नुज़हत तुम पहले ‘पाकिस्तानी’ हो…खुशदीप

एक है गुलफ़ाम…एक है नुज़हत जहां…दोनों का आपस में पहले ‘फर्स्ट कज़न्स’  का रिश्ता था लेकिन पिछले 30 साल से पति-पत्नी है…दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में रहने वाले इस जोड़े की तीन संतान हैं, जिनमें से दो की शादी हो चुकी है…गुलफ़ाम और नुज़हत दादा-दादी और नाना-नानी भी बन चुके हैं…

गुलफ़ाम अपनी पोतियों के साथ 

तीन दशक एक साथ रहने के बाद गुलफ़ाम और नुज़हत अलग हो चुके हैं…तलाक जैसी कोई बात नहीं है…उम्र  के इस पड़ाव पर दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होना चाहते…लेकिन दोनों को जुदा होना पड़ रहा है…30 साल में ये दूसरा मौका है जब गुलफ़ाम को नुज़हत से अलग होना पड़ रहा है…दिल्ली की एक अदालत ने बीती 2 मई को नुज़हत को तिहाड़ जेल भेज दिया…साथ ही ये आदेश भी दिया कि छह दिन के अंदर नुज़हत को पाकिस्तान भेज दिया जाए…इस हिसाब से आठ मई को नुज़हत का भारत में आखिरी दिन है…

इससे पहले 2 जून 2002 को भी नुज़हत और गुलफ़ाम को एक दिन के लिए अलग होना पड़ा था…तब नुज़हत को वीज़ा और वैध पासपोर्ट के बिना भारत में ज़्यादा दिन तक रहने के अपराध में एक रात के लिए जेल में रहना पड़ा था…

वीर-ज़ारा की फिल्मी कहानी की तरह गुलफ़ाम-नुज़हत की इस रियल स्टोरी में भी जज़्बात की कमी नहीं है…

ये कहानी शुरू होती है…देश के बंटवारे के वक्त से…गुलफ़ाम के पिता जहां भारत में ही रहने का फैसला करते है, वहीं नुज़हत का परिवार पाकिस्तान चला जाता है…1961 में गुलफ़ाम का भारत में जन्म होता है…चार साल साल बाद यानि 1965 में पाकिस्तान में नुज़हत का जन्म…अस्सी के दशक के शुरू में 20-21 साल का जवान गुलफ़ाम अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए पाकिस्तान जाता है…वहां नुज़हत को वो पहली बार देखता है और उस पर फिदा हो जाता है…नुज़हत भी गुलफ़ाम को पसंद करने लगती है…नुज़हत का परिवार भी इस रिश्ते पर मंज़ूरी की मुहर लगा देता है…सगाई के बाद गुलफ़ाम भारत लौट आता है…

2 अगस्त 1983 को गुलफ़ाम अपने परिवार के साथ पाकिस्तान जाता है और नुज़हत को निकाह के बाद भारत ले आता है…तभी से ये जोड़ा तुर्कमान गेट इलाके के अपने पुश्तैनी मकान में रह रहा है…भारत आने के बाद पहले नुज़हत का वीज़ा कुछ-कुछ महीनों के आधार पर बढ़ता रहा…नुज़हत को भारत आने के बाद पहली बार 1985 में लॉन्ग टर्म वीज़ा मिला…इसके बाद भी कई बार नुज़हत का वीज़ा बढ़ाने के लिए आवेदन दिए गए…1988 में नुज़हत के पाकिस्तानी पासपोर्ट की मियाद ख़त्म हो गई…पाकिस्तानी उच्चायोग में नये पासपोर्ट के लिए अप्लाई किया गया..नुज़हत को नया पासपोर्ट पांच साल के लिए और मिल गया…लेकिन इसकी मियाद भी 1993 में ख़त्म हो गई…नुज़हत के लिए फिर नये पासपोर्ट के लिए दरख्वास्त दी गई तो पाकिस्तानी उच्चायोग ने इसे नामंज़ूर कर दिया…पाकिस्तानी उच्चायोग का कहना था कि पांच-पांच साल के दो एक्सटेंशन दिए जा चुके हैं, अब नुज़हत को भारतीय नागरिकता के लिए भारत सरकार से आवेदन करना चाहिए…

