पता नहीं क्या गड़बड़ी हुई कि डॉ अमर कुमार को समर्पित ब्लॉग पर रश्मि रवीजा की भेजी टिप्पणी के आधार पर पोस्ट डाली…लेकिन वो न तो मेरे ब्लॉग के लिंक पर खुल रही है और न ही हमारी वाणी के लिंक पर…रश्मि बहना ने ग्यारह साल से अनशन कर रही मणिपुर की इरॉम चानु शर्मिला पर एक पोस्ट लिखी थी…इस पर डॉक्टर साहब की भेजी अमर टिप्पणी में विस्तार से पता चलता है कि शर्मिला के अनशन पर उनके क्या विचार थे…डॉक्टर साहब ने इसी पोस्ट पर दूसरी टिप्पंणी में मेरी भी खिंचाई की थी…आप इस लिंक पर जाकर डॉक्टर साहब की टिप्पणियों को पढ़ सकते हैं…
इरॉम शर्मिला को सामूहिक हिस्टीरिया पैदा करने का गुर नहीं आता…डॉ अमर कुमार (साभार रश्मि रवीजा)
एक बात और…मैं असमंजस में हूं…रचना जी ने डॉक्टर साहब को समर्पित ब्लॉग पर एक टिप्पणी में कहा है कि उन्हें इस तरह एक ब्लॉग पर डॉक्टर अमर कुमार की टिप्पणियों को इकट्ठा करना सही नहीं लग रहा…रचना जी का कहना है कि डॉक्टर साहब की जिन पोस्टों पर टिप्पणियां हैं, वो वही रहेंगी यानि इंटरनेट पर सहेजी रहेंगी…रचना जी ने ये भी साफ़ किया है कि इस को उनकी व्यक्तिगत पसंद /न पसंद समझे आक्षेप नहीं क्युकी याद करने और याद भुला कर मुक्त करने के सबके अपने तरीके हैं…
मेरा उद्देश्य डॉक्टर साहब को समर्पित इस ब्लॉग पर न सिर्फ डॉ अमर कुमार बल्कि पहले अगर कोई साथी हमेशा के लिए बिछुड़े हैं तो उनकी यादों को भी संजो कर रखना है….मेरी इस बीच दो बार डॉक्टर साहब के बेटे डॉ शांतनु से भी बात हुई हैं…डॉक्टर साहब का पोस्टों के रूप में खुद का लिखा हुआ अनमोल खज़ाना तो उनके ब्लॉग पर मौजूद रहेगा…जहां तक मेरी जानकारी है डॉक्टर साहब के ब्लॉग ब्लॉगस्पॉट पर न होकर डॉट कॉम पर हैं…इसलिए डॉट कॉम को हर साल बस रीन्यू करना होगा…
रचना जी की टिप्पणी के बाद मैं दुविधा में पड़ गया हूं…बताइए मुझे क्या करना चाहिए…डॉक्टर साहब की टिप्पणियों को एक ब्लॉग पर लाना सही है या नहीं…खुले दिल से अपनी बात कहिएगा जिससे मुझे फैसला करने में आसानी रहेगी…ये भी साफ कर दूं कि अब तक मुझे जितनी भी टिप्पणियां मिल चुकी हैं, उन्हें ज़रूर अमर कहानियां पर लाऊंगा…आगे के लिए आप सबकी राय मेरे लिए अहम होगी…
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ज़रूर संगृहीत कीजिये – यह जाने वाले की मुक्ति में कभी बाधा नहीं बनता कि उसकी लिखी / कही बातें याद की जाएँ | मुक्ति में बाधा सिर्फ उस व्यक्ति का अपना (स्वयं का) मोह पड़ता है – दूसरों का उससे अटेचमेंट नहीं |
हाँ – साथ ही यह दूसरा पहलू भी है कि – जो टिप्पणियों के संग्रहण का कार्य हम कर रहे हैं / आप कर रहे हैं – उसकी प्रसन्नता भी आप और आपके पाठकों तक ही सीमित है | इससे डॉ अमर की यादों को आदर अवश्य मिलेगा, किन्तु यह ना सोचें कि उनकी आत्मा को कोई सुख मिलेगा | वे इस सुख और दुःख – दोनों ही से दूर हो चुके हैं |
वैसे उनकी एक टिप्पणी यहाँ भी है –
, http://ret-ke-mahal-hindi.blogspot.com/2011/07/blog-post.html ,
, http://ret-ke-mahal-hindi.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html ,
, http://ret-ke-mahal-hindi.blogspot.com/2011/03/star-life-cycle_4495.html
खुशदीप जी मरने के बाद टिप्पणियों को संग्रहित करना अगर इतना गलत है तो क्यों न अच्छे रचनाकारों की टिप्पणियाँ ज़िंदा रहते ही संग्रह कर ली जायें ….?
