खुला पत्र मोदी के नाम…खुशदीप

प्रिय नरेंद्र भाई जी मोदी,

सादर प्रणाम

जानता हूं कि आप इस समय राजनीतिक करियर के सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव पर
हैं…ऐसे में आपकी व्यस्तता किसी 
से छुपी नहीं है…गुजरात की बागडोर, पांच राज्यों में विधानसभा
चुनाव, मिशन दिल्ली 2014…ज़ाहिर है आप पूरे तन-मन-धन से इस प्रयास में लगे हैं
कि आपकी पार्टी बीजेपी को उसका खोया हुआ जनाधार वापस मिल जाए और दिल्ली में एक बार
फिर एनडीए की सरकार बने…ये आपका प्रताप है या संयोग आपको राजनीति ने ऐसे मोड़ पर
ला दिया है कि बीजेपी और आपका नाम पर्यायवाची हो गया है…अब पूरे देश में चुनाव में
आपकी पार्टी के लिए अच्छे या बुरे जो भी नतीजे आएंगे, उन्हें आप से ही जोड़ कर
देखा जाएगा…जानता हूं कि आप ऐसी चुनौतियों को पसंद करते हैं…ऐसे मुश्किल दौर
में मेरी पूरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं…

मैं नहीं जानता कि आपको ये पत्र पढ़ने के लिए दो पल मिलेंगे भी
या नहीं…लेकिन फिर भी मैं अपनी तरफ़ से कोशिश कर रहा हूं…मैं चुनावी रैलियों
के अलावा दूसरे मंचों पर भी आपके संबोधन लगातार सुन रहा हूं…आप अच्छे वक्ता हैं,
ये किसी से छुपा नहीं हैं…आप पूरी तरह अपडेट रहते हैं कि आपके विरोधी कहां-कहां,
क्या-क्या बोलते हैं…आप फिर अपनी खास शैली में विरोधियों पर शाब्दिक प्रहार करते
हैं…समझ सकता हूं कि चुनाव रैलियों में जनता को बांधे रखने के लिए ये सब करने की
आवश्यकता होती है…एक नेता के लिए ये करना ज़रूरी भी है…आपके रणनीतिकार अच्छी
तरह जानते होंगे कि कब, कहां, क्या कहने से चुनावी लाभ-हानि हो सकते हैं…लेकिन
मेरा सवाल ये है कि क्या ये सब आपको विशुद्ध नेता के खांचे में ही सीमित नहीं
रखेगा…फिर आप दूसरे नेताओं से अलग कैसे नज़र आएंगे…

आपकी कोशिश दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का अगुआ बनने की है…ऐसे
में मनसा-वाचा-कर्मणा आप दुनिया को एक खांटी नेता नहीं बल्कि सबको साथ लेकर चलने
वाले स्टेट्समैन दिखने चाहिएं…इस दिशा में अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा रोल-मॉडल
आपके लिए कौन हो सकता है…मुझे याद नहीं पड़ता कि वाजपेयी कभी अपने विरोधियों पर
बिलो द बेल्ट प्रहार करते थे…वो कुछ सुनाना भी होता था तो छायावाद का सहारा लेते
थे…ये वाजपेयी जी की ही कविता है…

हे प्रभु !
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,
कि मैं गैरों को गले लगा ना सकूं…


                                 
आज देश आपकी तरफ देख रहा है…अगर भारत को दुनिया में महाशक्ति बनाना
है तो अल्पकालिक राजनीतिक लाभों की चिंता छोड़कर दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों को
प्राथमिकता देनी होगी…ऐसे में सिर्फ विरोध के लिए किसी का विरोध खांटी नेताओं की
शैली हो सकता है, लेकिन एक स्टेट्समैन से इस तरह के व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा
सकती…हमने इसी देश में नेहरू को सार्वजनिक तौर पर युवा वाजपेयी की ओजस्वी वाणी
की तारीफ़ करते देखा…इसी देश में हमने 1971 के युद्ध के बाद वाजपेयी को इंदिरा
गांधी को दुर्गा कहते हुए देखा…स्टेट्समैन इसी मिट्टी के बने होते हैं…

मोदी जी, आप भी इस ओर ध्यान दीजिए…इस सवाल पर भी सोचिए कि आज देश का
कोई नौनिहाल क्यों किसी नेता को अपना रोल-मॉडल नहीं मानता…क्यों उन्हें अमिताभ
बच्चन, सचिन तेंदुलकर, ए आर रहमान में ही अपने आदर्श नज़र आते हैं…क्यों आज
नेताओं में लोगों को नायक कम खलनायक ज़्यादा नज़र आते हैं…क्यों आज के राजनीतिक
परिदृश्य पर ये गाना सटीक बैठता है…

जिन्हें नाज़ है हिंद पर, वो कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं….

मोदी जी, आप के व्यक्तित्व की छाप तब और ज़्यादा गहरी होगी जब आप
विरोधियों की तारीफ़ करते हुए अपनी बात कहें…मसलन राहुल गांधी के लिए आप कह सकते
हैं कि
वो दीन-दुखियारों
के घरों में कभी-कभार जाकर उनका दुख जानते हैं, अच्छी बात है…उन्हें कुछ पल के
लिए अहसास होता है कि लोगों को किस हालात में गुज़ारा करना पड़ता है…लेकिन राहुल
जी, इस दर्द को कुछ मिनटों या कुछ घंटों में नहीं समझा जा सकता…इस मर्म को वही
अच्छी तरह जान सकता है जो खुद इन हालात से भी गुज़रा हो…जो बचपन में खुद ट्रेन
में चाय बेच-बेच कर परिवार का सहारा बना हो…

राष्ट्रधर्म और राजधर्म की राह पर मोदी जी आपको देश के हर नागरिक को
ये विश्वास दिलाना भी ज़रूरी है-

छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी
नए दौर में लिखेंगे, मिल कर नई कहानी
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी….

आपका शुभेच्छु

देशनामा