मक्खन की लॉटरी निकली…ईनाम था मुफ्त विदेश यात्रा…लेकिन देश सिर्फ दो ही थे…बांग्लादेश या अफ्रीका का कोई भुखमरी वाला देश…
मक्खन ने सोचा…बांग्लादेश तो पास ही है…अफ्रीका दूर है वही चला जाए…
मक्खन को अफ्रीकी देश पहुंचा दिया गया…मक्खन इतना भोला कि उस देश में घूम भी आया लेकिन नाम उसे आज तक याद नहीं हो सका….
मक्खन उसी देश में एक दिन सड़ती गर्मी में तफ़रीह के लिए निकला…एक जगह खड़ा होकर मक्खन जूसी आइसक्रीम के चटखारे ले रहा था कि पास खड़े एक गधे से मक्खन की खुशी देखी नहीं गई…दबे पांव पीछे से आया और मक्खन को एक दुलत्ती झाड़ कर सरपट दौड़ता बना…
मक्खन ठहरा मक्खन…पराये मुल्क में बेइज़्ज़ती कैसे बर्दाश्त कर लेता….वो भी एक गधे की लात…आव देखा न ताव मक्खन भी गधे के पीछे पीछे दौड़ने लगा…गधा आगे-आगे मक्खन पीछे पीछे….
अब गधा था बड़ा चालू…अफ्रीकी देश की गली गली से वाकिफ़…मक्खन जी को एक चौराहे पर डॉज देकर पतली गली में घुस कर छिप गया…
मक्खन जी बड़े परेशान…ये तो बेइज्ज़ती का भी फालूदा हो रहा है…तभी मक्खन की नज़र एक गली में खड़े ज़ीबरा (Zebra) पर पड़ गई…ये देखते ही मक्खन का चेहरा खिल गया…
मक्खन ज़ीबरा के सामने जाकर तन कर खड़ा हो गया और बोला…साले…समझता क्या है बे अपने आप को….अक्ल में तेरा भी बाप हूं…ये फटाफट ट्रैक सूट पहन कर आ गया…क्या सोच रहा था, मैं धोखा खा जाऊंगा….तुझे पहचान नहीं पाऊंगा…