अब न्यूज़ भी हुई फरमाइशी…खुशदीप



छोटे होते थे तो
ऑल इंडिया रेडियो पर फरमाइशी या मनपसंद गाने सुनना बड़ा अच्छा लगता था…अब न्यूज़
भी मनपसंद हो चली है. पर्सनलाइ्ज्ड न्यूज़…जो आपके मतलब का है उसे देखने-पढ़ने-सुनने
के लिए आपको माध्यम भी मिल ही जाएंगे…



ऐसे माहौल में ये
जानने-समझने की सुध किसे है कि पूर्ण सत्य क्या है…वो भी तब जब सबको पता है कि
अर्द्धसत्य झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है…

तटस्थता को ताक
पर रखकर अब देश भी वैचारिक धरातल में बंट गया है… जिसकी जो सेट सोच है
, उससे एक इंच आगे पीछे नहीं होना चाहता…(इसमें
आपके साथ-साथ मैं खुद भी शामिल हूं)

अजीब हाल हो चला
है…कोई कह क्या रहा है और उसे बताया क्या जा रहा है…देशभक्ति या राष्ट्रप्रेम
को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे इस पर एक खास विचारधारा वाले लोगों का ही
पेटेंट है…सेना
, जो देश का गौरव
है
, उसकी कार्रवाइयों को
पब्लिक डोमेन पर लाकर बहस का विषय बना दिया गया है.

ये तो भारतीय
लोकतंत्र की खूबसूरती और हमारी सेना का अनुशासन है कि वो पूरे मनोयोग और समर्पण से
हमेशा अपनी ड्यूटी को अंजाम देती रहती है…वो चाहे युद्धकाल हो या
शांतिकाल…सेना ने देश में कभी अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं किया (बस
ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान कुछ गिनती के सैनिकों की हरकत अपवाद है)…

दिक्कत ये है कि
कोई सेलेब्रिटी बयान देता है तो वो आप तक पूरा नहीं पहुंचता…सेलेब्रिटी से सवाल
पूछे जाते हैं और वो उनका जवाब देते हैं…या किसी कार्यक्रम-इवेंट में उनके कहे
को खबर बना लिया जाता है…अब अपने हिसाब से ही उस पर बहस कराई जाती है…चुन चुन
कर ऐसे लोगों को बुलाया जाता है कि वो उस सेलेब्रिटी की बखिया उधेड़ सकें…

अभी ऐसे दो
वाकयों का जिक्र करना चाहता हूं…सलमान खान और ओम पुरी…सलमान की ये बात तो बड़ी
हाईलाइट हुई कि वो पाकिस्तानी कलाकारों को बॉलिवुड में काम करने देने के पक्ष में
हैं
, लेकिन इस पर किसी ने जोर
नहीं दिया कि सलमान ने उरी हमले के जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक को प्रॉपर जवाब
बताया था…कहा था एक्शन का रिएक्शन होना जरूरी है…लेकिन सलमान के पूरे बयान को
किसने सुना…

इसी तरह ओम पुरी
ने कहा कि पाकिस्तानी कलाकारों के देश में काम करने देने या ना करने देने पर फैसला
सिर्फ भारत सरकार ले सकती है
, क्योंकि वही
उन्हें वीजा या वर्क परमिट देती है..दूसरे इस मुद्दे पर फैसला लेने वाले कौन होते
हैं…ओम पुरी की ये बात तो पकड़ी गई…लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया कि
उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के लिए सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि पहली बार देश
में राजनीतिक नेतृत्व ने इच्छाशक्ति दिखाई…वरना देश अतीत में उरी से बड़े भी कई
हमलों का दंश झेल चुका है…काश ओम पुरी का भी पूरा बयान सुना गया होता…

होता ये भी है कि
सेलेब्रिटी से उन्हें तैश में लाने वाले सवाल भी किए जाते हैं…ऐसे में
सेलेब्रिटी भी झल्लाहट में कुछ कह सकता है जो पॉलिटिकली करेक्ट ना हो…ये कलाकार
होते हैं
, राजनीति के मंझे खिलाडी
नहीं
, जो सवाल का जवाब देने की
जगह अपनी ही गाते रहने में माहिर होते हैं…
सेना की हर कोई
बात करता है…शहीदों की बात की जाती है…लेकिन युद्ध
, आतंकी हमले या आपात स्थितियों में ही इनकी याद क्यो की जाती
है…थोड़ा वक्त बीतते ही इन्हें भुला कर सब अपने रूटीन लाइफ मे जुट जाते
हैं…कौन फिर इन सैनिकों के परिवारों की मदद के लिए आगे आता है…पाक कलाकारों पर
व्यर्थ की बहस में उलझने से ये कहीं सार्थक रहता कि उरी के शहीदो के परिवारों के
लिए कोई अभियान चलाया जाता
,,,

आखिर में एक सवाल
का जवाब दीजिए
, आप-हम में से या
देश के नेताओं में से कितने ऐसे होंगे जिन्होंने अपने बच्चों को सेना में करियर
बनाने के लिए भेजा…या यही सर्वे करा लिया जाए कि देश के कितने नौनिहाल ऐसे होंगे
जो सेना में जाने को करियर की पहली पसंद बताते हो…
मैंं साठ के दशक
में पैदा हुआ था
, तब 10 साल के अर्से में ही भारत ने तीन युद्ध 1962,
1965 और 1971 लड़े थे…उसी दौर में सन ऑफ इंडिया फिल्म का
गाना बड़ा प्रसिद्ध हुआ था- “नन्हा मुुन्ना राही हूं
, देश का सिपाही हूं, बोलो मेरे संग जय हिंद, जय हिंद…”
उस वक्त स्कूलों में बच्चे फैंसी ड्रेंस कंपीटिशन में भी मिलिट्री ड्रेस पहन कर
जाते थे तो खूब तालियां बटोरते थे…


आखिर हम जय हिंदकहना क्यों भूल गए हैं..