नारी शक्ति, शांति का नोबेल और गुजरात…खुशदीप

शुक्रवार को दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं…एक अंतरराष्ट्रीय, एक राष्ट्रीय…ओस्लो में तीन महिलाओं को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल दिए जाने का ऐलान…अहमदाबाद में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी का दस साल पूरे करना…दो बिल्कुल अलग-अलग परिवेश…अलग-अलग घटनाक्रम…लेकिन मुझे समसामयिक घटनाओं में एक-दूसरे का अक्स देखने की आदत है…अब ये आदत बुरी है या अच्छी लेकिन मैं इससे मजबूर हूं…अब ऊपर की दो घटनाओं में मुझे क्या साम्य दिखा, उसकी बात बाद में…पहले शांति के नोबेल की बात कर ली जाए…जिन तीन महिलाओं को ये मिला है, संघर्ष ही उनकी सबसे बड़ी पहचान रहा है…
तवाक्कुल करमान…लिमाह रोबेर्ता गबोवी…एलेन जॉनसन लीफ

मसलन यमन की 32 साल की पत्रकार तवाक्कुल करमान…यमन के हुक्मरान अली अब्दुल्लाह सालेह के खिलाफ देश में लोगों ने संघर्ष की राह पकड़ी तो सत्ता विरोधी नारों में सबसे बुलंद आवाज़ तवाक्कुल की ही थी…इसी तेवर ने तवाक्कुल को लोकतंत्र की सबसे बड़ी पहरूआ की पहचान दिला दी…

दूसरी महिला है लाइबेरिया की शांति अभियान कार्यकर्ता लिमाह रोबेर्ता गबोवी…लाइबेरिया में दूसरे गृहयुद्ध को खत्म करने के लिए जो वार्ता हुई उसमें गबोवी ने अहम भूमिका निभाई…वूमेन पीस एंड सिक्योरिटी नेटवर्क की प्रमुख के नाते गबोवी ने उसी वक्त महिलाओं के सवाल की बात उठाकर समाज में हक की बात कही…गबोवी ने ये सब तब किया जब लाइबेरिया की सत्ता पूंजीपतियों के हाथ में थी और वो महिलाओं को किसी तरह की आज़ादी देने के खिलाफ थे…

इसी कड़ी में तीसरी महिला एलेन जॉनसन लीफ लाइबेरिया की मौजूदा राष्ट्रपति हैं…72 वर्षीय एलेन को लाइबेरिया में 14 वर्ष के गृहयुद्ध के बाद स्थायित्व कायम करने का श्रेय दिया जाता है…एलेन ने 2005 में जब लाइबेरिया की कमान संभाली थी तो उन्हें अफ्रीका की पहली निर्वाचित राष्ट्र प्रमुख बनने का गौरव हासिल हुआ था…8 बरस पहले तक लाइबेरिया गृहयुद्ध से लहूलुहान  था, तब एलेन लोगों की न्यूनतम ज़रूरतों का सवाल खड़ा कर सत्ता के शिखर तक पहुंचीं… संयोग ही है कि अगले मंगलवार को लाइबेरिया में  दोबारा राष्ट्रपति के चुनाव होने जा रहे हैं…ऐसे में शांति का नोबेल मिलने से एलेन की दावेदारी को और मज़बूती मिली है….

चलिए ये तो हो गई नोबेल की बात…अब चलिए गुजरात…7 अक्टूबर 2001 को केशुभाई पटेल को हटाए जाने के बाद नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री की शपथ ली…और शुक्रवार को मोदी इसी पद पर लगातार दस साल पूरे कर ये उपलब्धि हासिल करने वाले गुजरात के पहले मुख्यमंत्री बन गए…विकास के गुजरात मॉ़डल ने मोदी को देश-विदेश में तारीफ दिलवाई तो पिछले दस साल में उनके खिलाफ आरोपों की फेहरिस्त भी खासी लंबी रही है…2002 की गुजरात हिंसा, फ़र्जी एनकाउंटर, विरोध करने वाले अफसरों को निशाना बनाने जैसे तमाम आरोपों से मोदी घिरते रहे हैं लेकिन वो इसे विरोधी दलों की बदनाम करने की साज़िश कह कर खारिज करते रहे…खैर सत्ता की राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप के दौर चलते ही रहते हैं…लेकिन मोदी के लिए विरोधी दलों से ज़्यादा बड़ी दिक्कत तीन महिलाएं पेश कर रही हैं…

