गंदा है पर धंधा है ये…खुशदीप

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जल्द ही शुरू होने वाली वन डे सीरीज के लिए भारतीय टीम चुन ली गई है…बताया जाता है कि कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के कहने पर राहुल द्रविड़ को बाहर का रास्ता दिखाया गया…लेकिन लाख जोर लगाने पर भी धोनी अपने चहेते आर पी सिंह को टीम में जगह न दिला सके…यानि धोनी और सेलेक्टर्स के बीच टीम के चयन को लेकर मतभेद खुल कर सामने आ गए…

इस खींचतान से पहले क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चीफ ए़डमिनिस्ट्रेटिव आफिसर रत्नाकर शेट्टी नए खिलाड़ियों के व्यवहार को लेकर इतने क्षुब्ध नजर आए कि बोल ही पड़े…नए खिलाड़ी इतने बड़े हो गए हैं कि उन पर काबू रखना मुश्किल हो रहा है…ये खिला़ड़ी घरेलू क्रिकेट खेलना ही नहीं चाहते…

बस जहां पैसे, मीडिया, ग्लैमर की चमक दमक हो ये खिलाड़ी वहीं दिखना चाहते हैं…इनके लिए क्रिकेट की प्रैक्टिस से ज्यादा विज्ञापन फिल्मों की शूटिंग के लिए रिहर्सल अहम हो गई है…धोनी इस साल पचास करोड़ रुपये से ज़्यादा कमाने जा रहे हैं…इसमें क्रिकेट से होने वाली कमाई सिर्फ 20 फीसदी है…अस्सी फीसदी से ज़्यादा कमाई ब्रैंड एंडोर्समेंट (विज्ञापन) से ही होगी…धोनी दुनिया में सबसे ज़्यादा कमाई वाले क्रिकेटर तो है हीं देश में भी शाहरुख खान को छोड़कर बड़े से बड़ा फिल्म स्टार भी धोनी के मुकाबले विज्ञापन से होने वाली कमाई के मामले में कही नहीं टिकता…

अब हर युवा क्रिकेटर के लिए भी देश से खेलने से ज्यादा बड़ा सपना धोनी की तरह एड फिल्मों से कमाई हो गया है…लेकिन ये सपना देखने वाले भूलते जा रहे हैं कि क्रिकेट है तो इन खिलाड़ियों का वजूद है…अगर क्रिकेट ही नहीं होगा तो इन्हें कौन पूछने वाला होगा…आज क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड टीम के लिेए खिलाड़ियों के स्तर के हिसाब से चार ग्रेड के मुताबिक खिलाड़ियों को सालाना मेहनताना देता है…अब खिलाड़ी खेले या न खेले उसे ग्रेड के हिसाब से सवा लाख रूपये से पांच लाख रुपये हर महीने बोर्ड से मिलना तय है…यानी ग्रेड प्राप्त जूनियर से जूनियर खिलाड़ी को भी देश के वरिष्टतम नौकरशाह से भी ज्यादा वेतन मिलता है…

आखिर क्रिकेट मैच देखते हुए हमारे मन में वैसा रोमांच क्यों नहीं होता जैसा कि दो दशक पहले होता था…जसदेव सिंह, सुशील दोषी, मुरली मनोहर मंजुल की रेडियो पर कमेंट्री सुनते हुए दिल की धड़कने ऊपर-नीचे होती रहती थीं…खिलाड़ियों और क्रिकेट प्रेमियों में एक ही जज़्बा रहता था भारत की जीत का…सुनील गावस्कर, कपिल देव, विश्वनाथ, मोहिंदर अमरनाथ…एक से बढ़कर एक नाम…देश के लिए अपना सब कुछ झोंक देने को तैयार…

लेकिन अब क्रिकेट से भी ज्यादा अहम क्रिकेट का तामझाम हो गया है…रात के अंधेरे को चौंधियाती रोशनी में उजाला कर रंगीनी में डूबे स्टेडियम, टीवी प्रसारण अधिकार, एक से बढ़कर कैमरे…चीयर्स लीडर्स के मादक डांस…यानि वो सब कुछ जो क्रिकेट को खेल से ज़्यादा पैसा बनाने का जरिया बनाता है…

क्रिकेट का नया गणित भी यहीं से शुरू होता है…आज बेशक हम 15 दिन पहले हुई सीरीज को भूल जाएं, हमें ये भी याद न रहे भारत ने इस साल कितने मैच खेले हैं…लेकिन क्रिकेट से खेल जारी है…मैदान में चीयर्सलीडर तो है चीयर्स नहीं…दर्शकों में वो जुनून नहीं जो क्रिकेट को धर्म और खिलाड़ियों को भगवान का दर्जा दिला देता था…ऐसे में यही कहना पड़ेगा…दिस इज़ नॉट क्रिकेट…पर क्या करें…गंदा है पर धंधा है ये…
 
स्लॉग ओवर
नर्सिंग होम में स्वीपर का काम करने वाली कमला दनदनाती हुई चेयरमैन और प्रबंधक ड़ॉक्टर के केबिन में घुस गई…जाते ही दहाड़ते हुए बोली…डॉक्टर साहब ये तो कोई बात नहीं हुई…शीला को आपने प्रैग्नेंट किया…रेखा को आपने प्रैग्नेंट किया…सुनीता, विमला किस-किस का नाम गिनाऊं…आखिर मुझमें क्या कमी है…हमें भी काम करते साल से ज़्यादा हो गया…हमें तो किसी ने प्रैग्नेंट नहीं किया…आज तो मैं जवाब ले कर ही जाऊंगी कि आखिर कब करोगे प्रैग्नेंट….

(दरअसल कमला का कहने का मतलब था परमानेंट…अंग्रेजी बोलने के चक्कर में परमानेंट का प्रेग्नेंट हो गया था)