कहां ले जाएगी ये बोल्डनेस…खुशदीप

देश में मल्टीप्लेक्स सिनेमा के जड़ें जमाने के बाद रियलिस्ट फिल्में बनाने की होड़ सी लग गई है…स्टार सिस्टम के साथ-साथ न्यू स्ट्रीम सिनेमा भी पकड़ बनाता जा रहा है…बिना स्टार कास्ट मोटी कमाई के लिए बोल्ड से बोल्ड सब्जेक्ट पर फिल्में बन  रही  है…टीवी सोप ओपेरा क्वीन एकता कपूर ने डर्टी पिक्चर के ज़रिेए दुनिया को दिखा दिया है कि फिल्में ख़ान, कुमार, कपूर सुपरस्टार्स के बिना भी हिट कराई जा सकती हैं…ए ग्रेड हीरोईन विद्या बालन ने अस्सी के दशक की बी-सी ग्रेड एक्स्ट्रा सिल्क स्मिता के किरदार को पर्दे पर निभा कर नेशनल समेत सारे बड़े अवार्ड झटक लिए…विडंबना है कि सिल्क स्मिता खुद को आइटम-गर्ल, सिड्यूस करने वाली वैम्प के टैग से खुद को कभी अलग नहीं कर पाई..प्रसिद्धि भी बस इस लिए ही मिली…मार्केट से आउट होने के बाद गुमनामी के अंधेरे में खोने के डर और निजी ज़िंदगी में रिश्तों की कड़वाहट ने सिल्क स्मिता में इतना अवसाद भर दिया कि खुदकुशी से ही उसका खात्मा हुआ…​खैर ये तो रही डर्टी पिक्चर की बात…

बोल्ड विषयों की आज सिनेमा को इतनी दरकार है कि देश में सेक्स अपराध से जुड़ी कोई घटना सामने आती नहीं कि उस पर फिल्म बनाने का ऐलान भी साथ ही हो जाता है…नीरज ग्रोवर मर्डर केस में राम गोपाल वर्मा को सेक्स-ट्राएंगल का मसाला दिखा तो झट से उन्होंने नाट ए लव स्टोरी बना डाली…एकता कपूर डीपीएस एमएमएस कांड पर रागिनी एमएमएस पहले ही बना चुकी हैं…राजस्थान के भंवरी सेक्स स्कैंडल पर निर्माता-निर्देशक महेंद्र धारीवाल ने फिल्म बनाने का ऐलान किया है…उनका इरादा भंवरी के रोल में विद्या बालन या बिपाशा  बसु को लेने का है…

सेंसर बोर्ड को खत्म कर देने के हिमायती महेश भट्ट ने रियल पोर्न एक्ट्रेस सनी लिओन को जिस्म-2  में कौन से अभिनय के लिए चुना है, वही बेहतर जानते होंगे…लेकिन महेश भट्ट से भी एक कदम आगे निकले हैं उनके छोटे भाई विक्रम भट्ट…निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के साथ मिलकर कॉरपोरेट साजिश और सेक्‍स के ​काकटेल पर हेट स्टोरी बनाई है…फिल्म को सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट मिलने से पहले ही उन्होंने जो ट्रेलर रिलीज किया है, उसमें कई डायलाग और दृश्य ऐसे हैं जिन पर फिल्म में शायद सेंसर बोर्ड की कैंची चल जाए…अगर नहीं चलती तो मान लेना चाहिए कि हमारा सेंसर बोर्ड भी बहुत बोल्ड हो गया है…फिल्मों की मार्केंटिंग का आजकल ये नया ट्रेंड निकला है कि कुछ बोल्ड सीन पहले ही इंटरनेट पर डाल दो, ये कहकर कि किसी ने उन्हें लीक कर दिया है…ज़ाहिर है इससे लोगों में क्यूरेसिटी जागने के साथ फिल्म का मुफ्त में प्रमोशन भी हो जाता है…​

20 अप्रैल को रिलीज़ होने जा रही हेट स्टोरी की नायिका पाउली दाम कितनी बोल्ड हैं, ये इसी से पता चलता है कि पूरी यूनिट के सामने भी न्यूड सीन की शूटिंग से कोई परहेज नहीं…31 साल की इस अभिनेत्री ने 2006  में बांग्ला फिल्म अग्निपरीक्षा से करियर की शुरुआत की थी…लेकिन लाइमलाइट में ये गौतम घोष की फिल्म कालबेला से 2009 में आई…पाउली अब तक की सबसे बोल्ड बांग्ला फिल्म मानी जाने वाली चत्रक की भी नायिका रही है…श्रीलंकाई निर्देशक विमुक्ति जयसुंद्रा की ये फिल्म कांस और टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है…

