छिनने वाली है ब्लॉगरों की आज़ादी…खुशदीप

अब इसे ब्लॉगिंग की ताकत कहिए या कुछ ब्लॉगरों की निरंकुशता, सभी ब्लॉगरों की आज़ादी छिनने वाली है…सरकार ब्लॉगिंग में जो कहा-लिखा जा रहा है उसके असर को अच्छी तरह समझ रही है…समझ रही है कि आने वाले वक्त में ब्लॉगिंग ट्यूनीशिया और मिस्र की तरह कहीं सत्ता में बदलाव का ही सबब न बन जाए इसलिए सरकार ब्लॉगिंग पर लगाम कसना चाहती है…और उसका काम आसान कर रहे हैं वो ब्लॉगर जो बिना सोचे-समझे धार्मिक विद्वेष, बिना सबूत अनर्गल आरोप, दूसरे की मान-हानि करने वाले शब्दों का इस्तेमाल या यौनिक गालियों का इस्तेमाल पोस्ट या कमेंट में करते हैं…सरकार इसी को आधार बनाकर ब्लॉगिंग पर सेंसरशिप लागू करना चाहती है…पहले हम खुद को एक संपादक की तरह अपने लिखे को संयमित करें, फिर सरकार के इस कदम का एकजुट होकर विरोध करें…नहीं तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घुटना तय है…

इस संदर्भ में इकोनॉमिक्स टाइम्स में छपी श्रीविद्या अय्यर की ये रिपोर्ट पढ़िए…

ब्लॉग पर डाला जाने वाला कंटेंट नियंत्रित करने से जुड़े सरकार के प्रस्तावित कदम को ब्लॉगिंग समुदाय की ओर से तीखे विरोध का सामना करना पड़ा है। ब्लॉगिंग कम्युनिटी का इल्जाम है कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगा रही हैं और उन्होंने इसे पुलिसिया शासन स्थापित करने की कोशिश करार दिया। दरअसल, इस विवाद की जड़ में जो मुद्दा है वह भारतीय आईटी अधिनियम है, जिसमें 2008 में संशोधन किया गया था। इस संशोधन का लक्ष्य यह था कि मध्यस्थों या वेब-होस्टिंग सेवाएं मुहैया कराने वालों, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों या ऑनलाइन नीलामी साइट की कानूनी स्थिति में स्पष्टता लाने के लिए बहुप्रतीक्षित बदलाव लाए जा सकें।


हालांकि, कुछ कारणों की वजह से मध्यवर्ती संस्थाओं की टर्म का दायरा बढ़ाकर ब्लॉग तक कर दिया गया है, हालांकि न तो वे आईएसपी जैसी सेवाएं मुहैया कराते हैं और न ही बड़े पैमाने पर कमर्शियल हित रखते हैं। कानून में कहा गया है कि सरकार को वे नियम स्पष्ट करने चाहिए, जिनके तहत मध्यस्थों को काम करना चाहिए और साथ ही उन पाबंदियों की जानकारी भी देनी चाहिए, जो उन पर लगाई जाती हैं। पाबंदियों की यह सूची पिछले महीने प्रकाशित कराई गई थी और आम जनता, ब्लॉगर और मध्यवर्ती समूह के अन्य सदस्यों की ओर से टिप्पणियां आमंत्रित की गई थीं। इंटरमीडियरीज में वेब होस्टिंग प्रोवाइडर शामिल हैं, जिनमें एमेजॉन जैसी कंपनियां, साइबर कैफे, पेपाल जैसी पेमेंट साइट, ऑनलाइन नीलामी साइट, बीएसएनएल तथा एयरसेल जैसी इंटरनेट सविर्स प्रोवाइडर आदि शुमार हैं।


सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और साइबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने कहा, ‘यह बुनियादी रूप से खामियों से भरी प्रक्रिया है। आपको ब्लॉगर की बारीक भूमिका को दिमाग में रखना होगा। सरकार को ब्लॉगिंग समुदाय की ताकत समझने की जरूरत है। ब्लॉग की दुनिया को नियम के हिसाब से खुद को बदलने के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन क्योंकि इंटरमीडियरीज नामक टर्म का इस्तेमाल हल्के में या अस्पष्ट रूप से भी होता है, ऐसे में विरोध जताने वाले ब्लॉगर अपनी जगह बिलकुल ठीक हैं।’ एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने सरकार की प्रतिक्रिया का बचाव किया। उन्होंने कहा, ‘हम इसे अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में शामिल हैं। हम सकारात्मक प्रतिक्रिया और रचनात्मक आलोचना का स्वागत करते हैं। मुमकिन है कि हमने जनता का पहलू समझने में चूक कर दी हो। जनता का अलग नजरिया भी हो सकता है।’


ब्लॉगर समुदाय को डर है कि सरकार इन नियमों के तहत किसी भी बात के लिए लेखकों पर आरोप लगा सकती है। ट्विटर पर ऑनलाइन यूजर और ब्लॉगरों ने एकसुर में इस मुद्दे पर अपना गुस्सा और झल्लाहट निकाली। डिजिटल बिजनेस न्यूज वेबसाइट मीडियानामा के संस्थापक और संपादक निखिल पाहवा ने कहा, ‘हम सरकार को न्यायाधीश, जूरी और फांसी पर चढ़ाने वाले की भूमिका अदा करने की इजाजत नहीं दे सकते। हमारा समूचा लक्ष्य वर्ग भारतीय हैं। अगर हमारी साइट ब्लॉक की जाती है, तो हम मारे जाएंगे। मैं एक छोटा खिलाड़ी हूं, ऐसे में जो कुछ बना है, वह सब एक झटके में बिखर जाएगा।’