किसकी चादर मैली…खुशदीप

आपने ब्रेक के बाद भी महावीर और जानकी देवी की कहानी पर विमर्श की आखिरी कड़ी लिखने के लिए प्रेरित किया…उसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूं…महावीर और जानकी देवी का परिवेश गांव का है…इसलिए इस कड़ी में गांव की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ही सबसे अहम हो जाती है…आज उसी फिल्म के जिक्र के साथ मैं इस विमर्श की इतिश्री कर रहा हूं…

इस फिल्म का नाम है …एक चादर मैली सी…ये फिल्म राजेंद्र सिंह बेदी के लिखे और 1965 के साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नॉवल…एक चादर मैली सी…पर बनाई गई थी…बेदी साहब इस नॉवल पर 60 के दशक में गीता बाली और धर्मेंद्र को लेकर खुद फिल्म बनाना चाहते थे…लेकिन गीता बाली की मौत की वजह से बेदी साहब को अपना इरादा छोड़ना पड़ा…बेदी साहब के सपने को 1986 में निर्देशक सुखवंत ढढ्डा ने पूरा किया…फिल्म का सार इस प्रकार है…

पंजाब के गांव के परिवेश में बनी इस फिल्म में रानो (हेमा मालिनी) का पति त्रिलोक (कुलभूषण खऱबंदा) तांगा चला कर घर वालों का पेट भरता है…परिवार में त्रिलोक का बूढा अंधा बाप (ए के हंगल), मां (दीना पाठक), त्रिलोक के दो छोटे बच्चे और छोटा भाई मंगल (ऋषि कपूर) है…


त्रिलोक को शराब पीकर घर में गाली-गलौच करने की आदत है…वहीं त्रिलोक की मां हर वक्त रानो को कम दहेज लाने के लिए ताने देती रहती है…त्रिलोक सैडिस्ट किस्म का इंसान है और उसे पत्नी को ताने-उलाहनों से पीड़ा देने में मजा आता है…त्रिलोक पत्नी पर हाथ भी उठा देता है…ऐसे मौकों पर मंगल ही भाभी को बचाने आगे आता…मंगल मस्त खिलंदड़ा जवान है लेकिन काम के नाम पर कुछ नहीं करता…पूनम ढिल्लन से उसका नैन मट्टका भी चलता रहता है…उम्र में मंगल बहुत छोटा है इसलिए रानो भी उसे बेटे की तरह ही लाड दुलार देती है…


ऐसे ही परिवार चल रहा होता है कि त्रिलोक एक दिन रात को तांगे पर सवारी के तौर पर एक लड़की को धर्मशाला तक छोड़ता है…अगली सुबह धर्मशाला का मालिक त्रिलोक को बुलाकर उस लड़की की मौत के बारे में बताता है और कहता है कि तांगे पर लाश को ले जाकर अंतिम संस्कार कर दे…दरअसल उस लड़की की धर्मशाला में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी…त्रिलोक तांगे में लड़की की लाश को ले जा रहा होता है तो लड़की का भाई उसे देख लेता है…लड़की का भाई यही समझता है कि त्रिलोक ही उसकी बहन की हत्या का ज़िम्मेदार है…दोनों में झगड़ा होता है और लड़की के भाई के हाथों त्रिलोक का कत्ल हो जाता है…इस बीच पुलिस लड़की के असली हत्यारे को भी पकड़ लेती है…लेकिन त्रिलोक की मौत के बाद रानो पर दुख का पहाड़ टूट पड़ता है…

रानो के कंधों पर ही घर चलाने की ज़िम्मेदारी आ जाती है…हर दम मस्तमौला रहने वाला रानो का देवर मंगल भी त्रिलोक की हत्या के बाद बुझ सा जाता है…परिवार के सामने दो जून की रोटी जुटाने का भी संकट आ जाता है…घर में रानो के साथ जवान देवर मंगल के रहने पर गांव के बड़े-बूढों को नैतिकता की फिक्र सताने लगती है…वो फरमान सुनाते हैं कि रानो या तो अपने दो बच्चों के साथ गांव छोड़ दे या अपने देवर मंगल के साथ शादी कर ले…उसी मंगल के साथ जिसे रानो ने हमेशा बेटे की तरह देखा…वो मंगल जो उम्र में 15 साल छोटा है…


आखिर रस्म के तहत रानो पर चादर डाल कर उसे मंगल की पत्नी घोषित कर दिया जाता है…इस तरह परिवेश और दस्तूर रानो और मंगल को ऐसा रिश्ता बनाने पर मजबूर कर देता है जिसका कि कभी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था..फिल्म का सबसे जटिल, संवेदनशील (कहने वाले विवादित भी कह सकते हैं..) दृश्य वह था जिसमें पति-पत्नी बनने के बाद एक रात रानो और मंगल को वो रिश्ता बनाते दिखाया जाता है जिसमें आंखों की शर्म की सारी दीवारें टूट जाती है…

राजेंद्र सिंह बेदी जैसा रिश्तों के मर्म को समझने वाला इंसान ही इस कृति को जन्म दे सकता था…पंजाब में गांवों में ये प्रथा रही है कि भाई की मौत पर उसकी पत्नी की शादी छोटे भाई से करा दी जाती है…लेकिन उम्र में फर्क को लेकर जिस संवेदना के साथ बेदी साहब ने रानो और मंगल के रिश्ते को उकेरा…वो समाधान बेशक न देता हो…लेकिन हमें लाजवाब कर देता है…शायद यही दुविधा महावीर और जानकी देवी के रिश्ते को लेकर हमारी भी है…हम सब इतने विमर्श के बाद भी खुद को अंधी गली में पाते हैं…इसीलिए कुछ रिश्तों को अहसास ही रहने दिया जाए तो बेहतर है…उन्हें रिश्ते का नाम न दिया जाए…