‘ठोकशाही’ की ओर शिवसेना के फिर बढ़ने के मायने?…खुशदीप

 नेरेटिव कुछ भी हो, शिवसेना फिर से बाल ठाकरे के ठोकशाही युग की ओर बढ़ चली
है…हिन्दी बेल्ट में धारणा कुछ भी हो लेकिन महाराष्ट्र में ये घटनाक्रम शिवसेना
को मजबूती देने वाला है…बहुत अर्से बाद शिवसैनिक वैसे ही दबंगई दिखा रहे हैं
जैसे किसी जमाने में बाल ठाकरे के खिलाफ ज़रा सी भी चूं करने वाले लोगों के खिलाफ
दिखाया करते थे…

 

फाइल फोटो- शिवसेना के फेसबुक पेज से साभार

उद्धव ठाकरे के लिए अक्सर यही कहा जाता रहा है कि उनमें पिता बाल
ठाकरे वाले तेवर नहीं हैं…बाल ठाकरे की तरह ही कार्टून बनाने का शौक रखने वाले उनके
भतीजे राज ठाकरे में वो तेवर दिखते थे लेकिन बाल ठाकरे के जीते-जी ही राज को शिवसेना
से बाहर का रास्ता देखना पड़ा…राज ने बेशक महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से
खुद की पार्टी बनाई, लेकिन शिवसेना जैसी सांगठनिक शक्ति वो नहीं जुटा
सके…शिवसैनिकों का जो भावनात्मक लगाव बाल ठाकरे से रहा, उसकी बदौलत ही मातोश्री
की प्रासंगिकता बनी रही…पिछले कुछ दशक से शिवसेना मुख्य राजनीतिक धारा की पार्टी
बनी रही…बाल ठाकरे के दुनिया से जाने के बाद भी शिवसैनिक उद्धव के पीछे मजबूती
से खड़े रहे…

बाल ठाकरे की राजनीतिक ताकत का मुख्य आधार दूसरों के दिलों में डर बसा
कर राज करना था…उनका कहना था- ‘पहले अपना शत्रु चुनो, समर्थकों की सेना खुद-ब-खुद
पीछे आकर खड़ी हो जाएगी’…शिवसेना में बाल ठाकरे ब्रैंड राजनीति के तेवर अब बहुत
दिनों बाद देखने को मिले हैं….ये बात हिन्दीभाषियों या मुंबई में रहने वाले
प्रवासियों को बेशक पसंद न आ रही हो लेकिन शिवसेना के कोर मराठी वोट बैंक को जरूर
रास आ रही होगी…

राजनीति अब ये नहीं देखती कि उसमें नीति है या नहीं…इस सियासी हमाम
में सभी नंगे हैं…तथाकथित शुचिता की बात करने वाले भी और धर्मनिरपेक्षता की
दुहाई की लिप सर्विस करने वाले भी.. पैसे और सत्ता का लालच देकर, दलबदल का खुल कर
खेल करने वाले आखिर किस मुंह से शिवसेना से नैतिकता की उम्मीद करते हैं…

शिवसेना अगर खुला खेल फर्रूखाबादी खेलने पर आ गई है, तो ज़रूर उसके
पीछे कोई सोचीसमझी रणनीति काम कर रही है…रही बात बॉलीवुड के ड्रग्स और
अंडरवर्ल्ड कनेक्शन की तो ये कोई नया किस्सा नहीं है…श्रमिक नेता से राजनेता के
तौर पर बाल ठाकरे का जब से उदय हुआ, लगभग उसी कालखंड में मुंबई में अंडरवर्ल्ड ने
विकराल रूप लेना शुरू किया…हाजी मस्तान सबसे बड़ा नाम था…उसी के मातहत करीम
लाला, और वरदराजन मुदलियार ने भी अवैध शराब, वसूली, स्मगलिंग, रीयल एस्टेट जैसे
काले साम्राज्य में धाक बनाई…

 बाल ठाकरे ने साठ के दशक के बीच के वर्षों में पहले मुंबई में ताकतवर
हो रहे तमिल प्रवासियों के विरोध के सहारे मराठा जमीन पर अपना आधार बढ़ाना शुरू
किया…तब उनका नारा था…
बजाओ पुंगी, भगाओ लुंगी…फिर बाद में इसी फॉर्मूले को उन्होंने
मुस्लिम विरोध में बदल दिया…6 दिसंबर को अयोध्या के घटनाक्रम पर जब बीजेपी के
नेता भी दबी भाषा में बयान दे रहे थे तो हिन्दुत्व के पैरोकार नेताओं में से अकेले
बाल ठाकरे थे, जिन्होंने कहा था-
अगर ढांचा (बाबरी मस्जिद) शिवसैनिकों ने गिराया
है तो मुझे उन पर गर्व है.
’’

 पाकिस्तानी कलाकारों का भारत में विरोध हो या क्रिकेट मैच के दौरान
पिचें उखाड़ना, नब्बे के दशक के आखिर में अभिनेता दिलीप कुमार पर पाकिस्तान के
सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज को वापस करने के लिए दबाव डालना, इन सब
बातों में शिवसैनिक बढ़ चढ़ कर आगे रहे…ये वो दौर था जब शिवसेना की कमान खुद बाल
ठाकरे के हाथ में थी…बाल ठाकरे की उम्र बढ़ने के साथ उनके तेवर नर्म पड़े..अपने
आखिरी वर्षों में बाल ठाकरे को राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच विरासत की लड़ाई को
भी देखना पड़ा और उन्होंने पुत्र उद्धव ठाकरे को ही विरासत सौंपने पर मुहर लगाई…

उद्धव ठाकरे क्या अब बाल ठाकरे वाले तेवरों की ओर बढ़ चले हैं?  लेकिन विरोधाभास ये है कि बाल ठाकरे ने अपने
जीवनकाल में जिस धर्मनिरपेक्षता की परवाह नहीं की और अधिकतर बीजेपी से ही हाथ
मिलाए रखा…अब उन्हीं की स्थापित शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी की बैसाखियों के
सहारे महाराष्ट्र में सत्ता चलानी पड़ रही है…अब देखना यही होगा कि ये विरोधाभास
उद्धव ठाकरे और शिवसेना को ठोकशाही में कहां तक बढ़ने की इजाजत देता है…

#हिन्दी_ब्लॉगिंग