अन्ना से मेरे दस सवाल…खुशदीप

जिसका अंदेशा था, वही हुआ…जंतर-मंतर पर जली लौ से जो उम्मीद जगी थी, वो लड़ाई की शुरुआत में ही टिमटिमाने लगी है…अन्ना की ईमानदारी और मंशा को लेकर मुझे कोई शक-ओ-शुबहा नहीं लेकिन अनशन टूटने के 48 घंटे में ही जो घटनाक्रम घटा है, वो ज़्यादा उत्साहित करने वाला नहीं है…कांग्रेस और केंद्र सरकार के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और शिवसेना को भी अन्ना पर प्रहार करने के लिए खाद-पानी मिल गया है…सरकार या विरोधी दलों से देश की जनता की तरह ही मुझे कोई आस नहीं लेकिन अन्ना से  हैं…इसलिए जिसे अपना समझा जाए, उसे आगाह करना भी सच्चे शुभचिंतक का फ़र्ज होता है…इसलिए आज स्प्रराइट की तर्ज पर सीधी बात, नो बकवास करते हुए अन्ना से 10 सवाल…

1… क्या ये बेहतर नहीं कि आप जो भी बोलें, तौल-मोल कर बोलें…इस वक्त देश में कौन नेता अच्छा, कौन बुरा जैसे बयान देने की जगह पूरा फोकस भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम पर रखना  क्या श्रेयस्कर नहीं है…नेता कौन से अच्छे हैं, कौन बुरे, ये देश की जनता भी जानती है…आप किसी को इंगित करेंगे तो राजनीति को आप पर निशाना साधने का मौका मिल जाएगा, जैसा कि आपके नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी पर दिए बयान को लेकर हुआ….

2… आपसे हर कोई इस वक्त ज़्यादा से ज़्यादा बुलवाना चाहता है…लेकिन आप वहीं बोलें जो कि आप बोलना चाहते हैं…वो नहीं जो कि आपके मुंह से से बुलवाया जाए…ये बहुत नाज़ुक दौर है, ज़रा सी भी चूक इस पूरी मुहिम को पटरी से उतार सकती है…

3…आप या आपकी टीम में कहीं विरोधाभास न दिखाई दे…ज़रा सा भी अलग बयान विरोधियों को ये कहने का मौका देगा कि आपके घर में ही फूट है…किरन बेदी एक दिन गला खराब होने की वजह से अनशन-स्थल पर नहीं आई तो तिल का ताड़ बनाया जाने लगा…बेहतर यही होगा कि आप अपनी टीम में से किसी प्रखर वक्ता को प्रवक्ता नियुक्त कर दें…जो मुहिम की लाइन हो, बस उसी पर बोला जाए…

4…स्वामी रामदेव जैसे ‘शुभचिंतकों’ से सतर्क रहें…शांतिभूषण जी और प्रशांत भूषण को साथ कमेटी में रखे जाने को लेकर जिस तरह रामदेव ने आपको कटघरे में खड़ा किया, वैसी हिम्मत तो सरकार ने भी नहीं दिखाई…स्वामी रामदेव को बताया जाए कि शांतिभूषण वो शख्स हैं जिन्होंने ज्यूडिशियरी में भ्रष्टाचार को लेकर सीना ठोक कर कहा और खुद को सज़ा देने की चुनौती तक दे डाली…और उनके बेटे प्रशांत भूषण ने जनहित के मुद्दों पर जितनी क़ानूनी लड़ाई लड़ी  है, उसकी भी देश में ढूंढे से मिसाल नहीं मिलती…अब ऐसे लोगों के कमेटी में होने पर सवाल उठाने वाला कैसे आपका शुभचिंतक हो सकता है….

