दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे…खुशदीप

गोपाल दास नेपाली ने ये भजन 1957 में फिल्म नरसी भगत के लिए लिखा था…अक्सर इस भजन को सूरदास से जोड़ दिया जाता है…फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर्स में भी यही गलती की गई थी…दरअसल मैंने ये देखा है कि हमारे देश में दृष्टिहीनता को सूरदास का पर्याय मानकर उदाहरण दिए जाते है…सूरदास स्वयं दृष्टिहीन थे शायद इसी चक्कर में स्लमडॉग में ये गलती की गई और गोपाल दास नेपाली को भजन का क्रेडिट देने में चूक हो गई…

खैर ये तो रही भजन की बात…आज इस पोस्ट को लिखने का मेरा मकसद दूसरा है…पहले कुछ आंकड़ों पर नज़र डालिए…

भारत की आबादी…एक अरब, बीस करोड़

हर दिन भारत में मौत…62389

हर दिन भारत में जन्म…86853

भारत में दृष्टिहीन….682497

अगर भारत में मृत्यु के बाद नेत्रदान का सभी संकल्प लें तो देश में ग्यारह दिन में ही होने वाली मौतों से सभी दृष्टिहीनों को इस खूबसूरत दुनिया को देखने के लिए रौशनी का सवेरा मिल जाएगा…


मैंने 20 फरवरी 2010 को ये बोधकथा पोस्ट की थी…आज की पोस्ट के संदर्भ में उसका खुद ही स्मरण हो गया…

एक दृष्टिहीन लड़का सुबह एक पार्क में अपनी टोपी पैरों के पास लेकर बैठा हुआ था…उसने साथ ही एक साइनबोर्ड पर लिख रखा था…मेरी आंखों में रौशनी नहीं है, कृपया मदद कीजिए…टोपी में कुछ सिक्के पड़े हुए थे…



तभी एक दयालु सज्जन लड़के के पास से गुज़रे..वो दो मिनट तक चुपचाप वहीं खड़े रहे…फिर अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाल कर लड़के की टोपी में डाल दिए…इसके बाद उस सज्जन को न जाने क्या सूझी…उन्होंने लड़के का साइनबोर्ड लिया और उसके पीछे कुछ लिखा और उलटा करके लगा दिया…फिर वो सज्जन अपने ऑफिस की ओर चल दिए…इसके बाद जो भी पार्क में लड़के के पास से गुज़रते हुए उस बोर्ड को पढ़ता, टोपी में सिक्के या नोट डाल कर ही आगे बढ़ता…


जिस सज्जन ने साइनबोर्ड को उलट कर कुछ लिखा था, दोपहर बाद वो फिर पार्क के पास से निकले…सज्जन ने सोचा देखूं तो सही लड़के की लोगों ने कितनी मदद की है…लड़के की टोपी तो सिक्के-नोटों से भर ही गई थी…बाहर भी कुछ सिक्के गिरे हुए थे…वो सज्जन फिर दो मिनट लड़के के पास जाकर खड़े हो गए…बिना कुछ बोले…तभी उस लड़के ने कहा…आप वही सज्जन हैं न जो सुबह मेरा साइनबोर्ड उलट कर कुछ लिख गए थे…


ये सुनकर चौंकने की बारी सज्जन की थी कि बिना आंखों के ही इसने कैसे पहचान लिया…लड़के ने फिर पूछा कि आपने आखिर उस पर लिखा क्या था…सज्जन बोले…मैने सच ही लिखा था…बस तुम्हारे शब्दों को मैंने दूसरे अंदाज़ में लिख दिया था कि आज का दिन बहुत खूबसूरत है, लेकिन मैं इसे देख नहीं सकता…


साइनबोर्ड के दोनों साइड पर जो लिखा गया था उससे साफ़ था कि लड़का दृष्टिहीन है…लेकिन लड़के ने जो लिखा था, वो बस यही बताता था कि वो देख नहीं सकता…लेकिन सज्जन ने जो लिखा, उसका भाव था कि आप कितने सौभाग्यशाली हैं कि दुनिया को देख सकते हैं…

—————————————————–

अतुलनीय स्मृति सँचयन…डॉ अमर (साभार डॉ अनुराग आर्य)

Khushdeep Sehgal
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अजित गुप्ता का कोना

बोधकथा बहुत ही प्रेरक है साथ ही नेत्रदान की अपील भी। हम सभी को इस पर ध्‍यान देना चाहिए।

Atul Shrivastava
13 years ago

अच्‍छी बोधकथा।
सच में हम भाग्‍यशाली हैं।
नेत्रदान का प्रण करना चाहिए सबको।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)

मन को छू लेने वाला प्रेरक प्रसंग.
नेत्र दान महादान.

वाणी गीत
13 years ago

सचमुच सौभाग्यशाली हैं हम लोंग !

प्रवीण पाण्डेय

प्रेरक सीख, नेत्रदान करें।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

नेत्रदान एक अमूल्य दान है.

डॉ टी एस दराल

प्रेरणात्मक बोध कथा ।

POOJA...
13 years ago

sach… hame apni zindagi tabhi acchhee lagti hai jab ham kisi ko apne se jyada abhavon mein dekhte hain… aur wo bhi aise… aap hospital jaaiye, tab tak aap khud ko sabse zyada takleef mein payengen, par waha pahuchane ke baad, alag-alag logon ko laga-akag peedaon se joojhata dekhne ke baad aapko khud ka dard kam lagne lagega…
sab kathno ka hi to fer hai… jahan dekhiye yahi dekhne ko milta hai…

Unknown
13 years ago

आप कितने सौभाग्यशाली हैं कि दुनिया को देख सकते हैं……….

jai baba banaras…

shikha varshney
13 years ago

वाकई भाग्यशाली हैं हम.

anshumala
13 years ago

अच्छी बात कही किन्तु क्या किया जाये इसे अच्छे काम में भी लोगों का धर्म आड़े आता है मैंने तो नेत्र दान कर दिया है और घरवालो को जानकारी भी दे दी है की समय रहते वो इस दान को पुरा कर दे क्योकि कार्य पुरा करने की जिम्मेदारी तो घरवालो की ही होगी |

Geeta
13 years ago

sach mei bina aakho ke jeewan ko jeene ki kalpana se bhi man dar jata hai, hum sach mei bhagyshali hai

Satish Saxena
13 years ago

बहुत खूब ….
हम वाकई भाग्यशाली हैं खुशदीप भाई !

दिनेशराय द्विवेदी

बात को कहने का अंदाज है।
जैसे किसी जज के बेवकूफी कर देने पर मैं अक्सर कह देता हूँ कि कौन कहता है कि काबुल में गधे नहीं होते?

Rakesh Kumar
13 years ago

आह! प्रभु की कितनी बड़ी नेमत है की हम देख सकते हैं,सुन सकते हैं,सोच सकते हैं.

क्या कोई मोल प्रभु ने लिया इनका हमसे ?
पर हम तो बिलकुल अहसान फरामोश ही हैं न
कुछ क्षण भी सच्चे मन से प्रभु का नाम
नहीं ले सकते,प्रभु का धन्यवाद नहीं कर सकते.

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