छोरियां अभी तो छोरों से कम ही दिखें…खुशदीप

तारीख- 18 जून 1983

जगह- टर्नब्रिज, वेल्स

ये तारीख और जगह बहुत खास
है…या यूं कहिए कि भारत के क्रिकेट की टर्निंग प्वाइंट है ये तारीख…इस दिन एक
शख्स ने अकेले दम पर भारतीय क्रिकेट का वो आधार तैयार किया जिसने उस टूर्नामेंट
में ना सिर्फ भारत को पहला वर्ल्ड कप दिलाया बल्कि देश में क्रिकेट के
सुनहरे काल की बुनियाद रख दी…ये शख्स और कोई नहीं भारत के पूर्व
कप्तान कपिल देव हैं…उस तारीख को भारत का मैच जिम्बाब्वे जैसी अपेक्षाकृत
नौसिखिया टीम से था…भारत पहले बैटिंग कर रहा था…लेकिन ये क्या एक के बाद एक
भारत के दिग्गज बैट्समैन पवेलियन लौटने लगे…17 रन बनते बनते भारत के पाँच विकेट
डाउन…गावस्कर 0, श्रीकांत 0, मोहिन्द्र अमरनाथ 5, संदीप पाटिल 1 और यशपाल शर्मा
9 रन बना कर चलते बने…7वें नंबर पर बैटिंग करने कपिल उतरे…तब तक सबने मान
लिया था कि भारत गया काम से और वर्ल्ड कप में उसकी चुनौती खत्म…लेकिन कपिल ने
हार नहीं मानी…अकेले दम पर लड़ने का फैसला किया…रोजर बिन्नी, मदन लाल और
सैयद किरमानी जैसे पुछल्ले बैट्समैन ने कुछ कुछ देर टिके रह कर कपिल का साथ
दिया…भारत की पारी खत्म हुई तो स्कोर था 8 विकेट पर 266 रन…इसमें अकेले कपिल
का स्कोर था 175 रन…कपिल ने ये रन महज़ 138 गेंद में 16 चौक्कों और 6 छक्कों की
मदद से बनाए…फिर भारत ने 235 रन पर जिम्बाब्वे को आल आउट कर मैच 31 रन से जीत
लिया…

आज इस मैच को याद कराने
का मेरा ख़ास मकसद है…इसमें रोमांच, हीरोइज्म़, सुखद नतीजा वो सभी कुछ था
जो  किसी को भी क्रिकेट का मुरीद बना देता…लेकिन अब बताता हूं असली बात…मैं कॉलेज में था और इस मैच की रनिंग कमेंट्री
दोस्तों के साथ रेडियो पर सुन रहा था…सांसें रोक देने वाली कपिल की बैटिंग को
मैं टीवी पर नहीं देख पाया…मैं क्या दुनिया में कोई भी क्रिकेट प्रेमी इस मैच को
टीवी पर नहीं देख सका…ना ही बाद में किसी ने इस मैच की रिकॉर्डिंग को
देखा…दरअसल, इस मैच की रिकॉर्डिग हुई ही नहीं थी…उस दिन बीबीसी में हड़ताल की
वजह से कोई कैमरामैन मैदान में नहीं पहुंचा…सभी क्रिकेटप्रेमी कपिल के करिश्मे को टीवी पर देखने
से वंचित रह गए…मुझे और मेरे दोस्तों को मैच की कमेंट्री रेडियो पर सुनते यही
मलाल हो रहा था कि काश टीवी पर इसे देख पाते…गुस्सा भी बहुत आ रहा था…लेकिन
भारत मैच जीत गया और बाद में वर्ल्ड कप भी जीता…उस खुमार में सारा गुस्सा काफ़ूर हो
गया…