मेरे ब्लॉग पे तो कभी अमर कुमार जी आये ही नहीं वरना उनकी टिप्पणी भी अपनी पुस्तक में शामिल कर लेती ….:))
आप जैसे लोग ही हैं जो डॉ. साहब की भावना या 'मिशन' से नई पीढ़ी को परिचित कराएँगे!
जो लोग किसी की स्मृतियों को तिरोहित करना चाह रहे हैं,दर-असल उनमें इन्द्रियनिग्रह की कमी है.
डॉ.साहब जिस तरह के व्यक्ति थे ,उसमें ऐसा करके हम कोई ग़लत नहीं कर रहे हैं. उनकी स्मृति को शतशः व नित्य नमन !
स्मृतियो को सहेजने में क्या बुराई है?
mai rachna ji ki baat se sehmat hu, aapko aisa nahi karna chaiye
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
आपने राय माँगी है सो देनी तो पड़ेगी ही ।
एक अच्छे आदमी की अच्छी बातों को एक जगह जमा किया जाए तो उसकी मुक्ति पर क्या असर पड़ता है ?
जबकि हिंदू दर्शन के अनुसार इंसान की मुक्ति उसकी अपनी भावना और अपने कर्म पर टिकी है न कि दूसरों के कर्म और चिंतन पर !
किसी के मन में दुविधा डालने के लिए इतने किंतु परंतु बहुत हैं । ी ।
एक अच्छे आदमी की अच्छी बातों को एक जगह जमा किया जाए तो उसकी मुक्ति पर क्या असर पड़ता है ?
जबकि हिंदू दर्शन के अनुसार इंसान की मुक्ति उसकी अपनी भावना और अपने कर्म पर टिकी है न कि दूसरों के कर्म और चिंतन पर !
किसी के मन में दुविधा डालने के लिए इतने किंतु परंतु बहुत हैं ।
@dinesh
i think u have missed out मै ये मानती हूँ की किताबे और लेखन इस परिधि में नहीं आता ।
रचना जी से अक्षरश : सहमत हूँ ।
मैंने अपने पिताजी की तस्वीर को कंप्यूटर के पास रखा हुआ है ।
लेकिन सच मानिये , जब भी नज़र पड़ती है , एक टीस सी दिल में उठती है ।
मृत्यु लोक में इस मोह के जाल से निकलना होगा ।
रचना जी की सोच सिरे से गलत है।
विचार वस्तु नहीं होते।
यदि ऐसा है तो व्यास की मृत्यु के बाद महाभारत, वालमीकि की मृत्यु के बाद रामायण और तुलसी की मृत्यु के बाद रामचरित मानस को समुद्र की राह दिखानी चाहिए थी।
क्यों रामचरित मानस को सब लोग घर में और कंठ में रखे हैं?
by god……'bare sentimental ho aap to'…….
khair, raishumari se bat ki jai to aap ko ye blog chalana chahiye…..
harek 'vyaktigat' vichar ka hum samman karte hain…….
pranam.
सहेजकर रखने में केवल कुछ दिन की मेहनत है उसके बाद उस ब्लॉग को डॉ साहब के और ब्लोग्स के साथ लिंक कर उनके सुपुत्र उसकी देख रेख करेने में सक्षम हैं !
यह एक अच्छा प्रयास और एक बेहतरीन श्रद्धांजलि होगी !
शुभकामनायें !
स्मृतियाँ सहेज कर रखी जानी चाहिये।
मेरा विचार है कि किसी भी ऐसे ब्लॉगर कि टिप्पणियों को जो हमें हमसे दूर हो गया ,दूसरे लोक मैं है ,एक ब्लॉग पर लाना सही नहीं है. हाँ आप का यह ब्लॉग जो बनाने का ख्याल है अच्छा है और उसपे, कुछ याद गार टिप्पणी और लेख़ डालने चाहिए. यह एक बहतरीन ब्लॉग बनेगा.
