क्या दाढ़ी और टोपी से ही कोई ‘सच्चा मुसलमान’…खुशदीप


दोस्तों, मैं धर्म पर कुछ कहने से अक्सर बचता हूं। मेरा मानना
है कि इस दुनिया में सिर्फ़ दो तरह के इनसान होते हैं- अच्छे और बुरे। और ये दोनों
तरह के ही इनसान किसी भी धर्म में हो सकते हैं। मेरे जितने मित्र हिंदू हैं उतने
ही मुस्लिम भी हैं। कट्टरवादिता किसी भी धर्म में हो, मैं उसका समर्थन नहीं करता।
इनसान धर्म, जाति, नस्ल, क्षेत्र के आधार पर नहीं बल्कि उसके कर्म के आधार पर
पहचाना जाना चाहिए। ऐसा कोई धर्म नहीं जो इनसानियत का पाठ नहीं पढ़ाता हो। दूसरों का
भला करना ना सिखाता हो। दूसरे धर्म के लोगों का सम्मान नहीं करने की बात कहता हो। मैं
हिंदू हूं और इससे सही परिप्रेक्ष्य में मिले संस्कारों को आत्मसात कर पाया, इसके
लिए स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूं। मैं प्रार्थना इसलिए करता हूं कि प्रलोभनों
से बचा रहा हूं और मुझसे कोई ग़लत काम ना हो। किसी दूसरे का मन ना दुखाऊं। हर
इनसान को बराबर मानूं। किसी की मदद कर सकूं बशर्ते कि ऐसा करने की स्थिति में हूं।

आज इस पोस्ट को लिखने का
एक ख़ास मक़सद है। मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं लेकिन देश और समाज की स्थिति पर
अपने ब्लॉग और फेसबुक पर विचार लिखता रहा हूं। कई बार मुझे ऐसा सुनने को भी मिला
कि मेरे मित्रों में मुस्लिम भी काफ़ी हैं, इसलिए लेखन में बैलेंस का विशेष ध्यान
रखता हूं। सच पूछो तो मैंने इस नज़रिए से कभी सोचा ही नहीं। कौन मुस्लिम है और कौन
हिंदू या किसी और धर्म का। मुझे इस बात की भी खुशी है कि मेरे अधिकतर मित्र
उदारवादी हैं। वे सही को सही और ग़लत को ग़लत कहते हैं। कट्टरता अगर ये अपने धर्म
में भी देखते हैं तो उसका विरोध करते हैं।

आज ऐसा कुछ पढ़ने को मिला
जिस पर सब मित्रों की राय जानने की जिज्ञासा हुई। दरअसल मामला कोलकाता के मुस्लिम
बहुल इलाके मेटियाब्रुज से जुड़ा है। यहां सरकारी अनुदान की मदद से चलने वाले तालपुकुर
आरा हाई मदरसा  के हेडमास्टर काज़ी मासूम
अख्तर को अपनी ड्यूटी को अंजाम देने से रोक दिया गया है। उनकी पत्नी रेफ़िका
अख़्तर का कहना है कि
स्थानीय  
कट्टरपंथियोंके दबाव में
मदरसा प्रबंधन कमेटी ने फ़ैसला सुनाया है कि जब तक काज़ी मासूम दाढ़ी नहीं बढ़ाते
और सिर पर स्कल कैप (मुस्लिम टोपी) नहीं पहनते, मदरसे में अपनी ड्यूटी नहीं दे
सकते। रेफ़िका के मुताबिक प्रबंधन कमेटी ने ये भी कहा है कि काज़ी मासूम दाढ़ी
बढ़ाने के बाद इस्लामिक पोशाक और टोपी में अपनी फोटो भेजें जिससे कि धार्मिक
प्रमुख ये फैसला ले सकें कि वो मदरसे में पढ़ाने के लिए
पर्याप्त तौर पर धार्मिकहैं या नहीं।