जैसा गुस्सा उस दिन आया,
वैसा ही आज स्टार स्पोर्ट्स 2 चैनल पर आया…दरअसल, आज यानि 8 जुलाई को इंग्लैंड
के लीसेस्टर में महिला ओडीआई वर्ल्ड कप में भारत और साउथ अफ्रीका के बीच मैच
खेला गया…इस मैच में विशेष तौर पर भारत की कप्तान मिताली राज पर पूरी
दुनिया की नजरें थीं…मिताली राज आज के मैच में 41 रन बना लेंती तो दुनिया में
वनडे मैचों में 6000 रन पूरे करने वाली दुनिया की पहली महिला क्रिकेटर बन
जातीं…अफसोस मिताली आज के मैच में ये उपलब्धि हासिल नहीं कर सकीं और साउथ
अफ्रीका के ख़िलाफ़ मैच में बिना खाता खोले ही पवेलियन लौट आईं…भारत मैच भी हार गया…मुझे पूरा
विश्वास है कि मिताली जल्दी ही ये उपलब्धि हासिल कर, शायद अगले मैच में ही,
दुनिया में तिरंगे का मान बढ़ाएंगी…मिताली वैसा ही इतिहास कायम करने में सफल रहेंगी जैसा कि
कभी पुरुष क्रिकेट में सुनील गावस्कर और फिर सचिन तेंदुलकर ने बनाया था…(मिताली पर शुक्रवार को मैंने आंकड़ों के साथ पूरी पोस्ट लिखी थी)…



छुट्टी वाले दिन मैं
बड़े चाव के साथ आज भारत और साउथ अफ्रीका का मैच देखने बैठा…इसी आस के साथ
मिताली को इतिहास बनाते देखूंगा…स्टार स्पोर्ट्स 2 चैनल पर अभी तक महिला वर्ल्ड
कप के मैच आते रहे हैं…सोचा कि आज भी मैच आएगा…लेकिन दोपहर बाद मैच शुरू
होने के वक्त चैनल लगाया तो जो मैच देखना था वो नदारद…आज कोई 1983 की तरह बीबीसी
जैसी हड़ताल भी नहीं थी…फिर क्या वजह ये मैच नहीं दिखाने की…इसके पीछे की वजह
है पुरुष प्रधान मानसिकता…जो चैनल के कर्ताधर्ताओं से लेकर मार्केटिंग एजेंट्स
तक सभी जगह हावी है…ये मैच इसलिए नहीं दिखाया गया क्योंकि इंग्लैंड और साउथ
अफ्रीका की पुरुष टीमों के बीच लॉर्ड्स पर टेस्ट मैच खेला जा रहा था, जिसे दिखाना
इन पुरुष प्रधान सोच वालों के लिए ज़्यादा ज़रूरी था…अरे ये मैच दिखाते तो
महिलाओं का मैच भी दिखाते चाहे दूसरे चैनल पर ही सही…ये तो अच्छा है कि इंटरनेटी युग
है…इसलिए इंटरनेट के जरिए
Hotstar  पर 5 मिनट के
विलंबित प्रसारण के साथ भारत और साउथ अफ्रीका महिला वर्ल्ड कप मैच देखने को मिल गया…

अब यहां दिमाग में एक
कल्पना कीजिए…मान लीजिए पुरुषों का वर्ल्ड कप हो रहा है…वहीं साथ ही किन्हीं
दो देशों में महिला टीमों के बीच टेस्ट मैच हो रहा है…तो क्या कोई टीवी प्रसारक
ऐसी ज़ुर्रत करेगा कि पुरुषों के वर्ल्ड कप मैच को ना दिखाकर महिलाओं के टेस्ट मैच
को दिखाए…हर्गिज नहीं दिखाएगा जाएगा…क्योंकि दुनिया पुरुष प्रधान सोच और
बाज़ारवाद से चलती है…महिलाओं के मैच को टीवी पर दिखाना टीआरपी के नजरिए से फिलहाल
बिकाऊ सौदा नहीं है, इसलिए उसे गिराने के फैसले में पलक झपकने का भी वक्त नहीं लिया…

हम अपने देश पर ही आते
हैं…ज़रा दिल पर हाथ रख कर बताइए कि जैसे हम क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर, महेंद्र
सिंह धोनी, विराट कोहली आदि को सिर आंखों पर बिठाते हैं, वैसे हमने क्या कभी
मिताली राज या बोलिंग लीजेंड झूलन गोस्वामी को मान दिया है…एक ही खेल है…खेल
के प्रशासक भी वही हैं, फिर ये भेदभाव क्यों
? स्टार पुरुष क्रिकेटर्स पर पैसों की बरसात तो महिला स्टार क्रिकेटर्स
पर क्यों नहीं…मिताली राज और झूलन गोस्वामी दोनों की उम्र आज 34 वर्ष है…दोनों ही डेढ़
दशक से भी ज्यादा से भारत की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नुमाइंदगी कर रही
हैं…मिताली राज 2004 में ही कप्तान बन गई थीं…इतने लंबे समय तक तो शायद भारतीय
पुरुष टीम में कोई भी कप्तान नहीं रहा…महेंद्र सिंह धोनी भी नहीं…

