कोई एक दिन में नहीं बन जाता गीताश्री…खुशदीप

चिनाय सेठ, जिनके घर शीशे के बने हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं उछाला करते हैं…फिल्म वक्त में राजकुमार का ये डॉयलाग आज शिद्दत के साथ याद आ रहा है…


फिर उस टिटहरी की भी याद आ रही है जो पैर ऊपर उठा कर इसी उम्मीद में सोती है कि आसमान गिरेगा तो पैरों पर ही थाम लिया जाएगा…


आप कहेंगे कि ये दो अलग अलग बातें मुझे एक साथ कैसे याद आ गईं…मैंने 1 दिसंबर 2010 को पोस्ट लिखी थी- ब्लॉग के दो अनमोल मोती…उसमें मैंने गीताश्री के बारे में भी लिखा था…ऐसी मोती जिनकी चमक ब्लॉगजगत तक पहले ही पहुंच रही है, ब्लॉग hamaranukkad.blogspot.com के माध्यम से…मैंने ये भी लिखा था कि गीताश्री की लेखनी की धार का मैं हमेशा कायल रहा हूं….तेवर की पत्रकारिता हो या फीचर लेखन की आत्मीयता, गीताश्री की बेबाक कलम समान अधिकार के साथ चलती है…

जिस तरह मोती की चमक छुप नहीं सकती, उसी तरह गीताश्री की प्रतिभा को हमारीवाणी एग्रीगेटर ने भी थोड़े समय में ही जान लिया और उनसे अपने मार्गदर्शक मंडल में शामिल होने का अनुरोध किया…जिसे गीताश्री ने स्वीकार कर लिया…मैं हमारीवाणी के मार्गदर्शक मंडल में पहले से ही हूं…अब संयोग देखिए कि मुझ पर और गीताश्री पर करीब-करीब एक समय में ही निशाना साधा गया…हमारी वाणी पर मेरे स्लॉग ओवर को लेकर मुझे कटघरे में खड़ा किया गया, जिसका मैंने यथाबुद्धि जवाब भी दे दिया…मेरे लिए वो प्रकरण वहीं खत्म हो गया…लेकिन ज़्यादा गंभीर मसला गीताश्री से जु़ड़ा है…

खुद को भारत का पहला द्विभाषी मीडिया वेबसाइट बताने वाले मीडिया खबर ने करीब हफ्ता पहले 31 मार्च को ख़बर लगाई- आउटलुक की गीताश्री को फेलोशिप मिलना फिक्स…अब ये मीडिया खबर मीडिया गॉसिप के नाम पर कितनी विश्वसनीयता के साथ किसी का भी मान-मर्दन करने वाली खबर लगाता है, इसका सबूत इसी बात से मिलता है कि रिपोर्ट को अज्ञात कुमार के नाम से लिखा गया है…खुन्नस यही है कि पिछले साल गीताश्री और उनके पति अजित अंजुम को रामनाथ गोयनका अवार्ड क्यों मिल गया…यही पेट दर्द इतना बढ़ा कि अब पेनोस साउथ एशिया फेलोशिप के नाम पर गीताश्री के खिलाफ़ बाकायदा मुहिम छेड़ दी गई…पहले रिपोर्ट लगाई और फिर अज्ञात टिप्पणियों के नाम से जमकर भड़ास निकाली जा रही है…

क्यों भई गीताश्री को क्या किसी फेलोशिप के लिए आवेदन करने का अधिकार नहीं है…फेलोशिप जिसे मिलेगी, सो मिलेगी…लेकिन इस रिपोर्ट को छापने का उद्देश्य यही नज़र आता है कि गीताश्री पर अनर्गल आरोप लगाकर उन्हें फेलोशिप के दावेदारों में ब्लैक-लिस्ट करा दिया जाए…आपके पास फिक्सिंग के सबूत हैं तो खुल कर सामने क्यों नहीं आते…जब रिपोर्ट लिखने वाले में इतना भी नैतिक साहस नहीं कि वो अपने नाम का खुलासा कर सके तो वो क्या खा-कर आरोप साबित करेगा…अरे जनाब फेलोशिप कोई अवार्ड नहीं होता, इसके लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट देने के बाद फील्ड में काम करके भी दिखाना होता है…पैनोस में कई पत्रकारो ने आवेदन किया है…आप खुलासा करे कि किन कारणों से आप किसी एक के पीछे पड़े…क्या ये प्रपोजल असली है…क्या गीताश्री ने खुद आपको मुहैया कराया है…कृपया पारदर्शिता बरते और बताएं कि ये प्रपोजल किसका उठा कर गीताश्री के नाम से चला रहे हैं…


