गाय, कांवड़ और मोदी सरकार…खुशदीप

शनिवार 7 अगस्त को दो
बयान सामने आए…एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एक विपक्षी नेता शरद यादव का…शरद
जेडीयू से जुड़े हैं, जिस पार्टी ने लंबे समय तक एनडीए में बीजेपी से गलबहियां
करने के बाद बिहार चुनाव से ऐन पहले अलग रास्ता पकड़ लिया था…विद ड्यू
रिस्पेक्ट टू सुशासन बाबू नीतीश कुमार…



हां तो मुद्दे की बात पर
आता हूं…पीएम मोदी जी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तर्ज़ पर
टाउनमें जनता के कथित सवालों का जवाब दे रहे थे…इसी कार्यक्रम
में गोरक्षकों को लेकर मोदी ने कहा कि इनमें से 80 फीसदी के करीब लंपट हैं जो रात
को उल्टे-सीधे काम करते हैं और सुबह गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं…कुल मिलाकर
पीएम ने ऐसे पाखंडियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की नसीहत दे डाली…लेकिन सवाल ये कि
बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन

ज़ाहिर है ऐसे लंपटो पर डंडा चलाने की बात आएगी
तो केंद्र सरकार कहेगी कि ये राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है…

उधर, शरद यादव ने कहा कि
सावन में सड़कों पर कावंडियों के सैलाब उमड़ आने को देखकर लगता है कि देश में
कितनी बेरोज़गारी है…शरद के कहने का मतलब ये कि जिनके पास नौकरी या कामधंधा नहीं
है वहीं कावंड़ लाते हैं…

अब गाय और कांवड़ दोनों
ही संवेदनशील मुद्दे हैं…दोनों से हिंदुओं की आस्था का सवाल जुड़ा है…पीएम
मोदी ने गोरक्षकों को लेकर जो कहा, उसमें काफ़ी हद तक सच्चाई है…लेकिन बात क्या
सिर्फ़ कह देने भर से ख़त्म हो जाती है…अगर रात को शैतान और दिन में साधु बन
जाने वाले लोग सक्रिय हैं तो उन्हें हर हाल में बेनकाब किया जाना चाहिए…

दरअसल, यही लोग हैं जो
सच्चे गोभक्तों का नाम बदनाम कर रहे हैं…मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं, जो
निराश्रित गायों को सहारा देकर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं…ऐसी गायें जो त्याग
दिए जाने के बाद सड़कों पर मारी-मारी घूमती रहती है…ये कूड़े से पॉलिथीन की
थैलियों समेत खाने के सामान को चट करती रहती हैं…यही पॉलिथीन उनकी मौत की वजह बन
जाता है…ऐसी गायों को घर की बनी रोटी डालो भी तो उसे मुंह तक नहीं
लगातीं…इन्हें कचरा खाने की आदत जो पड़ गई होती है…अब ऐसी गायों को आश्रम में ले
जाकर जो उनकी निस्वार्थ सेवा करते हैं, वो वास्तव में धन्य हैं…लेकिन फ़र्जी गोरक्षकों
की वजह से ऐसे सच्चे गऊ सेवकों को भी परेशानी और बदनामी का सामना करना पड़ रहा
है…

पीएम फ़र्जी गोरक्षकों के
सचमुच गंभीर हैं तो उन्हें गुजरात के उना में दलितों के साथ गोरक्षा के नाम पर जो
हुआ या राजस्थान की गऊशाला में बड़ी संख्या में गायों के मरने की घटना पर सख्त कदम
उठाना चाहिए था…बेशक क़ानून और व्यवस्था राज्य सरकारों के अधीन है, लेकिन इन
दोनों राज्यों में बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकारें हैं, ऐसे में वहां वक्त रहते
केंद्र नकेल तो कस ही सकता था…