यहां अगर मैं कहूं कि
रातों रात भेदभाव खत्म हो जाएगा और महिलाओं से खेलों में बराबरी का व्यवहार होने
लगेगा तो ये सिर्फ कोरी कल्पना ही होगी…फिर ये भेदभाव कैसे खत्म होगा…ये तभी
होगा जब हम सबसे पहले अपनी मानसिकता बदलेंगे…अधिक से अधिक बेटियां खेल में करियर
बनाने के लिए आगे आएं…कोई मिताली-झूलन जी-तोड़ मेहनत कर नाम कमाएं तो उन्हें भी
बीसीसीआई, सरकार और प्रायोजकों की तरफ़ से वैसा ही प्रोत्साहन मिले जैसा कि पुरुष
स्टार क्रिकेटर्स को मिलता है…ऐसा माहौल बनेगा तो अधिक लड़कियां खेलों की ओर
प्रेरित होंगी…क्रिकेट ही क्यों, हर खेल में ही क्यों नहीं…यहां
दंगलफिल्म का डॉयलॉग याद आता है, मेडल छोरा लाए या छोरी, मेडल
तो मेडल ही होता है, उससे मान तो तिरंगे का ही बढ़ता है…अब
दंगल में कोई तो बात होगी जो
चीन जैसे खेल प्रधान देश में भी उसका जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है…

भारत में सानिया मिर्जा
(टेनिस), साइना नेहवाल, पीवी सिंधू (बैडमिंटन) जैसी कुछ खिलाड़ी अपनी मेहनत से
ऊंचे मकाम पर पहुंची लेकिन जहां महिलाओं की टीम स्पर्धाओं का उल्लेख होता है तो
उन्हें कवरेज के लिहाज से बोरिंग ही माना जाता है…कवरेज में सबसे ज्यादा भेदभाव
होता है…रिसर्च बताती हैं कि स्पोर्ट्स मीडिया आउटलेट्स महिलाओं के गेम की कवरेज
को हल्के में लेते हैं…सुस्त कैमरावर्क, कम एक्शन रीप्ले और सब स्टैंडर्ड
कमेंट्री…जबकि आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में विजिबिलिटी ही मैटर करती है…


महिला खेलों को देखने के
लिए जितने दर्शक बढ़ेंगे, उतना ही उनसे भेदभाव खत्म होगा…मार्केट फोर्सेज भी
मजबूर होंगी…महिला खेलों के लिए अधिक स्पॉन्सर्स आगे आएंगे…उन्हें मेहनताने के
तौर पर अच्छी रकम मिलेगी…ब्रैंड इमेजिंग वाली कंपनियां महिला खिलाड़ियों को भी
तवज्जो देने लगेंगी…

अभी ये तर्क दिया जाता है कि महिला खेल स्पर्धाओं को अधिक
दर्शक नहीं मिलते, इसलिए उन्हें टीवी और मार्केट में ज्यादा भाव नहीं दिया
जाता…लड़कियां स्पोर्ट्स को करियर बनाने के लिए ज्यादा आगे आएं…साथ ही स्पॉन्सरशिप्स, कवरेज, खेल संगठनों और आयोजकों में भी पूर्व खिलाड़ी रह चुकी महिलाओं
और कुशल महिला प्रशासकों को अधिक जगह मिले तो उनकी सुनी भी जाएगी…अभी तो उनकी
भागीदारी ना के बराबर है…इस दिशा में खेल मंत्रालय समेत राज्य
सरकारों को भी ध्यान देना होगा…योग्य 
महिला खिलाड़ियों को छात्रवृत्ति, सरकारी नौकरी देकर पुरुस्कृत किया जाना
चाहिए…उन्हें ये चिंता नहीं होनी चाहिए कि स्पोर्ट्स को करियर बनाने से सम्मानित
जिंदगी जी पाएंगी या नहीं…

