चाणक्य की राजनीति का पहला पाठ…

राजनीति के आदिगुरु चाणक्य ने करीब दो हजार साल पहले अपने शिष्य चंद्रगुप्त को राजनीति का पहला पाठ पढाया था तो खीर भरी थाली का सहारा लिया…पाठ ये था कि थाली के बीचोंबीच मुंह मारने की जगह पहले किनारों से खाना रणनीतिक दृष्टि से श्रेयस्कर होता है…यानी पहले अपनी बाहरी किलेबंदी को मज़बूत करो, फिर केंद्र में आओ…

2000 साल बाद…

आज की राजनीति का पहला पाठ…

देश की राजनीति का आज सबसे बड़ा सच क्या है…हर नेता को चिंता है कि जीते-जी खुद सत्ता-सुख उसकी चेरी बना रहे..और रिटायरमेंट लेने से पहले ही अपने वारिसों को राजनीति की विरासत के साथ स्थापित होते देख लिया जाए…लेकिन एक नेता जी ने अपनी राजनीतिक पारी कुछ लंबी ही खेल ली… 70 पार जाने के बाद भी उनका रिटायरमेंट जैसा कोई इरादा नहीं बन रहा था…ये देख-देख कर नेताजी का बेटा व्याकुल होने लगा…एक दिन उसने पिता को घेर ही लिया…अब आप बस भी करिए…बहुत कर ली आपने राजनीति…अब तो आराम से घर बैठिए और राजनीति करने के लिए…मैं हूं ना…बस अब आपके पास जो भी गुर हैं, वो मुझे सिखा दीजिए…नेताजी ने बेटे की अधीरता देखी… कहा…चलो घर की छत पर चलते हैं…छत पर जाकर नेताजी ने बेटे से कहा… अब यहां से नीचे छलांग लगा दो…बेटा अचकचाया…पिता ने दोहराया…जैसा मैं कह रहा हूं, वैसा ही करो… मरता क्या न करता, राजनीति में जो आना था, सो बेटे ने छलांग लगा दी..नीचे गिरने पर बेटे की टांग टूट गई…फ्रैक्चर हो गया…थोड़ा होश आया तो बेटे ने नेताजी से कहा…ये कौन सा बदला लिया…मैंने आपसे राजनीति सिखाने को कहा और आपने मेरा ये हाल कर दिया…इस पर नेताजी का जवाब था…यही राजनीति का पहला पाठ है…अपने बाप की भी बात पर भरोसा न करो…

स्लॉग ओवर
मक्खन एक पार्टी में यार-दोस्तों के साथ ज़्यादा ही टल्ली हो गया…झूमता…लड़खड़ाता घर आया…मक्खनी ने दरवाजा खोला…मक्खन ने आधी बंद आंखों से ही देखा और बोला…सॉरी मैडम…लगता है गलत कॉल बेल बजा दी…
मक्खनी पहले से ही भरी बैठी थी…फट पड़ी…बस यही नौबत आनी रह गई थी…नशे में इतनी अक्ल मारी गई कि पत्नी को भी भूल गए…
मक्खन…माफ़ करना बहन, नशा आदमी को बड़े से बड़ा गम भुला देता है…

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