आप कड़क हैं…आप विनम्र हैं…आप कड़क और विनम्र दोनों हैं…ठीक वैसे ही जैसे आप बैट्समैन-बॉलर हैं या बॉलर-बैट्समैन हैं…यानि आप कड़क-विनम्र हैं या विनम्र-कड़क हैं…आप सोच रहे होंगे कि कहीं आज शिवजी की बूटी चढ़ाकर तो नहीं लिख रहा…नहीं जनाब, इस कड़क और विनम्र के फंडे में ज़िंदगी का फ़लसफ़ा छिपा है…कड़क- मिज़ाजी इन्सटेंट कॉफी की तरह है जो झट से दिमाग को किक करती है…विनम्रता होम्योपैथी गोली की तरह है जो धीरे-धीरे असर दिखाती है…
अब आप ज़िंदगी में ही देखिए कि आप किसी काम में भी विनम्रता दिखाते हैं तो फौरन कोई आपको भाव नहीं देता…सुनने वाला समझता है कि आप कमजोर या पावरलैस हैं, इसलिए आप को भाव नहीं भी देगा तो चलेगा..लेकिन यही आप ज़रा कड़क हो कर अपनी बात कहिए…अगला फौरन सुनने के लिए तैयार हो जाएगा…
आज तेज़तर्रार उसे ही माना जाता है जिसे रौब जमाना आता है…जो खुद कुछ करे या न करे लेकिन ऊंची आवाज़ में सबको हड़काता ज़रूर नज़र आए…माना जाने लगता है कि इस आदमी में गट्स हैं…ये सबसे काम करा सकता है….अब आप विनम्र महाशय को देखिए…कोल्हू के बैल की तरह काम पर लगे रहता है…धीमी आवाज़ में बात करता है…कोई उसकी नहीं सुनता…कोई साथी काम नहीं करता तो उसके हिस्से का भी काम कर देता है…
कड़क महाराज तरक्की की सीढ़ी पाते हैं…विनम्र महाशय अंदर ही अंदर अपने भाग्य को लेकर कुढ़ते रहते हैं…आप किसी सरकारी आफिस में कोई काम कराने पहुंच जाए या खुदा न करे आपको किसी काम के लिए पुलिस स्टेशन जाना पड़े, अगर आप जी हुजूर वाले लहज़े में बोलेंगे तो आपको डांट डपट कर उलटे पांव लौटा दिया जाएगा…और अगर आपने सीधे रूआबदार लहज़े में बात की तो सामने वाला समझ जाएगा कि आप के पीछे कोई न कोई बैक ज़रूर है…उसका आपके साथ बोलने का अंदाज़ ही बदल जाएगा…ये सब मैं हवा में नहीं कह रहा…प्रैक्टीकल में जो दस्तूर है उसी को आप तक पहुंचा रहा हूं…
तो क्या इसका मतलब हम सब विनम्रता छोड़ दें…खुद को कलफ की तरह कड़क कर लें…नहीं जनाब जिस तरह सांप और संत अपनी प्रवृत्ति को नहीं छोड़ते, उसी तरह हमें भी खुद को नहीं बदलना चाहिए...किसी को हड़का कर बात करने से हमारा अब का मतलब बेशक निकल जाए, लेकिन लॉन्ग इन्वेस्टमेंट में इस तरह का आचरण नुकसानदायक ही होता है…कड़क आदमी का जब कभी खराब वक्त आता है तो उसका साया भी साथ नहीं देने आता…दूसरी ओर विनम्र जनाब के लिए ऐसे मुश्किल वक्त में सौ हाथ मदद के लिए आगे आ जाते हैं…इसलिए फायदा इसी में है कि दूसरों को दबा कर नहीं बल्कि दिल से जीतना चाहिए…आखिर में सौ बातों की एक बात…रेस में हमेशा कछुआ ही जीतता है खरगोश नहीं…लंबी रेस का घोड़ा बनिए, विनम्रता अपनाइए…
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आप यह सब तो ब्लागर के संदर्भ में लिख रहे है ना? तो काहे को पुलिस स्टेशन पहुंचकर डरा रहे हैं? ब्लागर को चाहिए कि वह अपनी बात विनम्रता से कहे लेकिन टिप्पणी कठोर अनुशासन और निर्भिकता के साथ दे। निर्भिकता का अर्थ यह नहीं है कि वह अपनी विनम्रता छोड दे। आज ब्लागिंग में कठिनाई यह है कि हम केवल प्रशंसक बन गए हैं। यहाँ ऐसे कितने ही लेखक हैं जो विभिन्न विधाओं में अपनी बात लिखते हैं। सब की शैली भिन्न हो सकती है लेकिन विधा विशेष के सांचे अलग्-अलग होते हैं। मैं अक्सर देखती हूँ कि रचना सांचे में नहीं है फिर भी हम तारीफ के पुल बांध देते हैं। और यदि मेरे जैसा व्यक्ति यह बताने की कोशिश करे कि अपनी रचना को दुरस्त कर लो तो उसे कडकनाथ मुर्गा घोषित कर दिया जाता है। मैं तो कम से कम यह चाहती हूँ कि यहाँ जो भी लिख रहे हैं वे एक-दूसरे से सीखें और श्रेष्ठ रचना करें। इसलिए विनम्रता पूर्वक कही गयी बात भी कभी कड़क नजर आ जाती है।
बेब्लॉगवाणी 25 टिप्पणियां मतलब सार्थक ब्लॉगिंग। सबक लें इस पोस्ट से हिन्दी ब्लॉगर।
जैसा मुंह वैसा जूता ?