​हेट स्टोरी के ट्रेलर को देखकर यही लगता है कि फिल्म में नायिका यानि पाउली दाम अपने साथ हुए फ्राड का बदला लेने के लिए अपने जिस्म को हथियार की तरह इस्तेमाल करती है…ट्रेलर में उसे ये कहते हुए भी सुना जा सकता है कि मुझे इस शहर की सबसे बड़ी वेश्या (ट्रेलर में रंडी शब्द का इस्तेमाल किया गया है ) बनना है…फिल्म बनाने वालों का इरादा ज़ाहिर तौर पर ज़्यादा से ज़्यादा कमाई करना है…लेकिन सेंसर बोर्ड की कौन सी मजबूरी है जो महिला की देह को इस तरह प्रोजेक्ट करने वाली फिल्मों को पास कर देती है…एक बार ऐसी फिल्मों को सख्ती से डब्बे में बंद कर दिया जाए तो फिर दूसरा कोई इस तरह की फिल्म बनाने की जुर्रत नहीं करेगा…आखिर फिल्म में पैसा लगता है…कौन चाहेगा अपना पैसा डुबोना…चलिए अगर फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट देकर पास कर भी दिया जाता है, या ऐसे-वेसे सीन्स और डायलाग्स पर कैंची भी चल जाती है, लेकिन बगैर सेंसर को दिखाए ऐसे ट्रेलर को नेट या टीवी चैनल जैसे दूसरे माध्यमों पर रिलीज़ करने की क्या तुक है…​

नीचे फिल्म का ट्रेलर आप अपने रिस्क पर ही देखिए…फिर तय कीजिए कि खुलेपन और उदारता के नाम पर आगे भारत में स्क्रीन पर क्या-क्या दिखाया जाने वाला है…

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रेवा स्मृति (Rewa)

Aur Purush ka….wo bhi bata den??

अजित गुप्ता का कोना

एक बात मुझे आजतक समझ नहीं आयी। हम अक्‍सर महिलाओं द्वारा किये जा रहे अंग प्रदर्शन के लिए चिंतित दिखायी देते हैं। होना भी चाहिए। लेकिन भूले से भी पुरुषों द्वारा किए जा रहे अंग प्रदर्शन का कभी जिक्र नहीं करते। क्‍या किसी ने सलमान खान पर लिखा है, क्‍या किसी ने जान अब्राहम के बारे में लिखा है, क्‍या किसी ने हाशमी के बारे में लिखा है? आदि आदि। आजकल लड़के जिस प्रकार की पेंट पहन रहे हैं, क्‍या किसी ने उस पर लिखा है। हम सब समाज में सुधार चाहते हैं, लेखक का कर्तव्‍य भी है कि वह उन विषयों पर लिखे जिनसे समाज दिग्‍भ्रमित होता है लेकिन मुझे दुख जब होता है कि लेखक एकतरफा हो जाता है। हमेशा समाचार प्रकाशित होता है कि महिला के साथ बलात्‍कार हुआ, यह नहीं लिखा जाता कि पुरूष ने बलात्‍कार किया। इसलिए आपने इस समस्‍या पर ध्‍यान दिलाया उसके लिए तो आभार लेकिन कभी पुरुषों द्वारा किये जा रहे देह प्रदर्शन पर भी अपनी कलम चलाएंगे तो सार्थक होगा। मैंने विडियों देखने की रिस्‍क नहीं ली है। ऐसे चित्र भी नही लगाते तो ज्‍यादा अच्‍छा होता।

Arvind Mishra
13 years ago

बच्चों की अच्छी फिल्म है 🙂

रचना
13 years ago

and i dont watch movies so i cant review them or write against them

रचना
13 years ago

virodh aur apptii kae liyae chitr dena bilkul jaruri nahin haen

Khushdeep Sehgal
13 years ago

रचना जी, ​
​​
​चित्र पीठ पर जो लिखा है, उसे पढ़ने के लिए आवश्यक है…​इस भूमिका को निभाने के लिए पाउली दाम अपनी इच्छा से ही आगे आई होंगी, ज़ाहिर है उन पर कोई दबाव नहीं होगा…और ये फिल्म भी हमारे भारत में ही बनी है, विदेश में नहीं…और फिल्में हमारे समाज का ही हिस्सा है…उनसे जनमानस प्रभावित भी होता है…और ऐसी किसी भी हलचल को ब्लाग पर लाना गुनाह नहीं है…फिल्म में संदेश क्या देने की कोशिश की जा रही है, उसे पकड़िए…और हो सके तो विरोध कीजिए और सेंसर बोर्ड तक अपनी आवाज़ पहुंचाइए…मेरी समझ से फिल्म का थीम नारी का अपमान है…
​​
​जय हिंद…