5…आपसे प्रधानमंत्री बनने के बारे में पूछे जाने पर आपने कहा कि मैं बाहर रह कर जो बेहतर काम कर सकता हूं वो प्रधानमंत्री बने रह कर नहीं कर सकता…ऐसे में सरकार की ओर से सवाल किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री बनने की चुनौती इतनी मुश्किल है तो फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मजबूरी को भी समझा जाना चाहिए…

6…ये वक्त बड़ा नाज़ुक है…क्या ये अच्छा नहीं कि इस वक्त बयानबाज़ी की जगह सारा ध्यान लोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने में लगाया जाए…

7…क्या ये संभव नहीं कि आपकी टीम के सहयोगियों और मुहिम से जुड़ने वाले हर नागरिक से ये शपथ दिलवाई जाए कि वो न जीवन में कभी रिश्वत किसी से लेंगे और न ही किसी को देंगे…खुद या अपने घरवालों की खातिर न ही किसी अनैतिक कार्य को बढ़ावा देंगे…उलटे जहां ये सब होता देखेंगे, वहां चुप नहीं बैठेंगे बल्कि पुरज़ोर आवाज़ में उसका विरोध करेंगे…

8…कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि ये भ्रम नहीं पालना चाहिए कि लोकपाल बिल से देश की तस्वीर में ज़्यादा बदलाव होगा…लोकपाल बिल लोगों को तालीम, अस्पताल, रसोई गैस नहीं दे देगा…क्या कपिल सिब्बल से आपकी ओर से साफ सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि जब आपकी ये सोच है तो फिर इतनी मगज़मारी की ज़रूरत ही क्या है…और लोगों को आज़ादी के 63 साल बाद भी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल सकीं तो इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है…क्या कांग्रेस नहीं जो पांच दशक से भी ज़्यादा तक केंद्र में हुकूमत में रही…

9…ये सवाल अरविंद केजरीवाल को लेकर है…मैं आरटीआई कानून के वजूद में आने के लिए सबसे ज़्यादा योगदान अरविंद केजरीवाल का ही मानता हूं…उनका बहुत सम्मान करता हूं…लेकिन अतीत में उनका एक कदम मुझे आज भी कचोटता है…2009 में अरविंद केजरीवाल ने आरटीआई में विशिष्ट योगदान देने वालों को सम्मान देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया था…लेकिन सम्मान जिन्हें दिया जाना था, उन नामों को छांटने के लिए जो नौ सदस्यीय कमेटी या जूरी बनाई गई थी, उसमें एक नाम ऐसे अखबार के संपादक का था जिस अखबार पर चुनाव में पेड न्यूज के नाम पर दोनों हाथों से धन बटोरने का आरोप लगा था…पेड न्यूज यानि भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता, बड़े बड़े से बड़ा अपराधी भी चाहे तो पैसा देकर अपनी तारीफ में अखबार में खबर छपवा ले…दिवंगत प्रभाष जोशी जी ने उस वक्त अरविंद केजरीवाल को आगाह भी किया था कि ऐसे लोगों को कमेटी में न रखें…लोगों में क्या संदेश जाएगा कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले ही तय करेंगे कि आरटीआई अवार्ड किसे दिया जाए…उस वक्त केजरीवाल जी ने सफाई दी थी कि दबाव की वजह से ये करना पड़ा…ऐसे में क्या गारंटी कि भविष्य में फिर दबाव में ऐसा ही कोई फैसला न लेना पड़ जाए…


10…बड़ी मुश्किल से लोगों में आपके ज़रिए ये भरोसा जगा है कि सूरत बदली जा सकती है…आपकी एक आवाज़ पर करोड़ों लोग घरों से बाहर आ सकते हैं…इस आवाज़ को लोग देववाणी समझने लगे हैं…ये देववाणी हमेशा देववाणी ही रहे, आपके साथी हमेशा संदेह से परे रहें, यही मेरी उम्मीद है और यही मेरा भविष्य भी…

देखिए कैसी विडंबना है मुझे अपनी बात को खत्म करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कहे शब्दों को ही कोट करना पड़ रहा है… “Julius Caesar’s wife must be above suspicion.”