श्वेता भट्ट
ज़ाकिया जाफरी
जागृति पंड्या
साबरमति जेल में बंद निलंबित आईपीएस अफसर संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट…
27 फरवरी 2002 को गुलबर्ग सोसायटी हिंसा में मारे गए पूर्व सांसद एहसान ज़ाफरी की पत्नी ज़ाकिया जाफरी…
और बीजेपी के ही दिवंगत नेता हरेन पंड्या की पत्नी जागृति पंड्या…गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री हरेन पंड्या की 26 मार्च 2003 को अहमदाबाद में एक पार्क के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी…
इन तीनों महिलाओं को ही इंसाफ़ का इंतज़ार है…
ज़ाकिया जाफरी अकेली शख्स हैं जिन्होंने 2002 की हिंसा को लेकर मोदी को कोर्ट में की गई शिकायत में अभियुक्त बनाया है…तो श्वेता भट्ट के पति संजीव भट्ट कोर्ट में हलफनामा देकर कह चुके हैं कि 2002 में मोदी ने एक मीटिंग में एक वर्ग का गुस्सा निकलने देने की बात वरिष्ठ अफसरों से कही थी…अब संजीव भट्ट जेल में हैं…उनके खिलाफ एक कांस्टेबल के डी पंत ने बयान दिया है कि भट्ट ने उससे जबरन मोदी के खिलाफ बयान दिलाया था…संजीव भट्ट की पत्नी केंद्र सरकार को दो चिट्ठियां भेजकर शिकायत कर चुकी हैं कि उनके पति के साथ किसी आतंकी जैसा बर्ताव किया जा रहा है…साथ ही भट्ट की जान को खतरा बताते हुए पति और अपने परिवार के लिए सिक्योरिटी की मांग की…वही जागृति पंड्या अपने पति की हत्या की दोबारा जांच पर ज़ोर दे रही हैं…सीबीआई के निदेशक को लिखी चिट्ठी में जागृति ने अपने पति की हत्या के असल दोषियों को सज़ा दिलाने के लिए केस को दोबारा खोलने की मांग की है…इस केस में गुजरात हाईकोर्ट ने शार्पशूटर असगर अली समेत 12 दोषियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया लेकिन आपराधिक साज़िश और पोटा के तहत आतंकवाद के आरोपों का दोषी माना…इससे पहले पोटा अदालत ने सभी बारह आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद सुनाई थी…जागृति पंडया ने अपने घर की पुलिसवालों से जासूसी कराने का आरोप लगाते हुए मोदी, गुजरात के डीजीपी और अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर को कानूनी नोटिस भी भेजा है…इस नोटिस में 15 दिन में जवाब मांगा गया है…
कहने वाले अब भी कह रहे हैं कि मोदी के खिलाफ़ राजनीतिक द्वेष के चलते संजीव भट्ट जैसे अफसरों को खड़ा कर बयान दिलाए जा रहे हैं…लेकिन अगर नारी की त्रिशक्ति एकस्वर में प्रतिकार कर रही है तो क्या उन्हें भी राजनीति की दुहाई देकर खारिज कर दिया जाना चाहिए…उनमें से भी दो ऐसी महिलाएं जो अपने पतियों को खो चुकी हैं और एक ऐसी महिला जो अपने पति की जान को खतरा बता रही है…मातृशक्ति का संघर्ष कैसे तस्वीर बदल सकता है ये इस साल नोबेल के शांति पुरस्कार की महिला त्रिशक्ति ने सारी दुनिया को दिखा ही दिया है…

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In Delhi, a meal for two that costs Rs 40,000 ($1000)

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shikha varshney
13 years ago

आपने रचना जी की पोस्ट उड़ा कर अच्छा नहीं किया :):).
नारी शक्ति जिन्दाबाद

Gyan Darpan
13 years ago

गुजरात की इन तीन महिलाओं में से दो पर कोई कमेन्ट नहीं पर संजीव भट्ट की पत्नी अपने पति की करतूत को भुगत रही है और कानून व्यवस्था को प्रभावित करने और लोगों की हमदर्दी पाने के लिए फालतू ड्रामा कर रही है|

Atul Shrivastava
13 years ago

अच्‍छा तथ्‍यपरक लेख।
नारी शक्ति को प्रणाम।

anshumala
13 years ago

अब नोबेल की क्या बात करे ओबामा को राष्ट्रपति बनने के महज दो महीने में ही नोमिनेट कर दिया गया और उन्हें वो मिल भी गया अमेरिका के सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी चीन में लोकतंत्र के लिए संघर्स करते हुए जेल में बंद व्यक्ति ( नाम याद नहीं आ रहा ) को नोबेल दे दिया जाता है चीन को चिढाने के लिए, किन्तु एक लम्बा अहिंसक आन्दोलन कर भारत जैसे देश को आजाद करा देने पर भी कभी गाँधी जी को नोबेल देने का नहीं सोचा गया | अब इस बार ही देखिये यमन में सरकार का विरोध करने वाली पत्रकार को दे दिया गया क्योकि अमेरिका भी यमन की सरकार के खिलाफ था और ये भी गजब संजोग है की लाइबेरिया के राष्ट्रपति को तब नोबेल दिया जा रहा है जब वह दूसरी बार चुनाव होने जा रहा है बिलकुल वैसे ही जैसे बिलकुल सही समय पर ओसामा मारा गया था |

रही बात गुजरात की तो संजीव भट्ट कितने ईमानदार है ये तो अखबारों में उनके घोटालो, फर्जी मामलों में लोगो को फ़साने और सरकार द्वारा उनकी तरफ से जुर्माना भरने की खबरों से ही पता चल जाता है | कल वो मोदी के कठपुतली थे तो आज कांग्रेस के है | इस बात से सहमत हूँ की कई बार जब पुरुषो की घटिया राजनीति कुछ नहीं कर पाती वह अकेले महिलाओ की अपनी शक्ति वो कर जाती है उम्मीद है की ये तीनो कांग्रेस के हाथ का खिलौना भर न बन कर अपने दम पर खुद के लिए न्याय लेंगी | वैसे कल एन डी टीवी पर मोदी के खिलाफ पञ्च महिलाओ को दिखाया जा रहा था दो और कौन थी मै देख नहीं सकी |

अजित गुप्ता का कोना

गुजरात तो कांग्रेसियों की आँखों में खटक रहा है, इसलिए अपना सारा ध्‍यान यहीं लगा रखा है। स्‍वयं कैसे रामदेचजी और अन्‍ना की टीम के पीछे पड़े हैं दिखायी नहीं देता ना ही उन्‍हें 84 का कत्‍लेआम याद है। धन्‍य है आज की पत्रकारिता जो कांग्रेस बचाने के कारण देश को ही समाप्‍त करने पर तुली है।

रचना
13 years ago

naari blog ki nayii post yahaan kyaa kar rahee haen ???? hadd haen ab mae kyaa likhugi

प्रवीण पाण्डेय

शान्ति स्थापित रहे…सप्रयास।

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