एक अजब सा सवाल पूछ रहा हूं…पापा के दुनिया को अलविदा कहने के बाद पारिवारिक पंडित राधेश्याम शर्मा जी ने सारे कर्मकांड कराए…वो रोज़ घर पर गरूड़ कथा का पाठ भी करने आए…राधेश्याम जी वैसे पारिवारिक मित्र भी हैं…इसलिए उनसे कभी-कभी हंसी मज़ाक भी हो जाता है…राधेश्याम जी घर में मांगलिक कार्य भी पूरे विधि-विधान से संपन्न कराते हैं…हमारे लिए सुख-दुख के मौकों पर उनका ही कहा, पत्थर की लकीर होता है…
पंडित जी से पापा की अंत्येष्टि वाले दिन ही बात हो रही थी कि पिता को मुखाग्नि देने का पहला अधिकार सबसे बड़े बेटे का होता है…अगर बड़ा बेटा तबीयत खराब होने या अन्य किसी वजह से ये धर्म निभाने की स्थिति में न हो तो सबसे छोटे बेटे को अंतिम संस्कार कराना चाहिए…
ये बात चल ही रही थी कि पंडित जी ने बड़ा विचित्र सवाल पूछा…अगर मरने वाले के जुड़वा बेटे हों, उनमें से बड़ा वाला छोटे से मानो पांच मिनट पहले दुनिया में आया हो तो बड़ा बेटा होने के नाते किसका पिता को मुखाग्नि देने के लिए पहला हक होगा...
पंडित जी ने सवाल का जवाब भी बताया…उसे मैं आपको बताऊं, इससे पहले चलिए आप भी अपनी राय बताइए…संगीता पुरी जी और पंडित डी के शर्मा वत्स जी के जवाब का खास तौर पर इंतज़ार रहेगा…
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यहाँ संगीता जी का जवाब मेरा समझा जाये। बाकी आज की पोस्ट पर।
नमस्कार, वैसे तो जो पहले पृथ्वी पर आया वाही बड़ा हुआ . मुझे याद आ रहा है एक वाकया जो मेरे पति ने बताया था . एक बार नेहरूजी के पास ऐसा ही एक केस आया था उन्हें छोटे को बड़ा साबित करना था उन्होंने एक सकरी मुंह के बोतलमें दो छोटे – छोटे पत्थर डाले जो पत्थर पहले डाला था वह बाद में आया अर्थात जो बेटा गर्भ में पहले आया था वह बाद में जन्म लिया कहने का मतलब तो छोटा ही बड़ा हुआ न .
कल काम की अधिकता की वज़ह से न आ सका किंतु आज टिपिया आया ताज़ा पोस्ट पर की वास्तव में अधिकार केवल प्रथमत: संतान को है. वेद मेरी जानकारी के अनुसार प्रतिबंधित नहीं करते.्तथापि किसी को इस बात का ग्यान हो तो बताये.
जहां तक पुत्र संतानों मे से किसे मुखाग्नि दिये जाने का सवाल है केवल अंतर्नियम माना जाए कि पुत्रों में कोई भेद नहीं .
जो पहले आया, वही बड़ा होना चाहिये
प्रश्न जितना पेचीदा है जबाब उतना ही आसान. भाई जिसने इस दुनिया में पहले आँख खोली वही बड़ा हुआ. अब पंडित जी की थ्योरी कुछ और हो तो पता नहीं. इंतजार रहेगा उनकी थ्योरी का.
मेरी अंत्येष्टि का जिम्मा तो मैने अपनी एकमात्र पुत्री को ही देने का निर्णय किया है .
जैसी पंचो की राय!
प्रश्न पेचिदा है और हमारी मोटी बुद्धि मे इतना बारीक सवाल घुस नही पारहा है. पर जो जवाब ना दे वो ताऊ कैसा? इसलिये जवाब तो जरूर ही देंगे. भले कोई माने या माने.
अब लोकाचार और रीतिरिवाजनुसार तो बडा ही अधिकारी है भले ही १ मिनट बडा हो, पर मेरे हिसाब से जो भी पुत्र श्रद्धा पूर्वक कर सके और जिसकी दिवंगतात्मा में प्रीति हो वही अधिकारी होना चाहिये.
बाकी जैसी पंचो की राय!
