जनता नहीं अब सरकार डरती है…खुशदीप

दिल्ली में बलात्कार के विरोध में प्रदर्शन के निहितार्थ साफ़ हैं- पहले जनता हुक्मरानों से डरती थी…अब हुक्मरान जनता से डरने लगे हैं…17 दिसंबर की शर्मनाक घटना के बाद दिल्ली के पावरसेंटर माने जाने वाले इलाके में लोगों के स्वतस्फूर्त  प्रदर्शन का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसे सरकार ने पहले दिन से ही समझने में गलती की…और अब भी सरकार भ्रम में ही जी रही है…सरकार इसे सिर्फ़ एक जघन्य सामूहिक बलात्कार से उपजा जनाक्रोश मान रही है…यही सरकार की भूल है… ये देश की उस जनता का गुस्सा है, जो अब समझ गई है कि केंद्र और राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दल आज़ादी के बाद 65 साल में उसका सिर्फ पोपट बनाते आए हैं…इन 65 साल में सबसे ज़्यादा राज कांग्रेस ने किया है, इसलिए उसी के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा आक्रोश फूट रहा है…

कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों को अब ये साफ़ समझ लेना चाहिए कि चुनाव जीतने का ये मतलब नहीं होता कि पांच साल तक उन्हें जो चाहे करने का अधिकार मिल गया…जनता अब जाग गई है…अब वो पांच साल का इंतज़ार नहीं करने वाली…वो ऐसे ही सड़कों पर आकर नेताओं के दिलों में अब दहशत पैदा करेगी जैसा कि दिल्ली के मौजूदा प्रकरण में हो रहा है…नेता अगर परफॉर्म नहीं करेंगे तो उन्हें ज़बरन घरों में ही बैठने को मजबूर किया जा सकता है…

अब आते हैं, उस प्रकरण पर जिसने देश की पावर-सीट नॉर्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक को भी हिला कर रख दिया…सरकार ने इस प्रोटेस्ट मूवमेंट को शनिवार-इतवार की छुट्टी वाले दिन महज़ कुछ लोगों का जमावड़ा समझा…विरोध करने वाले युवा संगठित नेतृत्व के अभाव में दिशाहीन  थे…लेकिन यही दिशाहीनता इस मुहिम की सबसे बड़ी ताकत निकली…बाबा रामदेव, रिटायर्ड जनरल वी के सिंह और केजरीवाल कंपनी ने बिन बुलाए मेहमान की तरह इस मुहिम की कमान संभालनी चाही लेकिन युवा प्रदर्शनकारियों ने उनके सारे मुगालते दूर करने में ज़रा देर नहीं लगाई…

सरकार में बैठे ज़िम्मेदार लोगों को जब तक युवाओं की ताकत का सही तरह से एहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी…सोनिया गांधी और राहुल को प्रदर्शनकारियों के बीच आना पड़ा, प्रधानमंत्री को जनता के नाम ‘ठीक है’ संदेश देना पड़ा, राष्ट्रपति को बयान देना पड़ा…दिल्ली की मुख्यमंत्री पुलिस कमिश्नर पर ठीकरा फोड़ती नज़र आईं, दिल्ली के उपराज्यपाल ना सिर्फ अमेरिका का दौरा छोड़ कर वापस आए बल्कि दिल्ली पुलिस के एसीपी स्तर के दो अधिकारियों के निलंबन का फ़रमान भी लगे हाथ सुना दिया…ये सब कुछ हुआ….लेकिन सरकार या शासन के किसी नुमाइंदे ने ये बात नहीं सोची कि जिस लड़की के साथ छह नर-पिशाचों ने हैवानियत की हद पार कर दी, उसी लड़की के पिता या परिवार के किसी और सदस्य के नाम से प्रदर्शनकारियों से शांति बनाये रखने की अपील ही जारी करवा दी जाती….