1994 में नुज़हत का वीज़ा भी ख़त्म हो गया…1996 में नुज़हत के लिए भारत के गृह मंत्रालय को भारतीय नागरिकता देने के लिए अर्ज़ी दी गई…नुज़हत के पति गुलफ़ाम का दावा है कि नुज़हत की नागरिकता की फ़ाइल गृह मंत्रालय से खो गई…बार बार आग्रह किए जाने पर भी इस संबंध में गृह मंत्रालय से लिखित में कोई जवाब नहीं मिला…ओवर स्टे पर गुलफ़ाम ने नुज़हत के लिए 1800 रुपये का जुर्माना भी भरा था…गुलफ़ाम ने ये सारे रिकार्ड्स भी उपलब्ध कराए…

दूसरी ओर पासपोर्ट अधिकारियों का कहना है कि नुज़हत का वीज़ा 1993 में कालातीत (एक्सपायर) होने  के बाद कई बार रिमाइंडर भेजे गए, लेकिन नुज़हत की ओर से कोई जवाब नहीं मिला…उसके कई बार अवसर मिलने के बाद भी नुज़हत का ना तो वीज़ा बढ़वाया गया और ना ही उसके लिए नये पासपोर्ट का इंतज़ाम किया गया…

गुलफ़ाम और नुज़हत की 22 साल की बेटी गुलज़ात का कहना है कि जब भी दोनों देशों के बीच किसी भी बात पर तनाव बढ़ा, उन्हें मां के केस पर प्रतिकूल असर पड़ने की चिंता सताने लगती थी…गुलफ़ाम का कहना है कि उनकी बहन का निकाह पाकिस्तान में 1995 में हुआ, और वो एक साल बाद भारत हमसे मिलने आई तो वो पाकिस्तानी पासपोर्ट पर आई थी…लेकिन नुज़हत 30 साल भारत रहने के बाद भी भारतीय नागरिक नहीं बन सकी…

गुलफ़ाम के मुताबिक नुज़हत के भाई ज़रूर पाकिस्तान में रहते हैं…लेकिन उसने उन्हें पिछले 21 साल से नहीं देखा है…अब इतने साल बाद नुज़हत के वहां पहुंचने पर उनका क्या बर्ताव रहेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता…ऐसे में नुज़हत का पाकिस्तान में क्या होगा…नुज़हत के बिना गुलफ़ाम और परिवार के बाक़ी सदस्यों का भारत में क्या होगा…सवाल वाकई बडे पेचीदा है…

कहानी आपने पढ़ ली…आपकी क्या राय है…

क्या नुज़हत को पाकिस्तान भेजने के अलावा कोई और विकल्प नहीं…

क़ानूनन तौर पर नुज़हत के साथ जो किया जा रहा है, वो बिल्कुल सही हो सकता है…लेकिन एक 18 साल की लड़की जो निकाह के बाद अपना सब कुछ छोड़-छाड़ कर भारत आती है…यहां गृहस्थी सजाने के लिए पूरी मेहनत करती है…पहले बच्चों को पालने-पोसने में दिन रात एक करती है…फिर बच्चों के भी बच्चों का मुंह देख-देख कर रोज़ जीती है…फिर उसे एक दिन इस सबसे अलग कर उसके हाल पर छोड़कर पाकिस्तान भेज दिया जाता है…मुझे नहीं लगता कि नुज़हत इतनी पढ़ी लिखी होगी कि पासपोर्ट-वीज़ा, भारतीय नागरिकता की पेचीदिगियों को खुद ही समझ पाती…ऐसे में गुलफ़ाम को भी दोषी ठहराया जा सकता है कि वक्त रहते क़ानूनी शर्तों को पूरा करने के लिए क्यों ज़्यादा संजीदगी नहीं दिखाई…

नुज़हत को सरहद पार पहुंचा कर क़ानून का बेशक हम मान रखेंगे…लेकिन अगर वो कसूरवार है तो उसे इस हाल में उसे पहुंचाने वाले क्या कम गुनहगार नहीं…क्या सिस्टम का इसमें कोई दोष नहीं…शायद नहीं…क्योंकि नुज़हत एक पत्नी, एक बहू, एक मां, एक सास,  एक दादी, एक नानी बेशक भारत में 30 साल रहने के दौरान बनी लेकिन वो इन सबसे पहले एक ‘पाकिस्तानी’ है….