रेफ़िका के मुताबिक बीती
26 मार्च को उनके पति पर हमला भी हुआ था।
वजह ये बताई गई थी कि उन्होंने बिना दाढ़ी और टोपी मदरसे
में बच्चों को पढ़ाकर
धार्मिक भावनाओं को आहत’  किया। स्थानीय कट्टरपंथियों का मानना है कि काज़ी मासूम की सोच बहुत प्रगतिशील और
गैर-अनुसारक (
non-conformist)  वाली है। हालांकि मदरसे की प्रबंधन कमेटी के
सचिव सिराजुल इस्लाम मोंडल ने क़ाजी की पत्नी के आरोप को ख़ारिज किया है। मोंडल का
कहना है कि काज़ी मासूम को इस्लाम की जानकारी नहीं है, जो कि इस नौकरी में बने
रहने के लिए ज़रूरी है। मोंडल ने ये भी कहा कि अगर वो (काज़ी मासूम) हमारे क्षेत्र
में आते हैं तो इससे समस्याएं उत्पन्न होंगी जो उनके लिए भी सही नहीं होंगी।
काज़ी के परिवार के एक
सदस्य का कहना है कि प्रगतिशील सोच की वजह से काज़ी मासूम को निशाना बनाया जा रहा
है। वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के साथ काज़ी ने बच्चों के
सर्वांगीण विकास के लिए सांस्कृतिक गतिविधियों को शुरू कराया। इसके अलावा काज़ी
मासूम ने मदरसे में हर दिन बच्चों की कक्षाएं शुरू होने से पहले राष्ट्रगान गाना
अनिवार्य करने की कोशिश की।
काज़ी मासूम लड़कियों की
कम उम्र में ही शादी का भी मुखर होकर विरोध करते रहे हैं। वो स्थानीय
बांग्ला अख़बारों में भी लिखते रहे हैं। उनके एक लेख पर बहुत विवाद हुआ था जिसमें
उन्होंने लिखा था कि ऐसे सभी मदरसों को गिरा देना चाहिए जो आतंकवाद को प्रश्रय
देते हैं।

हैरानी की बात है कि जिस
मदरसा प्रबंधन कमेटी ने काज़ी मासूम को ड्यूटी देने से रोका है उसी ने कुछ महीने
पहले शिक्षा के लिए उनके समर्पण को देखते हुए राज्य सरकार से उन्हें
शिक्षा रत्नअवॉर्ड देने की सिफ़ारिश की थी।
राज्य सरकार के शिक्षा
विभाग और अल्पसंख्यक आयोग तक ये मामला पहुंचा तो तदर्थ उपाय के तौर पर काज़ी मासूम
को ज़िला इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स में हाज़िरी दर्ज़ कराने के लिए कहा गया है।
शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक इस मसले का कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा।
विभाग काज़ी मासूम के तबादले की अर्ज़ी पर विचार कर रहा है। उधर,
शहर के पुलिस प्रमुख सुरजीत कार पुरकायस्थ ने अल्पसंख्यक आयोग को लिखकर भेजा है कि
अगर काज़ी मासूम को मदरसे आने-जाने के लिए सुरक्षा दे भी दी जाए तो भी उन पर हमले
की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। 
काज़ी मासूम ने खुद सरकार
की नीति पर ख़ामोश रहना ही बेहतर समझा है। बस इतना कहा- “यही उम्मीद कर सकता हूं कि
बंगाल के लोगों को सद्बुद्धि आएगी।”

आपने विस्तार से सब कुछ
पढ़ लिया। इससे पहले कि आपकी राय जानूं अपनी बस एक छोटी सी बात कहना चाहूंगा। अहम
क्या है- कोई व्यक्ति मन से क्या है या ये कि उसका हुलिया क्या है, उसके तन पर
चोला क्या है। क्या सिर्फ पोशाक से ही ये तय किया जा सकता है कि वो व्यक्ति अंदर
से क्या है। क्या किसी भ्रष्ट नेता के दाग़ इसलिए धुल सकते हैं कि वो चकाचक सफ़ेद
धोती-कुर्ता पहनता है। क्या
‘सच्चा-अच्छा मुसलमान होने के लिए सिर्फ़ दाढ़ी बढ़ाना और टोपी पहनना ही काफ़ी है? क्या ‘सच्चा-अच्छा’ हिन्दू
होने के लिए सिर्फ़ भगवा पहनना और माथे पर तिलक लगाना ही पर्याप्त है
?

इस मुद्दे पर लिखना मैंने
इसलिए ज़रूरी समझा क्योंकि मैं अच्छी और गुणवत्तापरक शिक्षा पर देश के हर बच्चे का
हक़ समझता हूं। वो भी समान सुविधा और समान अवसर के साथ। सरकार को अगर किसी क्षेत्र
पर सबसे अधिक ध्यान देने की ज़रुरत है तो वो शिक्षा ही है। महंगे प्राइवेट स्कूलों
और सरकारी शिक्षण संस्थानों (सरकारी सहायता प्राप्त मदरसे भी शामिल) के बीच शिक्षा
के स्तर में जितना अंतर रहेगा, उतनी ही इंडिया और भारत के बीच खाई भी चौड़ी होती
जाएगी। और सब बातों को भुलाकर हमें ये सोचना चाहिए कि हमारा हर बच्चा…रिपीट…हर
बच्चा किस तरह दुनिया के साथ कदमताल करता हुआ देश का नाम रौशन कर सके। यक़ीन मान
लीजिए, जिस दिन ये मुमकिन हो गया, उस दिन हमारी हर समस्या का समाधान हो जाएगा और
भारत दुनिया का सिरमौर बन जाएगा।

तथास्तु और आमीन एकसाथ