खुशदीप
हिन्दू धर्म के संस्कार कहते हैं की मृतक की क़ोई भी वस्तु का संग्रह ना किया जाए । आप जितनी जल्दी मुक्ति पाना चाहते हैं उतनी जल्दी सब वस्तुओ को तिरोहित कर दे । मै ये मानती हूँ की किताबे और लेखन इस परिधि में नहीं आता । पर नेट पर जो चीज़ एक जगह पहले से ही हैं उसको दुबारा पढवाना केवल भावनाओं को आंदोलित करता हैं और हम को उस व्यक्ति से जोड़ कर रखता हैं और उस व्यक्ति की आत्मा को भी मुक्त नहीं होने देता । मैने आप को काफी कमेन्ट भेजे हैं जिन मै केवल कुछ अभी आये हैं । निस्पक्ष भावना से आप कितने छाप सकेगे और कब तक कह नहीं सकती ।
हिन्दू धर्म में मुक्ति का मार्ग हैं आत्मा के मुक्ति उसको और अपने को मोह से आजाद करना ।
शायद आप सब भूल गए की मृत्यु की खबर का क़ोई भी चिन्ह हम घर में नहीं रखते हैं और इसी विधि को मानते हुए मैने नारी ब्लॉग की डॉ अमर की मृत्यु की सूचना की पोस्ट भी हटा दी ।
भावनाए जब हावी होती हैं तो कुछ करने से पहले उन भावनाओ पर सोचना चाहिये ।
डॉ अमर से पहले भी मैने २ ब्लोगर की मृत्यु के समाचार पढ़े हैं , नाम नहीं याद हैं क्युकी वो सक्रिय नहीं थे ज्यादा ।
क्या ही बेहतर होता की हम डॉ अमर की तेरहवी पर एक शोक सभा दिल्ली में कहीं आयोजित कर लेते । कुछ मिनट का मौन रख लेते ।
क़ोई ऐसा ब्लॉग बना लेते हैं जहां अपने उन साथियों का जो अब नहीं हैं केवल चित्र और ब्लॉग जगत का उनका काल का विवरण देते
समीर मै भावना से ऊपर उठ कर अपने अपने कर्म को पूरा करने की बात कर रही हूँ । आज की भागम भाग जिन्दगी में कौन इस ब्लॉग को कब तक चालू रख पायेगा
अपनी उम्र का भरोसा नहीं हैं किसी को और हम हर चीज़ को संगृहीत करना चाहते हैं जबकि वो नेट पर पहले से मौजूद हैं
and dear khushdeep
i appreciate what you are doing and you have every right to get the happiness from doing something that you want
since i have already sent so many comments to you will understand that i am not against such a move but i firmly believe in realisng of soul and setting ourselfs also free
life needs to move on even for the children of dr amar its very painful to keep answering phone calls and keep repeating the pain again and again
and i can open the link
है हुई = नहीं हुई
खुशदीप भाई,
मुझे तो वो लिंक खोलने में कोई परेशानी है हुई…शायद अब गड़बड़ी दूर हो गयी होगी.
और मुझे आपका ये प्रयास सराहनीय ही लगा…कई पोस्ट और टिप्पणियाँ कभी-कभी छूट जाते हैं…खासकर हमारे ब्लॉग जगत ज्वाइन करने से पहले के आलेख और टिप्पणियाँ…
एक बार फिर पढ़कर अच्छा ही लगता है…दुख तो होता है…इतना अच्छा लिखने वाले शख्स अब हमारे बीच नहीं हैं…पर वो दुख तो अब हमेशा का है…
खुशदीप भाई , इतना सेंटीमेंटल होने की ज़रुरत नहीं है । कृपया फिक्सेशन से बचें ।
किसी के लिए आदर सम्मान दिल में होता है । डॉ अमर हमारे लिए हमेशा यादों में रहेंगे ।
बट लाइफ हैज टू गो ओन ।
सभी के अपने तर्क होते हैं इसलिए आपको जो उचित लगता हो उसे ही कीजिए। यदि हम किसी इंसान की स्मृति में कुछ करना चाहते हैं तो इसमें केवल समाजहित ही है और कुछ नहीं।
मेरे हिसाब से तो ठीक कर रहे है.
रचना दी भावुक हो रही हैं..समय का तकाजा है…आप सही जा रहे हैं..कल दी भी शॉक से उबर कर समर्थन करेंगी, यह मेरा विश्वास है…आप जारी रहें…शुभकामनाएँ…