होगा.
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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मीडिया ही सुधर जाए तो फिर देश भी सुधर जाएगा।
सही है, मगर हमने जिस तरह का समाज बनाया है उस में अभी ये पेपाराज्जी बहुत चलना है।
.पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने . जानकी जयंती की शुभकामनायें ..आभार . मेरी किस्मत ही ऐसी है .