अयोध्या का नाम हर ज़ुबान पर है…हर किसी को फैसले का इंतज़ार है…मुकदमे से जुड़ी हर पार्टी को उम्मीद है कि 30 सितंबर को दोपहर साढ़े तीन बजे इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का फ़ैसला उसी के हक में आयेगा…अगर फ़ैसला अपने हक़ में नहीं आया तो…क्या हर पार्टी हाईकोर्ट के फैसले को शालीनता के साथ मान लेगी…जो जवाब आपका दिमाग दे रहा है, वही मेरा भी दे रहा है…तय है कि कोई न कोई पार्टी सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती देगी…ज़ाहिर है ये वही पार्टी होगी जिसके खिलाफ़ फैसला गया होगा…ज़रूरी नहीं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी इस विवाद पर विराम लग जाए…फिर अपने हक में संसद से क़ानून बनाने की मांग होगी…सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए जगह-जगह आंदोलन किए जाएंगे…भावनाओं का ज्वार लाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की जाएगी…आखिरी फैसला बेशक लटका रहे लेकिन सियासत का रंग उतना ही चोखा होता जाएगा जितना कि सड़कों पर प्रदर्शन के ज़रिए उबाल आयेगा…
सियासत चाहेगी कि ऐसे ही हालात बने रहे और फैसला किसी तरह लटका रहे…सत्ता की चाशनी वाली हांडी बार-बार पकती रहे…नेता चाहे इधर के हो या उधर के, अयोध्या के नाम पर अपने-अपने वोट-बैंकों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे…लेकिन ऐसा करते वक्त वो भूल जाते हैं कि भारत का अधिकतर वोटर अब युवा है…पढ़ा लिखा है, अपना भला-बुरा खुद अच्छी तरह सोच सकता है….वो इक्कीसवी सदी में रह रहा है…बीसवीं सदी उसके लिए कोई मायने नहीं रखती…वो तो बस आर्थिक तरक्की के घोड़े पर चढ़ कर आसमान को छूना चाहता है…उसे मज़हब, जात-पात, भाषा, प्रांतवाद के नाम पर बेड़ियों में बंधना पसंद नहीं है…मेरा मानना है, और सियासतदानों को भी मान लेना चाहिए कि काठ की हांडी को दोबारा आग दिखाने की कोशिश की तो खुद के ही हाथ जलेंगे…
सब अयोध्या-अयोध्या कर रहे हैं…क्या कभी किसी ने अयोध्या की ज़मीन से पूछा है कि वो क्या चाहती है…क्या सरयू का पानी कहता है कि उस पर किसी खास धर्म का ही हक है…अयोध्या-फैज़ाबाद, गंगा-जमुनी तहज़ीब क्या इनको अलग कर देखा जा सकता है…अयोध्या में रामनवमी का मेला लगता है तो उसकी कमाई से ही शहर के हिंदू-मुसलमान दुकानदारों का कई महीने की रोज़ी-रोटी का जुगाड़ होता है…लेकिन अदालती प्रक्रिया की कोई भी सुगबुगाहट होती है तो अयोध्या सगीनों के साये में आ जाता है…गली-कूचों में जवानों के बूटों की चाप सुनाई देने लगती है…इतिहास गवाह है कि अयोध्या-फ़ैज़ाबाद के मूल नागरिक हमेशा अमन-पसंद और सुख-दुख में साथी रहे हैं…अयोध्या में तनाव तभी महसूस किया गया जब बाहर से आने वाली आंधियां अपने साथ नफरत का जहर लेकर आईं…स्थानीय नागरिकों की मानी जाती तो उन्होंने चौबीस साल पहले ही आपस में बैठकर इस मुद्दे का हल ढूंढ लिया था…(आप अगर उसे जानना चाहें तो कल पोस्ट लिख सकता हूं)
पिछले साठ सालों में ये पहली बार हुआ है कि अब हर कोई फैसला सुनने के लिए तैयार है..अदालत फैसला देने के लिए तैयार है…फैसला आने के बाद ऊंट किस करवट बैठेगा, ये बाद की बात है…मैं सिर्फ फैसला सुनने की बात कर रहा हूं…फैसला मानने की नहीं…ऐसे बयान भी हमने सुने हैं कि आस्था से जु़ड़े मुद्दे कोर्ट के डोमेन से बाहर हैं…कोर्ट आपके हक में फैसला दे दे तो ठीक, नहीं दे तो आस्था का सवाल उठा कर कोर्ट के फैसले को ही नकार दिया जाए…अगर आपको विपरीत फैसला आने पर कोर्ट पर ही भरोसा नहीं तो आप फिर कोर्ट से फैसले की दरकार करने ही क्यों आए थे…फैसला उलट आने पर आपको संसद से क़ानून बनाने का रास्ता नज़र आ जाएगा…ये रास्ता भी सरकार ने ही शाहबानो केस के ज़रिए देश को दिखाया था…शाहबानो केस में राजीव गांधी सरकार न झुकती तो फिर कोई संसद से क़ानून बनाए जाने को नज़ीर की तरह पेश नहीं करता…