रचना
13 years ago

इस बार सोचा सब लोग कमेन्ट कर ही ले तब ही लिखू
पहली बात
क्या ये तस्वीर देनी जरुरी थी ?? क्या इस तस्वीर के बिना आप की पोस्ट की महता कम हो जाती ??
तस्वीर हटा दे क्युकी आप जिस मानसिकता के विरोध में पोस्ट दे रहे हैं खुद उसी चीज़ को जाने अनजाने बढ़ावा भी दे रहे हैं .
यहाँ जितने भी कमेन्ट आये हैं क्यूँ उन सब ने इस तस्वीर को हटा ने की बात नहीं की ?? क्या महज इस लिये की बाहर इस से भी ज्यादा हो रहा हैं या इस लिये की आप की पोस्ट पर आपत्ति नहीं दर्ज करनी चाहिये .
सबसे पहले जो गलत हैं जहां भी गलत हैं उसका वहीँ विरोध करे . सुधार तब ही संभव हैं .

दूसरी बात
बोल्डनेस से मतलब क्या हैं ??
आज से पचास साल पहले जब मै पैदा हुई थी माँ बताती हैं की उनको अपनी ससुराल से लोरेटो कॉन्वेंट कॉलेज जहां वो प्राध्यापिका थी साईकिल रिक्शा से जाना होता था . उनके जेठ का सख्त आदेश था की रिक्शा में पर्दा बंधेगा . रिक्शा वाला आता था परदा बंधता था , बहूजी चले कहता था और माँ बाहर आती थी , सिर पर पल्ला लेकर . गली से बाहर आकर पर्दा खोला जाता था .
लोरेटो कॉन्वेंट कॉलेज में प्राध्यापिका होना बोल्डनेस थी और उसको रिक्शा में पर्दा डाल कर कम किया गया था .
आज ५० साल बाद उसी लखनऊ में उन्ही जेठ की बेटी की बहू अपनी ससुराल में बिना पर्दे के रहती हैं और नौकरी भी करती हैं लेकिन बोल्ड नहीं हैं क्युकी वो सूट पहनती हैं हां बराबर के घर की बहूँ बोल्ड हैं क्युकी जींस और टॉप पहनती हैं .
वही जेठ की बेटी की बेटी की शादी जहां हुई हैं सास बड़ी बोल्ड हैं क्यों उसने कहदिया था की उसकी बहू को ज्यादा साडी सूट ना देकर जींस दे क्युकी उसके बेटो को ये पसंद हैं

बोल्ड कुछ नहीं हैं बस एक बदलाव मात्र हैं . नगनता और बोल्डनेस में अंतर होता हैं .

आज से २० साल पहले जब केबल टी वी आया था तब तमाम ऐसे इंग्लिश चॅनल आते थे जिनमे ऍम टी वी प्रमुख था जहां के गानों की नगनता का जिक्र होता था . देखता कौन था हम सब ही ना फिर हमारे यहाँ के फिल्म और टी वी प्रोग्राम वालों को लगा अगर वो खुद ही ये सब दिखाये तो भी दर्शक हैं .

जो तब नहीं देखते थे वो अब भी नहीं देखते .

सीरियल का प्रोमो सबको पहले बता देता हैं की क्या होना हैं क्यूँ टी वी उस दिन देखा ही जाता हैं ? फिर भी लोग देखते और तो और रिपीट भी देखते हैं .

नेट इन्टरनेट इत्यादि कुछ बुरा नहीं हैं बुरा हैं हमारा केवल उस और आकर्षित होना जहा सो काल्ड बोल्डनेस हैं .
फेस बुक इत्यादि सोशल नेट्वोर्किंग साईट , प्रोनो और भी न जाने क्या क्या हैं होने दीजिये ये बोल्ड नेस नहीं हैं ये सब बदलती जीवन चर्या हैं जो हर पीढ़ी में बदल जाती हैं .
कभी शादी के समय घुघट होता था आज चुन्नी सामने होती ही नहीं हैं ?? फैशन को बोल्डनेस ना कहे

फिल्म को देख कर लोग अपनी जीवन शैली बदलते हैं या अब फिल्मे कणटेमप्रोरी जीवन शैली पर बन रही हैं .
औरत की नंगी देह ना पहले नयी थी ना अब हैं फिर भी देखने वाले हैं खुशदीप और जब तक खरीदार हैं इसको रोकना मुश्किल हैं पर आपत्ति दर्ज होती ही रहनी चाहिये
विनम्र आग्रह हैं
चित्र हटा दे

Pallavi saxena
13 years ago

आपकी बातों से मैं पूरी तरह सहमत हूँ सारे फसाद की जड़ यह इंटरनेट और मीडिया ही है। अगर यह संभाल जाएँ तो बहुत कुछ अपने आप ही संभाल जाएगा। मैंने भी इंटरनेट पर कुछ लिखा है समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')

वो कहेंगे लोग यही देखना चाहते हैं….!! क्या सच मे??