यहां हम सब को सोच बदलनी होगी…अभी पाकिस्तान के पूर्व
क्रिकेट कप्तान और सीमर वकार यूनुस ने ट्वीट में कहा है कि महिलाओं के वनडे मैचों
के लिए ओवर्स की संख्या 50 से घटा कर 30 कर देनी चाहिए…ये खेल को अधिक मनोरजंक
और प्रतिस्पर्धात्मक बनाएगा…कम ओवर होंगे तो तेज गति होगी मतलब ज्यादा दर्शक
आएगे…यूनुस के मुताबिक 50 ओवर महिलाओँ के लिए बहुत ज्यादा होते हैं यानि इतने
ओवर्स खेलने के लिए जितना स्टैमिना होना चाहिए उतना महिलाओं के पास नहीं
होता…वकार यूनुस ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए ये तर्क भी दिया है कि
टेनिस में भी तो पुरुषों के लिए मैच में 5 सेट और महिलाओं के लिए सिर्फ 3 सेट ही
रखे जाते हैं…यूनुस ये लिखना भी नहीं भूले कि उनके बयान को महिलाओं को लेकर भेदभाव
से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए और ना ही उनके मन में कोई दुर्भावना है…
इस सोच के पीछे वकार के
अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन इसका सटीक जवाब ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेटर एलिसा हीली
ने दिया…हीली ने कहा कि महिलाओँ के 50 ओवर के मैच में 530 रन बनना क्या मनोरंजक
नहीं है…एक ही  मैच में दो खिलाड़ियों ने
शानदार प्रदर्शन किया…हीली महिला वर्ल्ड कप में हुए ऑस्ट्रेलिया-श्रीलंका मैच का
हवाला दे रही थीं…इस मैच में श्रीलंका की चमारी अट्टापट्टू ने 178 रन की पारी
खेली…इसका जवाब ऑस्ट्रेलियाई कप्तान मेग लेनिंग ने 152 रन नाबाद की पारी से अपनी
टीम को जिता कर दिया…

आपने सब बातें पढ़ लीं
लेकिन अभी सबसे अहम आना बाकी हैं…वो है एक पत्रकार के सवाल में भारतीय महिला टीम
की कप्तान मिताली राज का जवाब…दरअसल इस वर्ल्ड कप के लिए भारत से इंग्लैंड
रवानगी से पहले बेंगलुरू में मिताली राज से किसी पत्रकार ने ये सवाल पूछ लिया था
कि उनका सबसे पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर कौन है
? इस सवाल का जवाब देने में मिताली ने एक मिनट की भी देर नहीं लगाई…मिताली ने
पलटकर कहा कि यही सवाल पुरुष क्रिकेटर्स से क्यों नहीं पूछा जाता कि उनकी पसंदीदा
महिला क्रिकेटर कौन सी है
मिताली ने कहा कि मुझसे ये सवाल अक्सर किया जाता है…क्यों
मेरा पसंदीदा क्रिकेटर पुरुष ही होना चाहिए, महिला क्रिकेटर क्यों नहीं…

मिताली ने सुलझा हुआ जवाब
दिया कि पुरुष क्रिकेटर्स को लेकर कोई दुर्भावना नहीं है…बल्कि पुरुष क्रिकेटर्स
ने कुछ मानदंड तय कर रखे हैं जहां तक महिला क्रिकेटर्स को पहुंचना है…हम इसलिए
पुरुषों का क्रिकेट देखते हैं कि हमारा स्तर भी उन तक पहुंच जाएं…मिताली ने ये
बात मानी कि महिला क्रिकेटर्स को लेकर अब स्थिति में बदलाव आना शुरू हुआ है…इसके
लिए बीसीसीआई की कोशिशों की उन्होंने तारीफ भी की…मिताली ने कहा कि पहले महिला
क्रिकेट मैचों का टीवी पर प्रसारण नहीं होता था इसलिए उनके बारे में कोई ज्यादा
जानता नहीं था…लेकिन बोर्ड ने पिछली दो सीरीज का टीवी प्रसारण किया है…इसके
अलावा सोशल मीडिया के आने से भी महिला खिलाड़ियों के हक में आवाज उठने लगी है….

मिताली की आखिरी बात पर
ही मेरा जोर है…सोशल मीडिया हमारे हाथ में है…वहां तो हम महिला खिलाड़ियों के हक़ में पुरजोर
आवाज़ उठा ही सकते हैं…ऐसा होगा तो खेल के कर्णधारों पर दबाव बढ़ेगा…महिला
खिलाड़ियों को अधिक से अधिक मौके, मान-सम्मान मिले, यही हमारी कोशिश होनी
चाहिए…यहां सवाल पुरुष खिलाड़ियों को कम कर आंकने का नहीं बराबरी का है…हमारे
छोरे कमाल के हैं तो हमारी छोरियां भी किसी से कम हैं के…

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