गाय को लेकर पीएम मोदी ने
इतिहास का हवाला देकर एक और दिलचस्प बात कही…उन्होंने कहा कि बादशाहों और राजों
में जब युद्ध होता था तो बादशाह गायों को आगे कर देते थे…इससे राजा धर्मसंकट में
पड़ जाते थे कि गायों को मारा तो पाप के भागीदार बन जाएंगे…इसी पसोपेश में वो
युद्ध हार जाते थे…अब यहां पीएम ने नाम तो नहीं लिया, लेकिन उनका तात्पर्य
बादशाह से मुसलमान शासक और राजा से हिंदू शासक ही रहा होगा…ऐसे कौन से बादशाह थे
और कौन से राजा थे, उनका नाम जानने में मेरी दिलचस्पी है…कृप्या इतिहासविद् और विद्वान
ऐसे इतिहास पर प्रकाश डालें तो उनका आभारी रहूंगा…

अब आते हैं, शरद यादव की
बात पर…कावंड़ियों को उन्होंने बेरोज़गारी के साथ जोड़ा, उसमें पूर्णत
नहीं तो काफ़ी हद तक सच्चाई है…कावंड़ के दिनों में हरिद्वार
को आने-जाने वाले मार्गों पर हफ्ते-10 दिन के लिए सामान्य वाहनों की आवाजाही ठप
पड़ जाती है…एक-दो दिन बच्चों के स्कूल तक बंद कर दिए जाते हैं…ये सच है कि
आस्था का सवाल होने की वजह से इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती…लेकिन केंद्र और
राज्य सरकार कांवड़ को लेकर कोई नीति तो बना सकती हैं…क्या ऐसे वैकल्पिक मार्ग
नहीं बनाए जा सकते कि कावंड़ यात्रा भी चलती रहे और सामान्य वाहनों की आवाजाही भी,
जिससे अन्य लोगों को भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़े…कांवड़ यात्रा के लिए
बड़े बड़े ट्रकों पर डीजे चलने देने का औचित्य भी मेरी समझ से परे हैं…

जहां तक बेरोजग़ारी का
सवाल है तो मोदी सरकार ने सत्ता में आने पर हर साल एक करोड़ रोज़गार देने का वादा किया
था…मोदी सरकार के 27-28 महीनों में इस दिशा में कितनी प्रगति हुई है ये वही बेहतर
बता सकती है…सत्ता में आने से पहले इस सरकार ने अपना एक ही एजेंडा बताया
था….विकास, विकास और विकास….लेकिन बीते ढाई साल की ओर मुड़ कर देखें तो विकास
नेपथ्य में चला गया…अगर कुछ दिखा तो वो बस गाय…गाय इतनी चर्चा में रही कि अगर
टाइम मैगजीन को भारत से पर्सन ऑफ द ईयर चुनना होता तो पिछले दो साल से गाय ही चुनी
जातीं…यहां तक कि सोशल मीडिया पर चुटकी लेने वालों ने
MyGov.in की जगह MyGau.in कहना शुरू कर दिया…इसके अलावा भी कुछ मुद्दे हावी दिखे
जिनका देश के विकास से कोई लेना-देना नहीं दिखा…मीडिया भी टीआरपी उगाहू लेकिन
निरर्थक मुद्दों को हवा देता रहा…



सवाल यहां ये बड़ा है कि
आए दिन इवेंट्स कराते रहना ही सरकार का काम है या धरातल पर देश के नागरिकों, खास
तौर पर वंचितों को राहत पहुंचाना…राज्यों में चुनाव
आना जाना तो लगातार लगा ही रहता है…अगर केंद्र की सारी नीतियां कभी बिहार जीतने तो
कभी यूपी जीतने को लेकर बनाई जाती रहेंगी तो फोकस कभी पूरे देश के भले पर नहीं टिक
सकेगा…केंद्र सरकार को ये नहीं भूलना चाहिए कि 2019 में वोट पड़ेंगे तो वो इस
बात पर नहीं कि राज्यों में चुनाव जीतने के लिए क्या साम-दाम-दंड-भेद अपनाए
गए…तब वोट इस बात पर पडेंगे कि आपने पूरे देश, यहां के हर नागरिक के लिए बिना
किसी भेदभाव क्या डिलीवर किया….अब भी आधा कार्यकाल शेष है…बहुत कुछ किया जा
सकता है…वरना ये जो पब्लिक है, वो सब जानती है….
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