एक एसएमएस बड़ा चल रहा है…चवन्नी यानि चार आना को प्रचलन से बाहर क्यों किया…दरअसल सरकार को अन्ना शब्द से ही इतना खौफ़ हो गया है कि उसे चवन्नी में ही चार-चार अन्ना नज़र आने लगे थे…एक अन्ना को ही झेलना मुश्किल है, फिर चार अन्ने कैसे झेले जाते…सत्याग्रह में वाकई ही बड़ी ताकत होती है…लेकिन ज़रूरी है कि उसमें सिर्फ सत्य का ही आग्रह हो…यही वजह है कि गांधी जी के 1930 में दांडी यात्रा के दौरान किए गए नमक सत्याग्रह को अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले 10 महत्वपूर्ण आंदोलनों की सूची में दूसरे स्थान पर रखा है…गांधी जी के सत्याग्रह और नौ अन्य आंदोलनों की बात बाद में…पहले देश के मौजूदा हालात की बात कर ली जाए…
अन्ना हज़ारे
अन्ना हज़ारे कल तक कह रहे थे कि किसी भी राजनीतिक दल को अपने मंच पर नहीं आने देंगे…
आज वही अन्ना अपने सिपहसालारों के साथ राजनीतिक दलों के द्वारे-द्वारे जाकर समर्थन मांग रहे हैं…
कांग्रेस
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह रहे हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन कैबिनेट में उनके कुछ साथियों और कांग्रेस में कुछ नेताओं की राय इससे अलग है…
फिर आप प्रधानमंत्री किस बात के हैं…न्यूक्लियर डील पर जैसे सख्त तेवर आपने दिखाए थे, वो अपनी पार्टी में एक राय बनाने के लिए आज क्यों नहीं दिखा रहे हैं…
बीजेपी
पहले सरकार लोकपाल पर अपने बिल का ड्राफ्ट पेश करें, फिर पार्टी अपनी राय व्यक्त करेगी कि प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका, संसद में सांसदों के बर्ताव को लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए या नहीं…
क्यों भाई, अन्ना जब आपके द्वारे गए तो आपके पूरे कुनबे ने उनसे भेंट की, फिर आपको आज साफ़ तौर पर पार्टी की राय बताने में क्या परेशानी है…
नीतीश कुमार
अन्ना की तारीफ़ की…अन्ना से अपनी तारीफ़ भी करा ली…बिहार में लोकायुक्त के गठन की बात भी मान ली…
लेकिन अन्ना से मुलाकात के दौरान लोकपाल बिल पर अपने पत्ते छुपाए रखे…क्यों नीतीश जी आप तो साफ़गोई के लिए जाने जाते हैं, फिर यहां गोल-मोल बात क्यों…
कहने का लब्बोलुआब यही है कि अन्ना लाख कोशिश कर ले लेकिन सभी राजनीतिक दल एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं…कौन सांसद चाहेगा कि उसके संसद में किए आचरण को लेकर लोकपाल उस पर चाबुक चलाए…
चलिए आज के हालात का ज़िक्र तो हो गया…अब बात बापू के सत्याग्रह और दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले नौ अन्य आंदोलनों की… बापू ने मार्च 1930 में अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से 24 दिन की यात्रा शुरू की थी….यह यात्रा समुद्र के किनारे बसे शहर दांडी के लिए थी, जहां जा कर बापू ने औपनिवेशिक भारत में नमक बनाने के लिए अंग्रेजों के एकछत्र अधिकार वाला कानून तोड़ा था…
टाइम ने ‘नमक सत्याग्रह’ के बारे में लिखा है कि इस सत्याग्रह ने ब्रिटिश वर्चस्व तोड़ने के लिए भावनात्मक एवं नैतिक बल दिया था…भारत पर ब्रिटेन की लंबे समय तक चली हुकूमत कई मायने में चाय, कपड़ा और यहां तक कि नमक जैसी वस्तुओं पर एकाधिकार कायम करने से जुड़ी थी…औपनिवेशिक हुकूमत के तहत भारतीय न तो खुद नमक बना सकते थे और न ही बेच सकते थे… उन्हें ब्रिटेन में बना और वहां से आयात किया गया महंगा नमक खरीदना पड़ता था…
टाइम ने 10 प्रभावशाली आंदोलनों की सूची में अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभाने वाली ‘बोस्टन चाय पार्टी’ को पहले स्थान पर रखा है…वर्ष 1963 में वाशिंगटन में निकाले गये ‘सिविल राइट मार्च’ को तीसरा स्थान मिला है…इस सूची में समलैंगिक अधिकारों को लेकर वर्ष 1969 में न्यूयार्क में चले स्टोनवाल आंदोलन को चौथा, वियतनाम युद्ध के खिलाफ वाशिंगटन में हुए विशाल प्रदर्शन को पांचवा, ईरान में 1978 के मोहर्रम विरोध प्रदर्शन को छठवां और 1986 में हुए पीपुल पॉवर विरोध प्रदर्शन को सातवां स्थान दिया गया है…चीन में थ्येन आन मन चौक पर विरोध प्रदर्शन को आठवें, दक्षिण अफ्रीका में केपटाउन के पर्पल रेन प्रोटेस्ट को नौंवे और मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के खिलाफ इस वर्ष जनवरी में हुए विशाल प्रदर्शन को पत्रिका ने 10वें स्थान पर रखा है…
क्या आपको अन्ना हज़ारे या बाबा रामदेव के आंदोलनों में ऐसा दम नज़र आता है कि वो भारत में क्रांतिकारी परिवर्तन का आधार तैयार करें और टाइम की फेहरिस्त में अगला स्थान मिल जाए…
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आप सब के लिए चेतावनी…कभी रजनीकांत पर हंसने की भूल मत कर बैठिएगा…क्या कहा…क्यों…तो इस लिंक को पढ़ लीजिए…