गरीबों से मज़ाक है रसोई गैस योजना…खुशदीप

महंगे LPG  सिलेंडर को दोबारा भरवाने के लिए पैसे कहां से लाएं  गरीब?

धूल फांक रहे हैं
कनेक्शन, माताएं-बहनें लकड़ी और गोबर के उपलों पर खाना बनाने को मजबूर
फोटो आभार- अरविंद गुप्ता/HT

प्रधानमंत्री
उज्ज्वला योजना (
PMUY)  को मोदी सरकार की क्रांतिकारी योजना के तौर पर प्रचारित किया गया. कहा गया कि इससे
माताओं और बहनों को लकड़ी और गोबर के उपलों के धुएं में खाना बनाने से छुटकारा मिल
जाएगा. दावा किया गया कि योजना गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले यानि
BPL परिवारों  की बेहतरी के लिए बनाई गई. 

प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक देश के 715 जिलों में 20 सितंबर 2018 तक 5,52,75,806 कनेक्शन बांटे जा चुके हैं. 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया में योजना को लॉन्च करते वक्त कहा गया था कि तीन साल में पांच करोड़ PMUY  कनेक्शन वितरित करने का लक्ष्य रखा गया है. इस तरह मोदी सरकार ढाई साल में ही लक्ष्य से आगे निकल गई. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये योजना अपने उद्देश्य को पूरा कर रही है?  क्या वाकई ये योजना उज्ज्वल है?  या इसमें धुआं अधिक भरा है?


सच्चाई जाननी है तो देश के किसी भी ग्रामीण इलाके में जाकर योजना की कथित लाभार्थी महिलाओं से पूछिए. पूछना छोड़िए उन्हें बस खाना बनाते ही देख लीजिए. PMUY कनेक्शन किसी कोने में पड़ा धूल खा रहा है और महिलाएं लकड़ी या गोबर के उपलों पर खाना बनाने के लिए मजबूर हैं. चूल्हे में फूंक मारते उनकी आंखों में आंसू देखे जा सकते हैं.

योजनाओं को अगर बिना सोचे समझे अमल में लाया जाता है तो उनका यही हाल होता है. सरकार धड़ाधड़ लक्ष्य पूरा होता दिखाने में ही सारा ज़ोर लगा रही है. उसे ये जानने की सुध नहीं कि जिन परिवारों के लिए ये योजना लाई गई, वो इसका कोई फायदा ले भी पा रहे हैं या नहीं

PMUY  में सरकार से आख़िर मिलता क्या है?

आइए पहले जानते हैं कि PMUY  के आवेदक को सरकार की ओर से मिलता क्या हैइसमें सरकार की ओर से एक रसोई गैस कनेक्शन देने पर 1600 रुपए की नकद सहायता दी जाती है. इस राशि में शामिल हैं-
-14.2 किग्रा/5 किग्रा सिलेंडर की ज़मानत राशि
-रेग्युलेटर की ज़मानत राशि
-1.2 मीटर की पाइप (जिससे सिलेंडर से चूल्हे को जोड़ा जाता है)
-इंस्टालेशन चार्ज
DGCC बुकलेट जारी करने की लागत  
ये तो हुआ सिर्फ कनेक्शन. लेकिन इसके अलावा चूल्हा, पहले सिलेंडर में भरी  LPG के दाम के लिए भी तो पैसे चुकाने होते हैं. तो इसके लिए ये प्रावधान किया गया कि जो आवेदक चूल्हे और पहले सिलेंडर में भरी LPG  के दाम चुकाने की स्थिति में नहीं हैं वो EMI का विकल्प अपना सकते हैं. ये सुविधा ऑयल मार्केट कंपनियों (OMCs)  की ओर से दी जाती है. इसके तहत लाभार्थी को कनेक्शन लेते वक्त चूल्हे और पहले सिलेंडर में भरी LPG  के लिए भी कुछ नहीं देना होता. लेकिन ये पैसा ऑयल मार्केटिंग कंपनियां उसे आगे LPG  सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी में से काटती हैं. 

इसे ऐसे समझिए कि जब आवेदक पहला LPG सिलेंडर खत्म होने पर दूसरा सिलेंडर लेगा तो उसे उस पर मिलने वाली सरकारी सब्सिडी नहीं मिलेगी. ये सब्सिडी ऑयल मार्केटिंग कपंनियों तब तक लेंगी जब तक चूल्हे और पहले सिलेंडर में भरी LPG के दाम वसूल नहीं हो जाते.
अब यही से पता चलता है कि योजना को लागू करते समय दूरदर्शिता से काम नहीं लिया गया. ये नहीं सोचा गया कि BPL परिवार को कनेक्शन तो मिल गया लेकिन हर महीने मंहगे सिलेंडर रीफिल के लिए वो पैसे कहां से लाएगा.  अगर उसके पास 850-900 रुपए का सिलेंडर रीफिल हर महीने लेने की ताकत होती तो वो 1600 रुपए कनेक्शन लेते वक्त भी दे देता. सरकार को अपने ऊपर ये अहसान करने का मौका ही क्यों देता?  ऐसा करके वो अपना स्वाभिमान तो बचाए रखता.