दूसरी बात, खबर का पहला सिद्धांत होता है, दोनों साइड का बयान लेकर ही रिपोर्ट लिखी जाती है…और अगर रिपोर्ट में सिर्फ एक ही साइड को छापा जाए, दूसरे से बात भी न की जाए तो ज़ाहिर है कि ये द्वेष, ईर्ष्या या ब्लैकमेलिंग के लिए किया जाता है…दुख होता है न्यू मीडिया की शैशवकाल में ही ये दशा देखकर…कुछ सार्थक करने की जगह सस्ती टीआरपी बटोरने के हथकंडों से किसी का कुछ भला नहीं होने वाला…

गीताश्री सिर्फ पत्रकार ही नहीं, हिंदी ब्लॉग जगत का भी बड़ा नाम हैं…इसलिए ब्लॉग जगत में भी गीताश्री के नाम पर कीचड़ उछालने के इरादे से मीडिया खबर के संचालक पुष्कर पुष्प ने इसी रिपोर्ट को सामूहिक ब्लॉग नुक्कड़ पर जाकर भी पोस्ट कर दिया…मीडिया खबर की इतनी विश्वसनीयता है तो सामूहिक ब्लॉग की आवश्यकता क्यों पड़ी…नुक्कड़ के संचालक अविनाश वाचस्पति बहुत अनुभवी और सुलझे हुए इनसान है…उन्हें जैसे ही आभास हुआ कि राजनीति के तहत किसी को बदनाम करने के लिए उनके मंच का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है तो उन्होंने फौरन उस पोस्ट को हटा दिया…मुझे भी नुक्कड़ से ही इस पोस्ट और मीडिया खबर के बारे में पता लगा था…यहां आकर देखा…सब पढ़ा तो समझ आया कि कथित न्यू वेव मीडिया क्यों सही दिशा में नहीं बढ़ पा रही है…खुद हमें क्या करना चाहिए, उस पर ध्यान नहीं देते…हां, दूसरा क्या कर रहा है, इस पर हम ज़रूर अपनी ऊर्जा और वक्त बर्बाद करते रहते हैं…

जिस वक्त देश में और भी कई बड़े मुद्दे हैं, हम एक व्यक्ति केंद्रित बहस में उलझे हुए हैं…एक व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण हो गया कि अपनी सारी नैतिकताएं, मर्यादा ताक पर रख कर उसके पीछे पिल पड़े…मैं नहीं जानता कि ये न्यू मीडिया का कैसा चेहरा है…क्या आपकी साइट वीकिलिक्स बनना चाहती है… फिर तो उसे कहीं और झांकना चाहिए…एक महिला के जीवन चरित्र पर अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए…मैं एक पुरुष हूं..और मैं महिला के खिलाफ पुरुषो के आदिम गुस्से को अच्छी तरह समझता हूं…यहां कमेंट करने वाले सारे कुंठित पुरुष हैं जो अपनी ग्रंथि के मारे हैं…किसी एक में साहस नहीं कि खुल कर कमेंट करे…

मेरा पुरज़ोर विरोध इस बात पर है कि एक महिला के इज्जत, मान सम्मान को सोची-समझी साज़िश के तहत चोट पहुंचाई गई…जितनी रिपोर्ट पर कमेंट करने वालों की उम्र है, उतने साल से गीताश्री पत्रकारिता कर रही हैं…कोई एक दिन में गीताश्री नहीं बन जाता, इसके लिए तज़ुर्बे की धूप में खुद को तपाना होता है…मैं ब्लॉग जगत में पहले भी एक बार बबली जी के मान-सम्मान को बचाने के लिए लड़ाई लड़ चुका हूं…अब गीताश्री के लिए आगे आया हूं…उम्मीद करता हूं कि एक महिला की तरक्की से जल कर ओछी पत्रकारिता करने वालों की ब्लॉगजगत भी एकसुर से भर्त्सना करेगा….