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

चेतन आनंद का सुझाव था कि अलग से सिनेमा हाल बना दिए जाएँ. बढ़िया था. लेकिन यहाँ हर अच्छे सुझाव की एक ही जगह है – ठण्डा बस्ता … वाणी जी सही कह रही हैं.

वाणी गीत
13 years ago

हद है , यह बेवकूफी भरा खुलापन तो अब टीवी पर भी आ पहुंचा है ..
बड़े अच्छे लगते हैं अच्छी खासी टी आर पी के बावजूद एकता कपूर को क्या सूझी ?

shikha varshney
13 years ago

पता नहीं कौन कब तक देखेगा यह सब.

राज भाटिय़ा

सेंसर बिकाऊ हो सकता हे, लेकिन लोगो के हाथ मे हे वो इन फ़िल्म मेकर की फ़िल्मे ही ना देखे, बायकाट करे, मैने आज तक इस एकता कपूर का एक भी नाटक नही देखा, कोन सा मर गया, या समाज से कट गया, या गंवार बन गया, यह तो हमी पर निर्भर करता हे, ओर इन फ़िल्मो को जनता ही हिट करती हे जनता ही फ़ेल करती हे, हम सब को इतना जाग्रुक होना चाहिये कि इन निर्माताओ की फ़िल्मे , नाटक ही देखने से मना करे, घर मे टी वी पर भी मत देखे, जब हमीं नही देखे गे तो छोटे बच्चे भी नही देख पायेगे…बडे बच्चो को भी थोडी अकल आयेगी कि जब भीड ही नही फ़िल्म हाल मे तो जरुर यह फ़िल्म बकवास होगी, हम कब तक सेंसर सेंसर चिल्लाते रहे गे… बन्द कर यह सब बकवास देखनी… अगर अपने बच्चो का भाविष्या अच्छा देखना चाहते हो… वर्ना पतन दुर नही….

डॉ टी एस दराल

इंटरनेट ने सब परदे हटा दिए हैं .
लेकिन सार्वजानिक रूप से प्रदर्षित होने वाली फिल्मों को सेंसर किया ही जाना चाहिए .
डेल्ही बेल्ली देखने के बाद हम तो फ़िल्में देखने के मामले में सावधान रहते हैं .

Unknown
13 years ago

NAARI ki pragati ka prateek hai yeh sab …..

jai baba banaras…

विवेक रस्तोगी

आप बड़े पर्दे की बातें कर रहे हैं ये सब तो अंग्रेजी सीरियल्स में अभी भी सहज रूप से उपलब्ध है जैसे कि स्टॉर वर्ल्ड और जी कैफ़े ।

दिनेशराय द्विवेदी

किसी भी समाज व्यवस्था के एक युग का जब पतन होने लगता है तो उस का सब से घृणित रूप सामने आने लगता है। वही हो भी रहा है।

प्रवीण पाण्डेय

पता नहीं चलता कि वर्तमान सत्य दिखा रहे हैं कि भावी भविष्य के लिये उकसा रहे हैं।

सागर
13 years ago

मेरे विचार में तो सर सेंसर बोर्ड होना ही नहीं चाहिए… बहुत अधिक तो बस निर्देशक को पहले ही धूम्रपान करना स्वास्थ्य के लिए हानिकर है सन्देश की तरह 'केवल वयस्कों के लिए' का ग्राफिक दे देना चाहिए… दिए गए फिल्म के सीन हिंदी फिल्म के हिसाब से बोल्ड तो बहुत हैं लेकिन लोग २ बार बेवकूफ बन सकते हैं बार बार नहीं (जाहिर है डेल्ही बेली अब दोबारा नहीं देखूंगा, आमिर ने उसमें बेवकूफ बनाया) … सिर्फ सेक्स ही चले ऐसा नही होता…

मैंने देखा है हॉस्टल में जहाँ सब कुछ पर प्रतिबन्ध होता है वहीँ आठवीं के बच्चे बीडी, सिगरेट के साथ ज्यादा पाए जाते हैं…. ये बिलकुल प्यार जैसा मामला है "जब जब प्यार पर पहरा हुआ है, प्यार और भी गहरा हुआ है" टाइप…..

मुझे सिनेमा के लिए सेंसर बोर्ड का कोई तुक समझ नहीं आता…… ये सच है कि ये फिल्म बस पैसा kootne के लिए ही बनायी गयी है.. विक्रम कि हैसियत इससे ज्यादा की नहीं है… वो बस महेश भट्ट के भाई होने के सहूलियत उठा रहे हैं……

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