आदमी जो कहता है, आदमी जो सुनता है, ज़िंदगी भर वो सदाएं पीछा करती हैं…खुशदीप

ब्लॉग जगत में आजकल जो लिखा जा रहा है, उसे दबा कर पढ़ रहा हूं…लेकिन कमेंट कहीं नहीं दे पा रहा हूं…उसके पीछे मेरी व्यक्तिगत समस्याएं हैं…उम्मीद है जल्द ही इनसे पार पा लूंगा…फिर दबा कर कमेंट भी करूंगा…एक तो मन पहले से ही उचाट है, ऊपर से ब्लॉग जगत में कई पोस्टों पर तीखा वाकयुद्ध देखकर और बुरा लग रहा है…पहली बात तो इस तरह के आचरण का औचित्य मेरी समझ से बिल्कुल परे हैं…यहां सब मेरे मित्र हैं, शुभचिंतक है…किसी के साथ व्यक्तिगत तौर पर कुछ बुरा हुआ तो मैं सिर्फ उससे हमदर्दी ही जता सकता हूं…लेकिन मैं किसी को सलाह देने वाला कौन होता हूं…और फिर ब्लॉगर ब्लॉगर होता है कोई डिटेक्टिव या इन्वेस्टीगेशन एक्सपर्ट तो होता नहीं जो किसी की पोस्ट को पढ़कर ही जान ले कि कौन गलत है और कौन सही…

यहां ई-मेल और चैट्स का हवाला दिया जा रहा है…पुरानी चैट्स से धूल झाड़कर उन्हें पेश किया जा रहा है…मैं तो किसी से कभी चैट करता हूं, उसी वक्त वो उड़ जाती है…संभाल कर रखने का तो सवाल ही नहीं…चैट पर मर्यादा का ध्यान हमेशा रखता हूं…लेकिन क्या ये हमारा कसूर नहीं कि हम आभासी दुनिया में किसी को करीब जानकर कुछ ज़्यादा ही लिबर्टी ले लेते हैं…इंटीमेट बातें करने लगते हैं…लेकिन यहां ये बात गौर करने लायक है कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती…अगर आप किसी को छूट न दें तो किसी की क्या मज़ाल जो आपकी शान में गुस्ताखी करे…चिंगारी सुलग कर आग बनने की कोशिश करे, बेहतर है कि उस पर पहले ही पानी डाल दिया जाए…

और अगर आप ऐसा नहीं कर पाते…चाहे इच्छा से हो या जज्बात में आकर, अगर आप किसी से चैट पर बात करते हैं तो फिर आप भी उसके परिणामों के लिए उतने ही भागीदार हो जाते हैं जितना कि आप से चैट करने वाला…और फिर उस चैट को संभाल कर रखना…कहीं ये तो नहीं दिखाता कि आप के मन में शुरू से ही आशंका थी…जब तक संबंध मधुर हैं ठीक है…लेकिन जहां कभी संबंधों में कटुता आई, उस चैट या किसी दूसरे माध्यम से हुए संवाद को सार्वजनिक कर दिया जाए…अगर कोई आपको समझाने पर भी लगातार तंग कर रहा है तो उसका सबसे बेहतर तरीका है आप क़ानून का सहारा लें…साइबर लॉ में आजकल इस तरह की हरकतों से निपटने का पूरा बंदोबस्त है…लेकिन निजी चैट को सार्वजनिक कर अपने लिए समर्थन जुटाना, मेरी समझ से तो नितांत गलत है…और अगर कोई आपका समर्थन नहीं करता तो उसे अपने खिलाफ मान लेना भी वाजिब नही है…आपस में टांग खिंचाई की जगह दुनिया में और भी कई मुद्दे हैं जिन पर अपनी ऊर्जा, बुद्धि, विवेक खपाना ज़्यादा श्रेयस्कर है…दूसरे ने क्या किया, हम इस पर क्यों इतनी मगजमारी करते हैं…ये क्यों नहीं सोचते कि हम क्या कर रहे हैं…हमारा आचरण कैसा है, बस इस पर ही क्यों नहीं ध्यान देते…हम भले तो जग भला…

आखिर में बस कबीर को याद करूंगा-

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिल्यो कोए,
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोए

लीजिए अब ये गाना भी सुन लीजिए और सब बड़प्पन दिखाते हुए सारा गुस्सा थूक दीजिए…

आदमी जो कहता है, आदमी जो सुनता है,
ज़िंदगी भर वो सदाएं पीछा करती हैं…