ये मैं नहीं कह रहा…अमेरिका के नेब्रास्का यूनिवर्सिटी और लिंकन्स कालेज ऑफ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन की ताज़ा स्टडी कह रही है…आपको बेशक लीडर वही पसंद हो जो ईमानदार हो, व्यावहारिक हो और शांत दिमाग से काम करता हो…लेकिन उपरोक्त स्टडी कह रही है कि अगर नेतृत्व का सवाल आता है तो पर्सनेल्टी के कुछ नेगेटिव पहलू भी कारगर साबित हो सकते हैं…मसलन अहंकारी, आत्ममुग्ध या अति नाटकीय होना (सीधे शब्दों में ड्रामेबाज़ होना)…
द लीडरशिप क्वाटर्ली जनरल के ताजा अंक में प्रकाशित ये स्टडी वेस्ट पाइंट की यूएस मिलिट्री एकेडमी के दूसरे, तीसरे, और चौथे साल के 900 ऑफिसर कैडेट पर की गई…ये निष्कर्ष हफ्ते दो हफ्ते की मेहनत से नहीं पूरे तीन साल की स्टडी के बाद निकला है कि पर्सनेल्टी के स्याह पक्ष (डार्क साइड) का भी अपना महत्व होता है…स्टडी के चीफ कोआर्डिनेटर और यूएनएल में मैनेजमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर पीटर हार्म्स ने इस संबंध में प्रसिद्ध अमेरिकी एक्ट्रेस माइ वेस्ट के चर्चित कथन को खास तौर पर उद्धृत किया…जब मैं अच्छी होती हूं, अच्छा काम करती हूं, लेकिन जब मैं बुरी होती हूं तो और भी अच्छा परफॉर्म करती हूं…
पहले जितने भी स्टडी या सर्वे हुए थे, उनमें यही उभर कर आया था कि कि बहिर्मुखी व्यक्तिव, भावुकता के स्तर पर स्थिर होना और सजगता, ऐसे गुण हैं जो लीडर के विकास और प्रदर्शन, दोनों पर ही बहुत अच्छा प्रभाव डालते हैं…लेकिन इन स्टडी या सर्वे में पर्सनेल्टी के नेगेटिव ट्रेट्स (स्याह पक्ष) पर बहुत कम गौर किया गया कि क्या वो वाकई लीडर के विकास में बड़े बाधक होते हैं…क्या वो कभी फायदेमंद भी हो सकते हैं…ताजा स्टडी का जवाब है, हां…नेगेटिव ट्रेट्स भी किन्ही खास परिस्थितियों में मददगार हो सकते हैं…मसलन हर कोई मानता है कि ज़रूरत से ज़्यादा शक्की मिज़ाज का होना विकास और परफार्मेंस दोनों के लिहाज़ से बुरा होता है…लेकिन ताजा स्टडी में पाया गया कि अति सतर्क होना और अनिश्चितता की स्थिति में रहना भी नेतृत्व कौशल को बढ़ाने में सहायक साबित हुए…
स्टडी में हॉगन डवलपमेंट सर्वे का इस्तेमाल किया गया…इसमें एकेडमी के कैडेट्स के लीडरशिप प्रदर्शन के बदलाव में सबक्लिनिकल ट्रेट्स (छुपे हुए कारक) पर बारीकी से नज़र रखी गई…स्टडी में पाया गया कि कुछ डार्क साइड माने जाने वाले कारक जैसे कि आत्ममुग्ध होना, अति नाटकीय होना, दूसरों का आलोचक होना, नियमों को लेकर हद से ज़्यादा अड़ियल होना…आदि हक़ीक़त में लीडरशिप क्वालिटी के विकास में अच्छा प्रभाव छोड़ते देखे गए…चीफ कोऑर्डिनेटर हार्म्स के मुताबिक इन कारकों को अकेले-अकेले देखा जाए तो उनका असर बेहद कम था…लेकिन जब इन सबको जोड़ कर देखा गया तो ये जानने में बड़ी मदद मिली कि किस कै़डेट ने कितनी लीडरशिप क्वालिटी अपने अंदर विकसित की…व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो किसी खास तरह के जॉब या रोल में ये नेगेटिव गुण (या दुर्गुण) बड़े कारगर साबित होते दिखे…हार्म्स ने ये भी साफ किया कि ये न समझा जाए कि इन सभी डार्क ट्रेट्स की ओवरडोज़ किसी को बढ़िया लीडर बना सकती है…ये सब परिस्थितियों या माहौल की डिमांड पर निर्भर करता है…इस स्टडी के निष्कर्षों को अमेरिका के कई बड़े कॉरपोरेट हाउस अपने एक्जेकेटिव ट्रेनिंग प्रोग्राम में इस्तेमाल कर रहे हैं…
अब मेरा निष्कर्ष…
अमेरिकी यूनिवर्सिटी में स्टडी करने वालों ने खामख्वाह पैसा और तीन साल बर्बाद किए, एक बार हमारे देश में आकर लीडरों पर एक-दो दिन ही स्टडी कर लेते…जिसमें जितने ज़्यादा नेगेटिव ट्रेट्स वो उतना ही बड़ा लीडर…
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very interesting…
एक बार आलेख लिखा था…वेल्यु ऑफ न्यूसेन्स वेल्यु पर. 🙂
कोशिश करते हैं बुरे हो जाने की. 🙂 पहले शिकंजे में तुम पर आजमाया जाये क्या?
