अलविदा, अलविदा…कितने जानलेवा हैं ये शब्द अलविदा….आप के सफ़र में कोई साथी बन गया हो…रोज़ आपका उससे वास्ता हो…और फिर अचानक वो कह दे, अलविदा…ये शब्द फिर कानों में पिघलते लावे से कम नहीं लगता…कैसे कोई एकतरफ़ा फैसला ले सकता है…जबकि उस पर अब औरों का भी हक है….क्या सिर्फ एक एसएमएस करने से ही दूसरों का ये हक़ छीना जा सकता है…
गीत को सुनने और देखने के लिए यू ट्यूब का लिंक है…
http://www.youtube.com/watch?v=ZNdpoWhLDFE&feature=fvw
चुपके से कहीं, धीमे पांव से
जाने किस तरफ़, किस घड़ी
आगे बढ़ गए हमसे राहों में
पर तुम तो अभी थे यहीं
कुछ भी न सुना, कब का था गिला
कैसे कह दिया अलविदा…
जिनके दरमिया गुज़री थी अभी
कल तक ये मेरी ज़िंदगी
दोनों बाहों को, ठंड़ी छांव को
हम भी कर चले अलविदा
अलविदा अलविदा, मेरी राहें अलविदा
मेरी सांसें कहती हैं, अलविदा
अलविदा, अलविदा, अब कहना और क्या
जब तूने कह दिया, अलविदा…
सुनले बेख़बर, यूं आंखें फेर कर आज तू चली जा
ढ़ूंढेगी नज़र हमको ही मगर हर जगह
ऐसी राहों में लेके करवटें, याद हमारी करना
और फिर हार कर कहना क्यूं मगर, कह दिया अलविदा, अलविदा
कोई पूछे तो ज़रा, क्या सोचा और कहा अलविदा
अलविदा, अलविदा, अब कहना और क्या
जब तूने कह दिया, अलविदा…
दिल चले, फिर भी दिल कहे
काश मेरे संग होते तुम अगर, होती हर डगर गुलसिता
तुमसे है खफ़ा, हम नाराज़ है, दिल है परेशान
सोचा ना सुना तूने क्यों भला कह दिया अलविदा,अलविदा
कोई पूछे तो ज़रा, क्या सोचा और कहा अलविदा
अलविदा, अलविदा, अब कहना और क्या
जब तूने कह दिया, अलविदा…
क्या सोचा और कहा अलविदा
दोनों बाहों को, ठंड़ी छांव को
हम भी कर चले अलविदा…
( फिल्म- लाइफ़ इन ए मेट्रो, गीतकार-सैयद कादरी, संगीतकार- प्रीतम, गायक- जेम्स )
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