रामराम.
shareer ko jalane sae behtar haen daan kar dena
चिट्ठाजगत जी,
पोस्ट तो हॉट लिस्ट में आ गई लेकिन टिप्पणियां 7 पर ही अंगद के पैर की तरह टिकी हुई हैं…पोस्ट पर 16 टिप्पणियां आने के बावजूद लिस्ट में 7 से बढ़ने का नाम नहीं ले रहीं…
जय हिंद…
पूरा लाजिक तो इस समय मेरे दिमाग से स्लिप हो रहा है लेकिन कुछ ही दिनों पूर्व पढे किसी कथानक के आधार पर जो गर्भ से बाद में बाहर आया वो बडा है । आगे मर्जी ज्ञानवान की…
संगीता जी ने सही कहा है।
भारतीय संस्कृति परिवार प्रधान है इसलिए परिवार का एक मुखिया भी होता है और जो बड़ा बेटा है उसे मुखिया बनाया जाता है। बडे का निर्धारण काल गणना से ही होता है। वर्तमान में जब परिवार टूट रहे हैं तब जो परिवार की जिम्मेदारी निभाए वही बड़ा हो जाता है। जिन परिवारों की जिम्मेदारी लड़किया निभाती हैं वहाँ वे ही सारे कार्य करने लगी हैं। वैसे भी अब क्रियाकर्म घटते जा रहे हैं। लेकिन पण्डितजी के विचार जानने की इच्छा है।
@चिट्ठाजगत जी,
कुछ तकनीकी दिक्कत चल रही है, १२ कमेंट के बाद भी मेरी पोस्ट हॉट लिस्ट में नहीं है…
जय हिंद…
पंडित जी का उत्तर जानने की इच्छा है।
@नरेश सिंह राठौड़ जी,
अगर पुत्र न हों तो भाई, भतीजा भी ये ज़िम्मेदारी निभा सकते हैं…वो भी नहीं हैं तो कोई पंडित भी अंतिम संस्कार करा सकता है…वैसे मुझे भी ये सोचकर आश्चर्य होता है कि माता-पिता की सेवा करने वाली पुत्रियों को ये अधिकार देने में क्या दिक्कत है….
जय हिंद…
संगीता जी,
आप की ये बात सही है कि जो सेवा करे, सबसे ज़्यादा ध्यान रखे, उसी को मुखाग्नि देने का अधिकार होना चाहिए, ऐसा अक्सर देखने में आया है कि जाने वाले जाने से पहले इच्छा भी जता जाते हैं कि कौन मेरा अंतिम संस्कार करेगा…पिछले साल शायद वाराणसी की घटना है जहां तीन पुत्रियों ने पिता का अंतिम संस्कार किया था….
जय हिंद…
खुशदीप भाई ,मोडरेशन कभी भी किसी की असुविधा का कारण नहीं हो सकता है | क़ानून रूप से भी आपके ब्लॉग पर जो टिप्पणियां प्रकाशित होती है उनके लिये आप ही जवाब देह है न कि टिप्पणी कर्ता |इस लिये मै तो हमेशा ही मोडरेशन की सिफारिश करता हूँ | आपके सवाल का जवाब तो पंडित लोग ही दे पायेंगे | लेकिन जिनके पुत्र ही नहीं है (मेरे जैसे लोग) उनके लिये पंडित क्या कहते है ज़रा ये भी तो पता चले |
@बोले तो बिंदास वाले रोहित भैया,
ये बंटी चोर जी की मेहरबानी है…कल उन्होंने एक ही कमेंट को चार बार चेप दिया था, उसे हटाने के लिए मॉडरेशन ऑन किया…और फिर रात को हटाना भूल गया…सुबह उठते ही पहले मॉ़डरेशन ऑफ किया…फिर भी असुविधा के लिए खेद…
जय हिंद…
हैलो जी ये क्या एप्रूवल वाला फंडा लगा दिया है…..इसे तत्काल हटाएं…..मत भूलें कि आप पत्रकार हैं…..फिर डिलिट की सुविधा भी दी हुई है……
सो तत्काल इसे हटाएं……..वरना भारी विरोध का सामना करना पडेगा ……. कहे देता हूं……
तरक तो कहे से कै जो पहले आया…..सो ही बड्डा जी…..पर आपने जवाब टाल दिया से तो लागे है कि कोई पेंच होगा, अते छोटे को बड़ा बना दिया जावेगा…सो हमें भी
इंतजार आहे…..
दूसरी बात यह कि बच्चा गतिशील होता है पेट में..
जिसने जो भी उत्तर दिया हो कह नहीं सकता. लेकिन जो दुनिया में पहले आया वह बड़ा है.. बाकी कहानियों में जो तर्क दिया जाता है कि जो पहले गर्भाशय में गया इसलिये बाद में संसार से आया और इसीलिये बड़ा है.. उससे मैं सहमत नहीं…
जो पहले आया, वही बड़ा होना चाहिये।
पांच मिनट का बडा हो या पांच वर्ष का .. बडा तो बडा ही होता है .. छोटे को यह बात समझनी चाहिए .. और बडे को भी अपनी जबाबदेही समझनी चाहिए .. पर मेरे अनुसार माता पिता के पूरे जीवन के दौरान कर्तब्यों का निर्वाह जो सही तरीके से करता हो .. वही मुखाग्नि देने का सही पहला अधिकारी है!!
काफी पेचीदा प्रश्न है..और काफी रोचक भी …शुक्रिया