हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है…
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है…
रोज़ आता है याँ मेरे दिल को तसल्ली देने,
तुझसे तो दुश्मन-ए-जाँ तेरा ख़याल अच्छा है…
ये जो कुछ भी कहा गया है, ये सब कमबख्त ब्लॉगिंग के लिए है…दारू तो बेचारी यूहीं बदनाम है, दरअसल चचा ग़ालिब ने एडवांस में ब्लॉगिंग के लिए ही ये फ़रमाया था कि छूटती नहीं हैं ये काफ़िर मुंह से लगी हुई…वाकई एक बार ग़ालिब साहब इस शौक को आज़मा लेते तो लाल परी भी इस सौत के ग़म में हर वक्त लाल-पीली हुई कुढ़ती रहती…
चलिए अब आता हूं अपनी तबीयत पर…कभी खुद को स्टोन-व्टोन पहनने का शौक रहा नहीं…ऊपर वाले का करम देखिए कि शरीर के बाहर न सही शरीर के भीतर ही दो तीन स्टोनों की नेमत बख्श दी…एक स्टोन महाराज इतने खुराफाती निकले कि गाल ब्लैडर की नेक में फंस कर उसका टेंटुआ ही दबा दिया…यानि खाया-पिया न कुछ अंदर जाने देंगे और न ही बाहर आने देंगे…रही सही कसर लिवर महाराज ने पूरी कर दी…एक्यूट कोलेसिस्टिस ( जान्डिस) का पूरा प्रकोप दिखा कर…
डाक्टर को इन्फैक्शन दूर करने के लिए ही हफ्ते भर अस्पताल में भर्ती करना पड़ा…छुट्टी तो मिल गई है, लेकिन अभी वीकनेस बहुत है…ये पूरा महीना ही बीमारी के नाम चढ़ गया… इस दौरान दिनेशराय द्विवेदी सर, समीर लाल जी, महफूज़, शाहनवाज़ और राकेश कुमार जी (मनसा वाचा कर्मणा) लगातार फोन पर मेरा हाल लेते रहे…अदा जी, शिखा वार्ष्णेय, शिवम मिश्रा, सर्जना शर्मा जी ने भी फोन पर तबीयत जानी और जल्द स्वस्थ होने के लिए शुभकामनाएँ दीं…
पाबला जी ने भी फोन और एसएमएस किया, लेकिन मैं बेसुध होने की वजह से उनसे बात नहीं कर पाया…इसके अलावा मेरे ब्लॉग पर भी अनूप शुक्ल जी, रचना जी,वाणी गीत जी, अरविंद मिश्र जी,अंशुमाला, प्रवीण शाह भाई, सोनल रस्तोगी,अंतर सोहिल, संजय (मो सम कौन),अनुराग भाई (स्मार्ट इंडियन), दीपक बाबा, डा अजित गुप्ता जी और डा टी एस दराल सर ने मेरे शीघ्र स्वस्थ होने के लिए कामना की…राकेश कुमार जी अपनी पत्नी (मेरी दीदी शशि जी) के साथ अस्पताल मुझे देखने के लिए आए और दो घंटे वहां बैठे रहे…
ठहरिए पिक्चर अभी बाक़ी है दोस्त…अभी एक शख्स का ज़िक्र रह गया है…मेरे इस बुरे दौर में ये शख्स न जाने कितनी बार मेरे पास अस्पताल आया…न जाने कितनी बार इस शख्स ने मुझे फोन किया…यानि बड़े भाई होने का फर्ज़ निभाया….ये शख्स और कोई नहीं सतीश सक्सेना भाई हैं…विडंबना देखिए कि सोलह जून को सतीश भाई के काव्य -संग्रह मेरे गीत का विमोचन था और उसी दिन दोपहर को मुझे अस्पताल ले जाया गया…सतीश भाई से मैंने वादा किया था कि मैं ज़रा भी सही हूंगा तो ज़रूर कार्यक्रम में हिस्सा लूंगा…क्योंकि ये सतीश भाई का नहीं, मेरा अपना कार्यक्रम था…लेकिन ऐन वक्त पर ऊपरवाला दग़ा दे गया…
सतीश भाई, आपके लिए एक बात और…आपने मुझे अस्पताल में मेरे गीत की जो प्रति दी, उसका इतना सदुपयोग हुआ है कि आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर बिल्कुल सटीक बैठता है…ये पूरी कहानी अगली पोस्ट में बताऊंगा…शरीर में थोड़ी और ताक़त आने के बाद…
- पत्रकार की हत्या का जिम्मेदार सिस्टम? कुक से करप्शन किंग कैसे बना ठेकेदार सुरेश चंद्राकर - January 13, 2025
- ये पाकिस्तान की कैसी कंगाली? शादी में लुटा दिए 50 लाख, वीडियो देखिए - January 12, 2025
- दुनिया के सबसे शक्तिशाली क्रिकेट बोर्ड BCCI के सचिव बने देवाजीत सैकिया - January 12, 2025