PMUY कनेक्शन लेने वाले दोबारा LPG सिलेंडर रीफिल कराने के लिए कम ही सामने आए तो सरकार ने अप्रैल 2018 से ट्रैक कुछ बदला. कहा गया कि छह सिलेंडर रीफिल कराने तक उस पर दी जाने वाली सब्सिडी नही कटेगी. यानि चूल्हे और पहले सिलेंडर की LPG के दाम जो लाभार्थी से ऑयल मार्केटिंग कपंनियों ने वसूलने थे वो छह रीफिल पूरे होने के बाद सब्सिडी काट कर वसूले जा सकेंगे. लेकिन इस एलान से भी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया. 
हिन्दुस्तान टाइम्स डॉट कॉम की एक हालिया रिपोर्ट  से PMUY की वस्तुस्थिति का अंदाज लगाया जा सकता है . इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सूबे यानि उत्तर प्रदेश में योजना के एक तिहाई लाभार्थी  दोबारा LPG  सिलेंडर रीफिल लेने नहीं आए. बाकी लाभार्थियों ने साल में औसतन दो-तीन बार ही रीफिल कराया. जबकि हर कनेक्शन साल में 12 सिलेंडर लेने का हकदार है. कमोवेश उत्तर प्रदेश जैसे ही हालात देश के अन्य राज्यों में भी हैं.
सरकार के पास ये आंकड़े तो हैं कि किस राज्य में, किस जिले में कितने PMUY  कनेक्शन बांट दिए गए. लेकिन ऐसे कोई आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं कि कितने लाभार्थी ड्रॉप आउट कर गए हैं और दोबारा LPG रीफिल लेने के लिए नहीं आ रहे हैं. बुंदेलखंड और पूर्वांचल जैसे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े इलाकों में स्थिति ज्यादा विकट है. ऐसे इलाकों में लकड़ी और गोबर के उपलों पर खाना बनाते दिखने वाली महिलाओं से बात की जाए तो वो कहती हैं कि भइया पहले बच्चों की खिलाई, दवाई, पढ़ाई देखें या रसोई गैस सिलेंडर की महंगी भराई कराएं.
बहरहाल, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मिलने वाला रसोई गैस  कनेक्शन BPL परिवारों के साथ किसी मज़ाक से कम नहीं. ये ठीक वैसे ही है जैसे किसी को कार तो दे दी गई लेकिन वो उसे चला नहीं सकता क्योंकि पेट्रोल भरवाने के लिए उसके पास पैसे ही नहीं है. इस तरह की योजनाओं के लक्ष्य पूरा करने की बाज़ीगरी से जरूरतमंदों का कोई भला नहीं होने वाला. 

बेहतर यही होगा कि आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति की क्रय शक्ति (Purchasing Power)  बढ़ाने के उपाय किए जाएं. वो आर्थिक दृष्टि से इतना सक्षम बने कि सिर उठा कर कहे- मैं रसोई गैस कनेक्शन भी खुद ले सकता हूं और सिलेंडर भी खुद भरा सकता है. इसके लिए उज्ज्वला योजना जैसी किसी सरकारी बैसाखी की मुझे जरूरत नहीं. यही स्वाभिमान उसके लिए भी उज्ज्वल होगा और देश के भविष्य के लिए भी.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

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Lokesh Vijay
5 years ago
अरुण चन्द्र रॉय

जमीनी हकीकत इतना भयावह नहीं है खुशदीप जी। ५ करोड़ लोगों में से कम से कम चार करोड़ लोग रिफिल करा रहे हैं। इस से पूर्व इतने लोगों को तक गैस कनेक्शन सुगमता से नहीं पहुंचे थे, यह बात कोई नहीं कह रहा।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मानवीयता की प्रतिमूर्ति रवि शाक्या को नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है…. आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी….. आभार…

Unknown
6 years ago

कही ना कही झोल है हमारे यहाँ जो गरीब लोग बागों से लकड़ी तोड़कर और गोबर के उप्ले इस्तमाल करते थे अब खुश है। कीमत का फर्क बहुत कम लोगों पर असर डाल रही है। ऐसा लगता है मीडिया ज्यादा परेशान है क्योंकि ऊपर की कमाई कुछ कम हो गई है।

Khushdeep Sehgal
6 years ago

हरि भाई मुझे अपने फेसबुक पेज पर इस पोस्ट पर ऐसे भी कमेंट मिल रहे हैं जिसमें गरीबों को मुफ्तखोर कहा जा रहा है…कहा जा रहा है कि इन्हें बना बनाया खाना भेजा जाना चाहिए…फ्री पेट्रोल, फ्री मोबाइल (10 जीबी डाटा रोज मुफ्त) के साथ दिया जाना चाहिए…ये मुफ्तखोर शराब पर तो पैसे खर्च कर सकते हैं रसोई गैस पर नहीं…अब इसके आगे और क्या रह जाता है…जवाब में मैंने लिखा है, "इससे भी बढ़िया उपाय है सल्फास- ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी…सारा झंझट ही खत्म…कोई गरीब नहीं…देश में सब अमीर ही अमीर…फिर बल्ले ही बल्ले…"

सवाल ये भी पूछा जाना चाहिए कि खाना महिलाओं को बनाना पड़ता है…ग्रामीण क्षेत्र की कितनी महिलाएं होंगी जो ऊपर फरमाई विलासिता की चीज़ें फरमाती होंगी…

जय हिन्द…

Hari Joshi
6 years ago

आपने तो दूध में मिले पानी को ही अलग कर दिया।

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