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Asha Joglekar
14 years ago

आपकी पोस्ट से गीताश्री को पठने वालों में ेक का इजाफा हो जायेगा । जिसमें नाम लिकने की हिम्मत ना हो उनकी कमेंट को तो अनदेखा ही करना चाहिये ।

देवेन्द्र पाण्डेय

गीताश्री को पढ़ना मेरे लिए हमेशा एक सुखद एहसास रहा है। उनकी एक कहानी ..दो पन्ने की औरत..याद आ गई। वाह! कितना अच्छा लिखती हैं! ईश्वर उन्हें बुरी नजर से बचाये।

Rakesh Kumar
14 years ago

खुशदीप भाई मैंने अपनी पोस्ट 'वन्दे वाणी विनयाकौ' पर जिक्र किया है कि

भलो भलाइहि पई लहइ, लहइ निचाइहि नीचु
सुधा सराहिअ अमरताँ ,गरल सराहिअ मीचु
भला भलाई ही ग्रहण करता है और नीच नीचता को ही ग्रहण करता है. अमृत की सराहना अमर करने में होती है और विष की मारने में.

अब यदि बुरा बुराई में लगा है तो भला भलाई को कैसे छोड़े . आपकी यह पोस्ट इस बात का प्रमाण है.हम तो बस यही कह सकते हैं :-
"सबको सन्मति दे भगवान"

anshumala
14 years ago

अजित जी ने सही कहा है की आज के समय में सभी एक दुसरे की उन्नति बर्दास्त नहीं कर पाते चाहे वो महिला हो या पुरुष किन्तु मुझे लगता है यदि उन्नति करने वाली महिला हो तो पुरुषो को अपच और ज्यादा हो जाती है तब तो और भी ज्यादा जब उसके समकक्ष पुरुष उतनी उन्नति नहीं कर पाए | ये सब गीताश्री के साथ ही नहीं होता है ज्यादा तर कुछ बड़ा करने वाली सभी महिलाओ के साथ होता है जहा लोग दबे छुपे शब्दों में उनकी प्रगति पर सीधे उनके चरित्र पर ही उंगली उठा देते है जैसा की कुछ टिप्पणियों में वहा भी दिख रहा है समझ नहीं आता की लोगो की ये मानसिकता कब बदलेगी |

शिवम् मिश्रा

…………
जय हिंद !

अजित गुप्ता का कोना

खुशदीप जी, नि:संदेह गीताश्री या किसी पर भी निशाना साधना स्‍वयं की कमजोरी ही सिद्ध करता है। लेकिन मुझे आपके द्वारा लिखी गयी इस बात से एतराज है कि गीताश्री महिला हैं, इसलिए पुरुषों ने ऐसा किया। आज समाज में ईर्ष्‍या इतनी बढ़ गयी है कि हम एक-दूसरे पर वार करने को तैयार बैठे हैं। इसे महिला की लड़ाई बना देने से मामले का रूख बदल जाता है। मुझ पर समाचार पत्रों ने लगातार आक्रमण किये, मुझे लोगों ने कहा कि आप महिला हैं इसलिए लोगों को पच नहीं रहा। लेकिन मैंने हमेशा कहा कि यह प्रश्‍न महिला और पुरुष का नहीं है, यह प्रश्‍न है कार्य का। कोई भी व्‍यक्ति कार्य द्वारा अपना प्रभाव स्‍थापित करता है तब ऐसे आक्रमण होते ही हैं। इसलिए इसे गीताश्री पर ह‍ुए आक्रमण को महिला पर हुआ आक्रमण कहकर कमजोर मत करें। पता नहीं मैं अपनी बात समझा पायी हूँ या नहीं। लेकिन हमारा कार्य केवल क्रिया करना है, उन्‍हें प्रतिक्रिया करने दें।

दिगम्बर नासवा

किसी के कुछ कहने से कोई फ़र्क नही पड़ना चाहिए …. जो सच है वो सच रहता है … बाकी सच है की इस बीमारी का कोई इलाज नही ….

ZEAL
14 years ago

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दुनिया में किसी का अपमान करने से आसान काम कोई दूसरा नहीं है। और ईर्ष्या का कोई इलाज नहीं है । फिर भी ईश्वर ने नीर-छीर विभेदक बुद्धि दी है बुद्धिजीवियों को । अपमान करने वाले को सम्मान कभी नहीं मिल सकता और सूरज की तरफ मुंह करके थूकने से क्या होता है , ये सभी को मालूम है।

पहली बार किसी पुरुष को , किसी स्त्री के लिए इतनी शिद्दत से आवाज़ उठाते देखकर अच्छा लगा ।

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सञ्जय झा
14 years ago

dinesh dadda ne sahi baat kah di….

pranam.

