खैर ये तो रही भजन की बात…आज इस पोस्ट को लिखने का मेरा मकसद दूसरा है…पहले कुछ आंकड़ों पर नज़र डालिए…
भारत की आबादी…एक अरब, बीस करोड़
हर दिन भारत में मौत…62389
हर दिन भारत में जन्म…86853
भारत में दृष्टिहीन….682497
अगर भारत में मृत्यु के बाद नेत्रदान का सभी संकल्प लें तो देश में ग्यारह दिन में ही होने वाली मौतों से सभी दृष्टिहीनों को इस खूबसूरत दुनिया को देखने के लिए रौशनी का सवेरा मिल जाएगा…
मैंने 20 फरवरी 2010 को ये बोधकथा पोस्ट की थी…आज की पोस्ट के संदर्भ में उसका खुद ही स्मरण हो गया…
एक दृष्टिहीन लड़का सुबह एक पार्क में अपनी टोपी पैरों के पास लेकर बैठा हुआ था…उसने साथ ही एक साइनबोर्ड पर लिख रखा था…मेरी आंखों में रौशनी नहीं है, कृपया मदद कीजिए…टोपी में कुछ सिक्के पड़े हुए थे…
तभी एक दयालु सज्जन लड़के के पास से गुज़रे..वो दो मिनट तक चुपचाप वहीं खड़े रहे…फिर अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाल कर लड़के की टोपी में डाल दिए…इसके बाद उस सज्जन को न जाने क्या सूझी…उन्होंने लड़के का साइनबोर्ड लिया और उसके पीछे कुछ लिखा और उलटा करके लगा दिया…फिर वो सज्जन अपने ऑफिस की ओर चल दिए…इसके बाद जो भी पार्क में लड़के के पास से गुज़रते हुए उस बोर्ड को पढ़ता, टोपी में सिक्के या नोट डाल कर ही आगे बढ़ता…
जिस सज्जन ने साइनबोर्ड को उलट कर कुछ लिखा था, दोपहर बाद वो फिर पार्क के पास से निकले…सज्जन ने सोचा देखूं तो सही लड़के की लोगों ने कितनी मदद की है…लड़के की टोपी तो सिक्के-नोटों से भर ही गई थी…बाहर भी कुछ सिक्के गिरे हुए थे…वो सज्जन फिर दो मिनट लड़के के पास जाकर खड़े हो गए…बिना कुछ बोले…तभी उस लड़के ने कहा…आप वही सज्जन हैं न जो सुबह मेरा साइनबोर्ड उलट कर कुछ लिख गए थे…
ये सुनकर चौंकने की बारी सज्जन की थी कि बिना आंखों के ही इसने कैसे पहचान लिया…लड़के ने फिर पूछा कि आपने आखिर उस पर लिखा क्या था…सज्जन बोले…मैने सच ही लिखा था…बस तुम्हारे शब्दों को मैंने दूसरे अंदाज़ में लिख दिया था कि आज का दिन बहुत खूबसूरत है, लेकिन मैं इसे देख नहीं सकता…
साइनबोर्ड के दोनों साइड पर जो लिखा गया था उससे साफ़ था कि लड़का दृष्टिहीन है…लेकिन लड़के ने जो लिखा था, वो बस यही बताता था कि वो देख नहीं सकता…लेकिन सज्जन ने जो लिखा, उसका भाव था कि आप कितने सौभाग्यशाली हैं कि दुनिया को देख सकते हैं…
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अतुलनीय स्मृति सँचयन…डॉ अमर (साभार डॉ अनुराग आर्य)
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बोधकथा बहुत ही प्रेरक है साथ ही नेत्रदान की अपील भी। हम सभी को इस पर ध्यान देना चाहिए।
अच्छी बोधकथा।
सच में हम भाग्यशाली हैं।
नेत्रदान का प्रण करना चाहिए सबको।
मन को छू लेने वाला प्रेरक प्रसंग.
नेत्र दान महादान.
सचमुच सौभाग्यशाली हैं हम लोंग !
प्रेरक सीख, नेत्रदान करें।
नेत्रदान एक अमूल्य दान है.
प्रेरणात्मक बोध कथा ।
sach… hame apni zindagi tabhi acchhee lagti hai jab ham kisi ko apne se jyada abhavon mein dekhte hain… aur wo bhi aise… aap hospital jaaiye, tab tak aap khud ko sabse zyada takleef mein payengen, par waha pahuchane ke baad, alag-alag logon ko laga-akag peedaon se joojhata dekhne ke baad aapko khud ka dard kam lagne lagega…
sab kathno ka hi to fer hai… jahan dekhiye yahi dekhne ko milta hai…
आप कितने सौभाग्यशाली हैं कि दुनिया को देख सकते हैं……….
jai baba banaras…
वाकई भाग्यशाली हैं हम.
अच्छी बात कही किन्तु क्या किया जाये इसे अच्छे काम में भी लोगों का धर्म आड़े आता है मैंने तो नेत्र दान कर दिया है और घरवालो को जानकारी भी दे दी है की समय रहते वो इस दान को पुरा कर दे क्योकि कार्य पुरा करने की जिम्मेदारी तो घरवालो की ही होगी |
sach mei bina aakho ke jeewan ko jeene ki kalpana se bhi man dar jata hai, hum sach mei bhagyshali hai
बहुत खूब ….
हम वाकई भाग्यशाली हैं खुशदीप भाई !
बात को कहने का अंदाज है।
जैसे किसी जज के बेवकूफी कर देने पर मैं अक्सर कह देता हूँ कि कौन कहता है कि काबुल में गधे नहीं होते?
आह! प्रभु की कितनी बड़ी नेमत है की हम देख सकते हैं,सुन सकते हैं,सोच सकते हैं.
क्या कोई मोल प्रभु ने लिया इनका हमसे ?
पर हम तो बिलकुल अहसान फरामोश ही हैं न
कुछ क्षण भी सच्चे मन से प्रभु का नाम
नहीं ले सकते,प्रभु का धन्यवाद नहीं कर सकते.