‘काणी मां’…खुशदीप

मेरी मां की सिर्फ एक ही आंख थी…जिससे देखने में वो बड़ी बदसूरत लगती थी..मैं इसके लिए उसे देखना भी पसंद नहीं करता था…वो परिवार का गुज़ारा निकालने के लिए स्कूल के छात्रों और टीचरों का खाना बनाकर भेजती थी…एक दिन मेरी मां स्कूल में मुझे मिलने चली आई…उसे स्कूल में देखकर मुझे बहुत गुस्सा आया…आखिर वो ऐसा कर ही कैसे सकती है…उसने स्कूल के दोस्तों के सामने मुझे शर्मिंदा करने की हिम्मत कैसे की…मैंने मां पर बस हिराकत से नज़र डाली और वहां से भाग गया…अगले दिन स्कूल में मुझे मेरे दोस्त ने मां के काणी (एक आंख वाली) होने का ताना देकर चिढ़ाया…मुझे ये सुनकर ऐसा लगा कि मैं वहीं ज़मीन में गढ़ जाऊं…मैं बस यही चाह रहा था कि फिर मुझे कभी मां का मुंह न देखना पड़े..

मैंने घर आकर मां पर जमकर भड़ास निकाली…अगर तुमने स्कूल आकर मेरा मज़ाक ही उड़वाना है तो तुम मर क्यों नहीं जाती…मेरी मां चुपचाप सुनती रही, एक शब्द भी नहीं बोली…मुझे एक सेंकंड के लिए भी अहसास नहीं हुआ कि मैं क्या बोल रहा हूं…मेरे दिमाग में सिर्फ गुस्सा ही भरा था…

मैंने उस दिन के बाद घर से हमेशा के लिए दूर होने की ठान ली…इसके लिए मेरे पास एक ही रास्ता था, जमकर पढ़ाई करूं…मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे विदेश की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में स्कालरशिप मिल गई…फिर मुझे देश लौटने पर अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई…मैंने खास तौर पर ध्यान रखा कि अपने शहर से दूर कहीं नौकरी करूं…मेरी शादी हो गई…मैंने अपना मकान भी खरीद लिया…मैं बीवी-बच्चों के साथ अपनी दुनिया में मस्त हो गया…

एक दिन अचानक मेरे घर की कॉल बेल बजी…दरवाजे पर मां खड़ी थी…उसने मुझे बरसों से नहीं देखा था…पोते-पोती का मुंह देखने का तो सवाल ही कहां था…मेरे बच्चे अनजान महिला की ऐसी  शक्ल देखकर हंसने लगे…मां की ये हरकत देखकर मैं फिर फट पड़ा…आखिर तुमने मेरे घर आने की हिम्मत कैसे की…बच्चों के आगे भी मेरा मज़ाक बनवाना चाहती हो…फौरन चली जाओ यहां से और फिर कभी ऐसी ज़ुर्रत न करना…


ये सुनकर मेरी मां ने धीरे से जवाब दिया…अनजाने में मैं गलत पते पर आ गई..और मां वहां से चली गई…

एक दिन स्कूल की तरफ से एलुमनी सेलिब्रेशन के लिए मेरे पते पर न्यौता आया…मैं भी स्कूल के दोस्तों से मिलना चाहता था…मैंने पत्नी से झूठ बोला कि इस वीकएंड पर मुझे बिज़नेस ट्रिप पर जाना है…स्कूल का प्रोग्राम खत्म होने के बाद मुझे अपना घर देखने की भी उत्सुकता हुई…मैं घर गया तो पड़ोसियों ने बताया कि मेरी मां की कुछ हफ्ते पहले ही मौत हुई है…ये सुनकर मेरी आंख से एक आंसू भी नहीं निकला…एक पड़ोसी ने एक सीलबंद लिफाफा भी मेरे हवाले किया, जिसमें मेरे लिए मां की लिखी एक चिट्ठी थी…मैंने चिट्ठी पढ़ना शुरू किया…

मेरे दिल के टुकड़े,

मैं इतने साल हमेशा तुम्हारे बारे में ही सोचती रही…मुझे दुख है कि मैंने तुम्हारे घर जाकर तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को परेशान किया…मुझे ये जानकर बड़ी खुशी हुई कि तुम इतने साल बाद स्कूल के प्रोग्राम के लिए आ रहे हो…लेकिन तब तक शायद मैं बिस्तर से उठने की हालत में भी न हूं ताकि तुमसे मिल सकूं…मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारे बचपन से जवान होने तक तुम्हारे लिए शर्मिंदगी का सबब बनी रही…तुम बहुत छोटे थे, सीढ़ियों से गिरने पर एक हादसे का शिकार हुए थे…इस हादसे में तुम्हारी एक आंख जाने के बाद मेरे कलेजे पर क्या बीती थी, मैं ही जानती हूं…एक मां के नाते मैं तुम्हें एक आंख के साथ बड़ा होते नहीं देख सकती थी…इसलिए मैंने अपनी एक आंख देने का फैसला करने में एक सेंकंड की भी देर नहीं लगाई…मुझे तुम पर गर्व रहा कि कि मेरा बेटा मेरी आंख से दुनिया को देखेगा…मेरे इस दुनिया से जाने के बाद भी…


खुश रहो और खूब तरक्की करो…


तुम्हारी मां….

(ई-मेल पर आधारित)
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