vandana gupta
14 years ago

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Unknown
14 years ago

1. ऐसे लोगो को इग्नोर किया जाना चाहिए…

2.आप की कमीज मेरी कमीज से अधिक सफेद क्यों है?
इस बीमारी का कोई इलाज नहीं।…

jai baba banaras…

मुकेश कुमार सिन्हा

dinesh sir ne sahi kaha………:)

Shah Nawaz
14 years ago

किसी पर भी इलज़ाम लगा देना बहुत आसान होता है, केवल 2 मिनट में कुछ अनाप-शनाप शब्दों को लिखकर किसी की लाखों मिनट की मेहनत को बर्बाद करना इनका लक्ष्य होता है…. कुछ लोग हमेशा ही इस तरह सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश करते है… न्यू मीडिया अर्थात ब्लोगिंग भी में इस तरह की हरकतों का चलन है… जितनी जल्दी परपक्वता आ जाएगी उतना ही बेहतर भविष्य हो सकता है इस न्यू मीडिया का.

खबर का लिंक देकर क्यों उनकी हिट्स बढ़ा रहे हैं आप… ऐसे लोगो को इग्नोर किया जाना चाहिए…

प्रवीण पाण्डेय

जिनके उत्तर नहीं होते हैं, उन प्रश्नों को क्यों उठाया जाये? किसी पर भी यह आक्षेप लगा सकता है, सबके पास दो गज की जीभ जो है।

honesty project democracy

बेहद दुखद वाकया है की लोग अपनी प्रतिभा का दुरूपयोग कर रहें हैं किसी को सिर्फ नीचा दिखाने के लिए….. जबकि ऐसे जनहित के कई गंभीर मुद्दे हैं जिन्हें सुलझाने के लिए उस प्रतिभा का प्रयोग करें तो इस देश की व्यवस्था व समाज के हालात को अच्छा बनाया जा सकता है…..ब्लोगरों को पूर्वाग्रह तथा व्यक्तिगत स्वार्थ या रंजिश को ब्लॉग लेखन से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए….

प्रवीण
14 years ago

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आदरणीय खुशदीप जी,

आपने क्योंकि मेरी पोस्ट का लिंक लगाया है और उसके साथ ही निशाना साधने व कटघरे में खड़ा करने की बात की है… इसलिये मैं भी यहाँ स्पष्ट करना चाहूँगा कि इस पूरे प्रकरण में मैं आपको बीच में सिर्फ और सिर्फ इसलिये लाया था क्योंकि यहाँ पर आपने 'लेवल प्लेयिंग फील्ड' की बात की थी… मेरा विश्वास रहा है कि " Everyone should walk the Talk " सिर्फ इसीलिये मैंने एक सैद्धान्तिक सवाल उठाया था… रही बात 'निशाना साधने व कटघरे में खड़ा करने की'… तो जाने ही दीजिये 'और भी गम हैं जमाने में मेरे पास'… इन सब फालतू चीजों के लिये वाकई समय नहीं है… 🙂

Udan Tashtari
14 years ago

बिल्कुल सही फरमाया.

कोई एक दिन में गीताश्री नहीं बन जाता- यह तो मैं उनसे मुलाकात करके जान चुका हूँ…किन्तु इन अनर्गल प्रलापों से विचलित होने की आवश्यक्ता क्यूँ कर आई..क्या लोग सच्चाई नहीं समझते?

बाकी, दिनेश जी ने सही फरमाया और इसका इलाज तो किसी के पास है नहीं.

DR. ANWER JAMAL
14 years ago

न तो गीता एक दिन में लिखी जा सकती है और न ही कोई एक दिन में गीताश्री बना जा सकता सकता है . मैं नहीं जानता कि गीताश्री कौन हैं और न ही कभी उन्हें पढने का अवसर ही मिला लेकिन आप बता रहे हैं कि वह एक औरत हैं तो वह ज़रूर अच्छी ही होंगी. इस देश में एक औरत के घर बाहर काम करना कितना कठिन है , यह आज किसी से छिपा नहीं है . ऐसे में जिसने अपने लिए जो मक़ाम बनाया है , कैसे बनाया है वही जानता है. 'व्यक्ति विरोध की मानसिकता' नकारात्मक कहलाती है और बुरे नतीजे दिखाती है .
हम गीता जी के घटिया विरोध पर आपत्ति करते हैं.

Satish Saxena
14 years ago

दिनेश राय जी की बात सही है ….शुभकामनायें !

दिनेशराय द्विवेदी

खुशदीप जी,
आप की कमीज मेरी कमीज से अधिक सफेद क्यों है?
इस बीमारी का कोई इलाज नहीं।

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