बात जब हाथ से बाहर आ गई तो सरकार हड़बड़ी में फ़ैसले करती नज़र आई…सवाल यहां ये है कि सरकार के इस बार जैसे हाथ-पांव फूले, क्या पहले भी कभी ऐसा हुआ था? हाल-फिलहाल में अन्ना का आंदोलन हो या केजरीवाल के छापामार प्रदर्शन, बाबा रामदेव की विरोध लीला हो या विपक्ष की हुंकार, हर बार सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी…उलटे दंभ दिखाते हुए उसने हर बार यही संदेश दिया कि वो जो चाहेगी, वो करेगी….लेकिन इस बार पहली बार सरकार डरी दिखी…ज़ाहिर है जनता, खास तौर पर युवाओं की ताकत को सरकार भी समझती है…इस ताकत का डर सिर्फ केंद्र सरकार को ही नहीं बल्कि राज्यों में बैठी हर सरकार के मन में भी होना चाहिए…यानि ऐसे विरोध प्रदर्शनों की हर राज्य, हर ज़िले में दरकार है…

ख़ैर ये तो रही सरकार की बात…लेकिन अब इस सवाल पर भी सोचने की ज़रूरत है कि सामूहिक बलात्कार के इस प्रकरण में क्या एक ही कोण पर ही मंथन करने से सारी समस्या हल हो जाएगी….क्या अकेली सरकार को जनता को सुरक्षा देने मे नाकाम मान लेने से ही हमारे कर्तव्यों और दायित्वों की इतिश्री हो जाएगी…

(अगले लेख में... ये हम ही हैं जो मिसकॉल से लौंडिया पटाएंगे जैसे गाने वाली फिल्म की कमाई के रिकॉर्ड बॉक्स ऑफिस पर बनवा देते हैं…फिर इसी फिल्म के दबंग हीरो को दिल्ली में गैंग-रेप की घटना पर दुख जताते हुए बलात्कारियों के लिए सख्त से सख्त सज़ा की मांग करते हुए भी ध्यान से सुनते हैं…)

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Naveen Mani Tripathi
12 years ago

bilkul darana chahiye ….anytha loktantr ka matlab hi kya rh jayega ..prabhavshali lekh ke liye abhar

प्रवीण पाण्डेय

लोकतन्त्र में जनआक्रोश से भय तो होना ही चाहिये। यदि ऐसा नहीं होगा तो लोकतन्त्र सफल नहीं कहा जायेगा।

bkaskar bhumi
12 years ago

खुशदीप जी नमस्कार
पूर्व में हुई चर्चा के अनुसार आपके ब्लाग 'देशनामाÓ के 'जनता नहीं अब सरकार डरती हैÓ शिर्षक के लेख को भास्कर भूमि में प्रकाशित किया गया है। इस लेख को आप भास्कर भूमि के ई पेपर में ब्लॉगरी पेज नं. 8 में देख सकते है। हमारा ई मेल एड्रेस है। http://www.bhaskarbhumi.com
धन्यवाद
नीति श्रीवास्तव

अजित गुप्ता का कोना

आज पोस्‍ट किया मेरा आलेख अवश्‍य पढे।

बेनामी
बेनामी
12 years ago

शानदार लेखन,
जारी रहिये,
बधाई !!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत"

श्री सतीस जी की टिपण्णी की पहली लाइन में आगे जोड़ने की गुस्ताखी कर रहा हूँ ………. जो सबकुछ जानते हुए भी कौंग्रेस को वोट देते है।

Satish Saxena
12 years ago

हम सब अधिक भ्रष्ट हैं, जिम्मेवार हैं …
अगले लेख का इंतज़ार है !

विवेक रस्तोगी

सड़क पर उतर कर विरोध जताना भी मौलिक अधिकार है, और कोर्ट के द्वारा भी जाकर परंतु पता नहीं कितने लोग कोर्ट वाले रास्ते को चुनते हैं ।

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