एक ‘बड़ी’ सी लव स्टोरी…खुशदीप

दो बुज़ुर्ग, एक विधुर और एक विधवा, एक दूसरे को बरसों से अच्छी तरह जानते थे…लेकिन दोनों शहर के अलग अलग ओल्ड एज होम में रहते थे…

एक बार किसी एनजीओ ने वृद्धों के सम्मान के लिए लंच का आयोजन किया…शहर के सारे ओल्ड एज होम्स में रहने वाले वृद्धों को भी आमंत्रित किया गया…इनमें वो विधुर और विधवा भी शामिल थे…संयोग से दोनों को लंच के दौरान बैठने के लिए एक ही टेबल मिल गई…पहले इधर उधर की बातें हुईं और फिर विधुर ने हिम्मत दिखाते हुए बोल ही डाला…क्या तुम मुझसे शादी करना पसंद करोगी…

छह सेंकड तक विधवा सोचती रही और फिर बोली…हां…हां…मैं तुमसे शादी करूंगी…

लंच खत्म हो गया…दोनों ने एक दूसरे का अभिवादन किया और अपने अपने ओल्ड एज होम में आ गए…

अगले दिन बुज़ुर्ग विधुर महोदय बड़े परेशान…यही सोच सोच कर हलकान हुए जा रहे थे कि जिस महिला को प्रपोज़ किया था उसने जवाब में हां कहा था या न…

लाख याद किया, लेकिन बेकार…ये तो अच्छा था महिला का नंबर था जनाब के पास…आखिर फोन मिला ही दिया…हौसला बटोर कर इधर उधर की बातें की…बताया कि अब यादाश्त पहले जैसी नहीं रही…अक्सर चीज़े भूल जाता हूं...विधुर ने एक दिन पहले लंच पर विधवा के साथ बिताए अच्छे वक्त को भी याद किया…आखिर में काम की बात पर आते हुए कहा…मैंने जब तुम्हे शादी के लिए प्रपोज़ किया था तो तुमने क्या जवाब दिया था…हां या न…

विधुर की खुशी का ठिकाना न रहा, जब उसने विधवा को फोन पर कहते सुना…हां…मैंने हां कहा था और दिल से तुम्हारा शादी का प्रपोज़ल कबूल किया था…लेकिन…

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तुमने अच्छा किया मुझे फोन कर पूछ लिया…वरना मैं भी कल से ही ये सोच सोच कर परेशान थी कि वो कौन सा शख्स था जिसने मुझे प्रपोज़ किया था…लाख कोशिश करने पर भी याद नहीं आ रहा था…

(ई-मेल से अनुवाद)

स्लॉग ओवर

मक्खन की बहन को डाकू उठा कर ले गए…

मक्खन बेचारा करे तो करे क्या…

बुरे वक्त पर आख़िर दोस्त ही काम आते हैं…मक्खन के परम सखा ढक्कन ने आगाह करते हुए सलाह दी…

ये डाकू बड़े ख़तरनाक होते हैं…जाने कब क्या कर बैठें…इसलिए खाली हाथ बिल्कुल नहीं जाना…

मक्खन डाकुओं के डैने पर गया और हाथ में…

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दो किलो आम ले गया…