मुझे इस बात पर भी हंसी आती है जब कोई ये कहता है कि आपसी समझौते के ज़़रिए समाधान निकाला जा सकता है…अयोध्या से जुड़े केस में कुल 27 पार्टियां हैं…क्या कभी ये सब पार्टियां एकसुर में बोल सकती हैं….दूसरी बात का जवाब मैं और जानना चाहता हूं कि क्या हमारे देश में कोई एक संगठन या पार्टी ये दावा कर सकती है कि वो देश के सारे हिंदुओं या सारे मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है…मान लीजिए कुछ संगठन आपस में समझौता कर भी लें तो क्या गारंटी उन पर सेल-आउट का आरोप लगाते हुए उंगलियां नहीं उठेंगी…फिर ऐसी सहमति का क्या मतलब रह जाएगा…
मेरी निजी राय है कि अयोध्या के लिए कभी सुलह का रास्ता हो सकता है तो वो अयोध्या से ही निकलेगा…बस ज़रूरत है कि इसे अयोध्या-फैज़ाबाद के लोगों पर ही छोड़ दिया जाए…बाहर का कोई व्यक्ति दखल न दे…अयोध्या खुद ही ठंडे दिमाग से अतीत से मिली दीवार पर भविष्य की इबारत लिखे…सरकार भी इस काम में ईमानदारी के साथ अयोध्यावासियों का साथ दे…देश का हर नागरिक इस पुनीत काम में अयोध्या को अपना नैतिक समर्थन दे…मैं भी जानता हूं कि ये मेरी सारी बातें हवा में तीर हैं…लेकिन ये सपना तो देख ही सकता हूं…आप भी इस सपने को सुनिए-
अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम….
- चित्रा त्रिपाठी के शो के नाम पर भिड़े आजतक-ABP - April 25, 2025
- भाईचारे का रिसेप्शन और नफ़रत पर कोटा का सोटा - April 21, 2025
- 3 क़ातिल बेगम: ड्रम, ड्रेन और डंक - April 18, 2025
बहुत सामयिक और सार्थक लेख ।
अंशुमाला जी आप की बात सही निकली सब को थोडा थोडा लड्डू बांट दिया अदालत ने । राहत की बात ये है कि सब कुछ शांती से निबट गया ।
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
यह अगर काठ की हांडी है तो हाथ तो जलेंगे हांडी भी जल जाएगी । मुख्य बात तो यह है कि अब यह पीढी इस बात को समझ रही है लेकिन कहीं न कहीं वह किसी के आगे विवश है । जिस दिन इस पढी लिखी पीढी को किसी का भय नही रहेगा वह मुक्त होकर कह सकेगी कि हम अपने भविष्य का फैसला खुद करेंगे ।
वह पोस्ट आप लिख ही डालिये ।
बहुत सही !!
बहुत सही…
बोले तो जय हिन्द..
राजनीतिज्ञों द्वारा सृजित अयोध्या कांड का अंत सुंदर हो। अंत भला तो सब भला।
जो भी फ़ेसला आये उसे अंतिम माना जाये, या फ़िर सिर्फ़ आयोध्या के नागरिक आपस मै मिल कर बेठ कर शांति से फ़ेसला कर ले, नेताओ की तो यह आग लगाई हुयी है, इस लिये इन सब नेताओ को ओर पांडे मोलवियो को भी इस से दुर रखा जाये, जो जनता पिसती है उस से पुछा जाये या फ़िर फ़ेसला आये कि वहां एक अस्पताल बना दिया जाये जिस मै हिन्दु मुस्लिम ओर जो चाहे अपनी श्रद्धा के अनुसार मदद करे, ओर सब का इलाज वहां मुफ़त मै हो
अब कल फैसला आ ही रहा है तो इस विषय पर ज्यादा क्या चिंतन। कल बात करेंगे।
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना 🙂
@भारत का अधिकतर वोटर अब युवा है…पढ़ा लिखा है, अपना भला-बुरा खुद अच्छी तरह सोच सकता है…
खुशदीप जी ये हमने आप ने भ्रम पाल लिया है जरा एक आम युवा के विचार सुनिये ये भ्रम टूट जायेगा |
मुझे लगता है की काफी सालो से ये मुद्दा ठन्डे बस्ते में जा चूका है अब वोटर इस पर नहीं भड़कता है किसी फैसले के आ जाने पर जरुर ये रुख पलट सकता है तो अच्छा हो की ये मामला और ६० साल युही लटका रहे यही सहीहल है | साथ ही मुझे नहीं लगता है की अदालत कुछ ऐसा फैसला देने वाली हो जिसका ये मतलब निकले की एक पक्ष की जीत हुई और दुसरे की हार देखिएगा अदालत भी इस मुद्दे पर कुछ गोल गोल फैसला देगी |
दिल बहलाने को ख्याल अच्छा है ग़ालिब.