इन नकली उस्ताद जी से पूछा जाये कि ये कौन बडा साहित्य लिखे बैठे हैं जो लोगों को नंबर बांटते फ़िर रहे हैं? अगर इतने ही बडे गुणी मास्टर हैं तो सामने आकर मूल्यांकन करें।
स्वयं इनके ब्लाग पर कैसा साहित्य लिखा है? यही इनके गुणी होने की पहचान है। अब यही लोग छदम आवरण ओढे हुये लोग हिंदी की सेवा करेंगे?
वो शोध कर अब निष्कर्ष पर पहुचे है 🙂
अपने यहाँ तो वर्षों से अमल हो रहा है …..
sahi kaha, koun waste karega apne teen saal… and isiliye wo America and ye INDIA…
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जिन्हें खोजते हुये क्यों हम मीलों चले
वह तो मेरे घर के पिछवाड़े ही मिले
आज से ही पाठ लेना शुरु
Very Nice……..
आज पहली बार आया हूँ यहाँ, देखा-पढ़ा तो पाया कि आप काफी ‘खोजू’ और ‘शोधू’ प्रवृत्ति के इंसान हैं…आजकल इस प्रजाति के मानव बहुत कम हैं… सब अपनी-अपनी दिनचर्या में व्यस्त! आपसे अब मिलता रहूँगा…!
चलो इक बार फिर से हम बुरे बन जायें — मै जब नेगेटिवे एफेक्ट मे होती हूँ तो अच्छा{बहुत अच्छा तो आज तक नही लिखा} लिख लेती हूँ अब बहुत बुरी होना होगा बहुत अच्छा लिखने के लिये। बडिया स्टडी।शुभकामनायें।
सही बात है । ऐसे काम के लिए टाइम और पैसा क्यों खर्चा ?
यहाँ तो मुफ्त में सीखने को मिल जाता ।
कभी कभी टेढ़ा होना पड़ता है कुछ सार्थक कर गुजरने के लिये। पहले लोगों को ठीक नहीं लगता है पर बाद में लोग प्रशंसा करते हैं।
कौन सा नया काम कर लिया इन लोगों ने, हमें तो यह पहले से ही मालूम है।
@आओ, थोड़े बुरे हो जाएं
लीजिए हो गए…………….।:)
5.5/10
नवीन विषय पर विचारणीय पोस्ट.
ऊपर शरद कोकास जी की प्रतिक्रिया भी पठनीय है.
मनोविज्ञान मे एक नियम है law of domination effect यानि येन केन किसी तरह अपने सारे गुणो, दुर्गुणो का उपयोग कर अगले व्यक्ति पर अपना प्रभाव स्थापित करो । नेतृत्व का यह सर्वधिक महत्वपूर्ण कारक होता है । निस्सन्देह हमारे नेता इसका उपयोग करते हैं । वह एक नेता है और वह एक अच्छा आदमी है , यह दोनो वाक्य एक ही व्यक्ति के सन्दर्भ मे नही कहे जा सकते ।
भारत में तो एक ढ़ूंढ़ने पर हजार मिलते हैं…
तीन साल…. पागल हे जी…… लालू एक दिन मे सब दिखा देता
विचारणीय प्रस्तुती….
इन दोनों को लॉन्ग लीव पर भेज दिया क्या खुशदीप भाई …?
चलो एक बार फिर से ….बुरे बन जाएँ हम दोनों !!
जय हिंद !!