नवाब साहब, किस और बबलगम…खुशदीप

पंच परमेश्वरों का निष्कर्ष है कि लेखन का सबसे अच्छा स्टाइल है कि कोई स्टाइल ही न हो…यानि फ्री-स्टाइल…आपकी सलाह सर माथे पर…आज इस माइक्रोपोस्ट में उसी फ्री-स्टाइल के साथ सिर्फ स्लॉग ओवर…

स्लॉग ओवर
कहते हैं बुढ़ापे का इश्क भी गजब होता है…ऐसा ही गजब ढाया हमारे एक नवाब साहब ने…टीवी पर जिस तरह के सीरियल आजकल आते हैं…आप सब जानते हैं…सब घर वालों का साथ बैठकर इन्हें देखना मुश्किल होता है…नवाब साहब और बेगम घर पर अकेले थे…ऐसे ही एक रोमांटिक सीरियल पर नवाब साहब की नज़र पड़ गई…नवाब साहब को अपना गुजरा जमाना याद आ गया…नवाब साहब ने हिम्मत करके झट से बेगम को किस कर लिया…

किस के बाद बेगम ने नवाब साहब से पूछा…क्या बबलगम खाई थी

नवाब साहब ने कहा…बबलगम तो थी…बस बबलगम का पहला ‘ब’ उड़ा दो…