…स्थानीय नागरिकों की मानी जाती तो उन्होंने चौबीस साल पहले ही आपस में बैठकर इस मुद्दे का हल ढूंढ लिया था…
Please aap is mudde pe post jaroor likhe,
Baaki is blog ke liye aapka bahut bahut shukriya.
मेरी निजी राय है कि अयोध्या के लिए कभी सुलह का रास्ता हो सकता है तो वो अयोध्या से ही निकलेगा…बस ज़रूरत है कि इसे अयोध्या-फैज़ाबाद के लोगों पर ही छोड़ दिया जाए…बाहर का कोई व्यक्ति दखल न दे…अयोध्या खुद ही ठंडे दिमाग से अतीत से मिली दीवार पर भविष्य की इबारत लिखे…सरकार भी इस काम में ईमानदारी के साथ अयोध्यावासियों का साथ दे…देश का हर नागरिक इस पुनीत काम में अयोध्या को अपना नैतिक समर्थन दे…मैं भी जानता हूं कि ये मेरी सारी बातें हवा में तीर हैं…लेकिन ये सपना तो देख ही सकता हूं…आप भी इस सपने को सुनिए-
hum aap ki baat sai sahmat hai.
ek baat ka malal hai hum aur aap sabhi aacchi tarah sai jante hai ki babar ek lutera thaa.,
ab sawal yeh hai ki jab babar ek lutera tha tab kaun si babari masjid hai.kiya musalman haram ki masjid ke liya lad raha hai———
हवा के तीर भी कई बार निशाने पर लग जाते हैं जी।
बढिया और विचारणीय आलेख है।
आपने सही कहा जी आज का वोटर युवा है, अपना भला-बुरा खुद सोच सकता है।
लेकिन फिर भी हर बार नेताओं के बहकावे में आ जाता है।
देखते हैं यह काठ की हांडी दोबारा चढती है या नहीं।
प्रणाम
हवा मे छोडे गये तीर भी कुछ तो काम करते हैं— लोग ये तो समझ जाते हैं कि कोई उन्हें डराने को ही सही सन्देश तो दे रहा है। लेकिन खुशदीप का तीर इस बात की ओर तो ईशारा कर ही रहा है कि सम्भल जाओ। सार्थक आलेख। आशीर्वाद।
गंभीर चिंतन का विषय है और उस पर एक बहुत ही सार्थक, बेहतरीन लेख लिखा है खुशदीप भाई…. आम आदमी तो केवल ईश्वर / अल्लाह से प्रार्थना भर कर सकता है कि देश को फिर से बुरी नज़र ना लग जाए. लोगो के खून से सत्ता प्राप्ति के सपने देखने वाले लालची लोगों की योजनाएं नाकामयाब हो जाएं….. अमीन
शुभकामनायें खुशदीप भाई !!
prarthana hee kar saktee hoo sabheeko satbuddhee de iswar allah………
shanti bhaichara bana rahe….koi updrav naa ho…..
saamyik aur acchee post…..
Aabhar……..aaj ke jwalant mudde ko uthane kaa…
अगर अयोध्या में हिन्दू मुस्लिम साथ साथ रह सकते हैं तो मंदिर मस्जिद दोनों क्यों नहीं बन सकते ?
तेरा मेरा के चक्कर में ही तो सारी दुनिया बंटी पड़ी है ।
अयोध्या मे राम जन्म भूमि पर बने टेन्ट मन्दिर का जीर्णोद्धार की कामना कर ही सकता हूं .
मुझे उन लोगो से तकलीफ़ होती है जो सेक्युलर बनने के चक्कर में अयोध्या को तरह तरह के सुझाव दे देते है .
मै राम मन्दिर का पक्षधर हूं यह बात कहने पर अगर मै साम्प्रदायिक हूं तो मुझे गर्व है साम्प्रदायिक होने पर
खुशदीप भाई, संकट यह है कि अयोध्या को न अयोध्यावासियों की रहने दिया गया और न ही राम की। उसे अखाड़े का ध्वज बना दिया गया है। अयोध्या अयोध्यावासियों और राम की बन जाए यही कामना है।
बहुत अच्छा विश्लेषण एवं विचारणीय आलेख. बेहतरीन.
बेहतर हो पोस्ट आप भी आज ही लिख देते। कल तो हवा का रुख ही न बदल जाए। हवा का ये रुख किस दिशा में होगा कहा नहीं जा सकता। सवाल सिर्फ अयोध्या की शांति का नहीं भारतवर्ष की शांति का है। राम निकले थे देश की, दुनिया कि शांति के लिए। अब यही काम भारतवंशियों का है। करोड़ों हिंदुओं का है, मुस्लमानों का है। मुश्किल ये है कि इतिहास को मिटाकर हल करने की बात की जाती है। होना ये चाहिए कि इतिहास से सबक लेकर हल कि दिशा में तबतक मिलकर बढ़ना चाहिए जबतक मंजिन मिल नहीं जाती।