बहुत ही बेहतरीन बात की है आपने….. ज़बरदस्त!
इस विषय पर मेरा लेख:
मधुर वाणी का महत्त्व
ओह ये भी कैटेगरीज़ हैं क्या ….रुकिए मैं वैसे तो जिम जाने लगा हूं अभी उतना कडक ब्लॉगर नहीं बन पाया हूं ..हां विनम्र तो ……by default सेटिंग …ही हैं ..उसमें जब भी छेडछाड करो ..या manual करो तो ..कडकनेस आ ही जाती है …क्यों क्या कहते हैं आप ???
मुझे लगता है की आदमी को देखना चाहिए की स्थिति क्या है व्यवहार उसी तरह का होना चाहिए |
हम तो आलराउंडर हैं जी 🙂
बहुत अच्छी बात कही है ..
कुछ पंक्तियाँ दिनकर जी की दे रही हूँ ….
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या , जो दंतहीन
विष रहित , विनीत , सरल हो …
सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
संधि वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की …
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
As far as I think the blow hot blow cold policy works better.
बिलकुल सही बात है………..
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
कुछ और सीखा आज इस पोस्ट से भैया..
bahut sunder rchna ..ak bar fir ho gayi..bm-bm..khushdeep bhai
मेरे ख्याल से खुद का स्वार्थ हो तो विनम्रता अपनाइए और ताकत का इस्तेमाल ना करें लेकिन जब जनहित और देश हित का सवाल हो तो इतना कड़क बनिए ही सामने वाला उस कड़क में दब जाय जनहित में सत्य और न्याय को जाँच कर टूटने और तोरने के लिए जिस दिन इस देश के नागरिक तैयार हो जायेंगे ,ये सभी साले भ्रष्ट और गद्दार ख़त्म हो जायेंगे …
ये बात ताई को समझाईये कि मेड-इन-जर्मन का परित्याग कर दे.:) हम तो बहुत ही नर्म आदमी हूं.
रामराम.
दिल्ली की सड़कों पर ड्राइव करते हुए तो यही लगता है कि काश हम भी कड़क होते !
वैसे कहते हैं , एक चुप सौ को हराए ।
विनम्रता से इंसान खुद भी सुखी रहता है , दूसरों को भी आपत्ति नहीं होती ।
अज तो किसी दार्शनिक की तरह भाषण दे रहे हो मगर बडे काम की बात है ये मानना पडेगा
किसी को हड़का कर बात करने से हमारा अब का मतलब बेशक निकल जाए, लेकिन लॉन्ग इन्वेस्टमेंट में इस तरह का आचरण नुकसानदायक ही होता है. बिलकुल सही बात है। गाँठ बान्ध ली। आअशीर्वाद।
हम कड़क हूँ. 🙂
भूल सुधार
मेरी उपरोक्त टिप्पणी में "सबका आपा खोय" के स्थान पर "मन का आपा खोय" पढ़ा जाए। मुझसे हुई गलती के लिए खेद है।
बहुत सही सन्देश!
ऐसी बानी बोलिए सबका आपा खोय।
औरन को सीतल करे आपहुँ सीतल होय॥
जी हाँ! होमियोपैथी की गोली बहुत मीठी होती हैं!
कुछ दोहे याद आ गए–
शब्द संभारे बोलिए,शब्द के हाथ न पाँव ।
एक शब्द औषधि करे,एक शब्द करे घाव ॥—-कबीर
तुलसी मीठे वचन से,सुख उपजत चहुँ ओर।
वसीकरण एक मंत्र है,परिहरि वचन कठोर॥
तुलसी इह संसार में,भांति-भांति के लोग।
सबसों हिल-मिल चालिए,नदी-नाव संजोग॥
मुझे लगता है की आदमी को देखना चाहिए की स्थिति क्या है व्यवहार उसी तरह का होना चाहिए | जैसा की आप ने कहा की पुलिश स्टेशन जा कर विनम्रता दिखाई तो काम नहीं बनेगा तो वहा पर तो थोडा कडक हो कर ही बात करना पड़ेगा नहीं तो आप अपनी शिकायत भी नहीं लिखवा सकते है | लेकिन जब आपको किसी को समझाना है तो फिर तो विनम्रता ही अपनाना होगा क्योकि तब वही काम करेगी | उसी तरह कुछ मुद्दे ऐसे होते है जिस पर खुल कर और कडाई से विरोध करना चाहिए ताकि लोग बेमतलब की अनर्गल बाते करने से पहले सोचे की इसको इसके लिए कड़ी प्रतिक्रिया मिल सकती है जैसे धर्म जाती के नाम पर भेद भाव या देश से जुड़े कुछ मुद्दे | जबकि छोटे मोटे वैचारिक मतभेदों में हम विनम्रता से अपनी बात कह सकते है |
मुझे तो लगता है कि सर्किट टाइप की विनम्रता सबसे बढ़िया है। हाथ में चाकू भी रहे और हाथ जुड़ा भी रहे 🙂
आपने सही कहा…कड़क वस्तु झुक नहीं सकती…इसलिए टूट जाती है… दुसरी और नरम वस्तु झुक भी जाती है और आहिस्ता से वापिस तन के खड़ी भी हो जाती है…
विनम्रता से…भले देर से ही सही लेकिन काम बन जाता है लेकिन कई बार तू-तड़ाक के लहजे में बात करने से बनता काम भी बिगड जाता है