नब्बे के दशक में एक फिल्म आई थी- दामिनी…फिल्म में सनी देओल वकील की भूमिका में थे…सनी देओल का फिल्म में एक डॉयलॉग बड़ा हिट हुआ था…मी लॉर्ड, मुवक्किल को अदालत के चक्कर काट-काट कर भी मिलता क्या है…तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख…लेकिन इंसाफ़ नहीं मिलता…ख़ैर ये तो फिल्म की बात थी…लेकिन हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था का कड़वा सच भी यही है..रुचिका गिरहोत्रा के केस में ही सबने देखा…दस साल बाद मुकदमा दर्ज हुआ…नौ साल मुकदमा चलने के बाद नतीजा आया…गुनहगार को 6 महीने कैद और एक हज़ार रुपये जुर्माना…
क़ानून के आसरे इंसाफ़ के लिए सबसे ज़्यादा उम्मीद अदालत से ही होती है…लेकिन इंसाफ़ के लिए बरसों से इंतज़ार करते करते आंखें पथरा जाएं तो इंसाफ़ के मायने ही क्या रह जाते हैं…केंद्रीय क़ानून मंत्री वीरप्पा मोइली के मुताबिक इस वक्त देश की अदालतों में तीन करोड़ ग्यारह लाख उनतालीस हज़ार पांच सौ बाइस मुकदमे लंबित हैं…औसतन देश की आबादी में हर 40 नागरिकों पर एक केस फ़ैसले के इंतज़ार मे लटका हुआ है…
अगर देश की सर्वोच्च अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट की बात की जाए तो वहां चौवन हज़ार एक सौ छह केस पेंडिंग हैं…अगर देश के सभी हाईकोर्ट की बात की जाए तो वहां चालीस लाख से ज़्यादा मामलों में फ़ैसले का इंतज़ार है…और अगर निचली अदालतों के आंकड़ों को देखा जाए तो वहां दो करोड़ सत्तर लाख से ज़्यादा मामले लंबित हैं…एक अनुमान के अनुसार ये मान लिया जाए कि आज के बाद कोई मुकदमा देश की किसी भी अदालत में नहीं आएगा तो भी लंबित मुकदमों को पूरी तरह निपटाने में 124 साल लग जाएंगे…ये हालत तब है जब फास्ट ट्रैक अदालतों को तीस लाख मुकदमे सौंपे गए थे जिसमें 25 लाख पर फ़ैसला आ चुका है…
अदालतों के पिछले एक दशक के रिकॉर्ड पर नज़र दौड़ाई जाए तो लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है…पिछले दस साल में सुप्रीम कोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या में 139 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है…देश के सभी हाईकोर्ट में 46 और निचली अदालतों में 32 फीसदी लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ी है….साल-दर-साल मुकदमे लटके रहने की बात की जाए तो देश के हाई कोर्टों में ही लंबित मुकदमों में से 25 फ़ीसदी ऐसे हैं जो दस साल से ज़्यादा पुराने हैं…स्थिति कितनी गंभीर है ये इसी से पता चलता है कि देश की जेलों में जितने कैदी बंद हैं उनमें 70 फीसदी से ज़्यादा विचाराधीन कैदी है…
सरकार के दावों के मुताबिक कोशिश की जा रही है कि किसी भी केस में फैसले के लिए तीन साल से ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़े..सरकार के नए मसौदे में देश की सभी अदालतों को कंप्यूटर, इंटरनेट और प्रिंटर से लैस करने का प्रावधान है…देश में करीब 16 हज़ार जजों के पद हैं जिनमें से फिलहाल तीन हज़ार खाली है…देश में औसतन बीस लाख लोगों पर 27 जज हैं जबकि अमेरिका में बीस लाख लोगों पर 214 जज काम कर रहे हैं…अमेरिका में आबादी के अनुपात के हिसाब से भारत के मुकाबले आठ गुना ज़्यादा जज हैं…
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के जी बालाकृष्णन ने हाल ही में कहा है कि देश में 35 हज़ार जजों की दरकार है…न्यायिक प्रक्रिया में सरकार तत्काल सुधार नहीं लाती तो देश में मुकदमों का अंबार घटने की जगह बढ़ता ही जाएगा…ऐसे हालात में जल्दी इंसाफ़ के लिए आम आदमी अदालत के साथ भगवान की चौखट पर भी गुहार न लगाए तो क्या करे…
स्लॉग ओवर
मक्खन एक बार मक्खनी से लड़ने के बाद गुस्से में भुनभुनाता हुआ कैमिस्ट की दुकान पर पहुंचा…मक्खन ने छूटते ही कहा…मुझे ज़हर चाहिए…कैमिस्ट ने खेद जताते हुए कहा कि वो मक्खन को ज़हर नहीं बेच सकता…इस पर मक्खन ने पर्स निकाल कर पत्नी मक्खनी का फोटो कैमिस्ट को दिखाया…कैमिस्ट ने फोटो देखने के बाद मक्खन से माफ़ी मांगते हुए कहा…ओह, मुझे नहीं पता था कि आपने प्रेस्क्रिप्शन साथ रखा हुआ है…-
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आज मेरे अंग्रेज़ी ब्लॉग Mr Laughter पर है…
संता भी सोचता है…