अन्ना इफैक्ट : अपनी अक्ल भी लड़ाइए…खुशदीप

कम से कम मैं ये नहीं मान सकता कि जनलोकपाल या लोकपाल के आते ही देश में रामराज्य आ जाएगा…न ही अन्ना के इस भरोसे को मान सकता हूं कि देश से पैंसठ फीसदी भ्रष्टाचार मिट जाएगा…भ्रष्ट से त्रस्त लोगों को इस वक्त सुनने में चाहे सब बड़ा अच्छा लग रहा हो लेकिन व्यावहारिकता के पैमाने पर तौला जाए तो ये मुमकिन नहीं है…ऐसे में ये सवाल पूछा जा सकता है कि क्या फिर हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहे…

अपनी बात को और साफ़ करने के लिए आपको एक तस्वीर दिखाता हूं…देश की अदालतों में कितने मुकदमे फैसले के इंतज़ार में पड़े हैं…31 दिसंबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट में 54,562 , इक्कीस हाईकोर्टों में 4,217,309 और निचली अदालतों में 27,953,070 यानि देश भर में 32,225,535 मुकदमे फैसले का इंतज़ार कर रहे थे…आज की तारीख से मान लिया जाए कि एक भी मुकदमा और नया नहीं आएगा तो इन सभी मुकदमों का निपटारा होने में डेढ़ सौ साल लग जाएंगे…

अब इस तस्वीर को देखने के बाद फिर आइए जनलोकपाल (मैं मान कर चल रहा हूं कि अन्ना के दबाव से जनलोकपाल बिल ही पास होगा) पर…देश में कहावत मशहूर है सौ में निन्नयानवे बेइमान, फिर भी मेरा भारत महान…सोचिए अगर सभी भ्रष्टों को घेरे में लेना है तो जनलोकपाल के लिए कितना बड़ा तामझाम फैलाना होगा…जाहिर है जनलोकपाल के दस सदस्य सुपरमैन तो होंगे नहीं जो पलक झपकते ही सब शिकायतों में दूध का दूध और पानी का पानी करते चलेंगे….अब जनलोकपाल के पास प्रधानमंत्री तक को औकात दिखा देने की ताकत होगी तो उसका चौबीस कैरेट सोने जैसा खरा होना भी ज़रूरी होगा…साथ ही कानूनन तौर पर भी उसका जीनियस होना बहुत ज़रूरी होगा…चलिए मान लीजिए ऐसा व्यक्ति मिल भी गया, क्या गारंटी उसके मातहत काम करने वाले भी सब वैसे ही होंगे…

अब मेरे एक सवाल का जवाब दीजिए…कौन सा ऐसा अपराध है जिससे निपटने के लिए देश के मौजूदा क़ानूनों में प्रावधान नहीं है…प्रधानमंत्री से लेकर संतरी तक कौन सा ऐसा शख्स है जो मौजूदा क़ानूनों के दायरे में आने से बच सकता है…समस्या क़ानून की नहीं है, समस्या क़ानून के अमल की है…अगर इन्हीं क़ानूनों का सही ढंग से अमल किया जाए तो सब कुछ खुद ही सुधर जाएगा…इसके लिए मज़बूत इच्छाशक्ति वाली ईमानदार सरकार का होना ज़रूरी है…वो तभी बनेगी जब हम अच्छे लोगों को चुनकर संसद में भेजेंगे…मैं किसी पार्टी का समर्थक नहीं हूं….बीजेपी में मैं अटल बिहारी वाजपेयी को पसंद करता हूं…लेफ्ट में सोमनाथ चटर्जी का कायल हूं…तृणमूल की ममता बनर्जी पर मैं भरोसा करता हूं…जिस तरह अन्ना की बेदाग ईमानदारी को कोई खारिज नहीं कर सकता, इसी तरह मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत ईमानदारी, योग्यता, भलमनसाहत और अच्छे कामों को भी एक दिन में खारिज नहीं किया जा सकता…मैं यहां इन लोगों का नाम इसलिए ले रहा हूं कि राजनीति में भी सब बुरे नहीं है…अच्छे ही लोगों को चुनिए, चाहे वो किसी भी पार्टी में क्यों न हो, किसी भी फील्ड में क्यों न हों…सब कुछ अपने आप सुधरता चलेगा…

हम भारतीयों की एक आदत है जो अपने पास होता है, उससे संतोष नहीं होता…इसलिए नया कुछ जोड़ने की ओर हमेशा ताकते रहते हैं…ऐसा ही कुछ जनलोकपाल को लेकर है…एक ही शख्स, एक ही संस्था में सारे अधिकार सीमित कर देना क्या इस देश के लिए श्रेयस्कर होगा…क्या इस बात पर भी हमें गंभीरता से नहीं सोचना चाहिए…

मैं भ्रष्टाचार से देश को सौ फीसदी मिटाने का कट्टर समर्थक हूं…मार्च-अप्रैल में मैंने ब्लॉग पर अन्ना के समर्थन के लिए जो मुझसे बन सका था, मैंने किया था…लेकिन इस दौरान ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने मुझे और भी बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया…ये वक्त अन्ना पर अंधश्रद्धा का नहीं है…ये वक्त हर भारतीय के अपने अंतर्मन में झांकने का है…ये सोचने का है कि सिवा अपना फायदा सोचने के इस देश के लिए क्या किया..गांधी डर से किसी को नहीं बदलते थे…वो इनसान को अंदर से बदलने की कोशिश करते थे…जनलोकपाल आखिर कितनों पर डंडा चलाएगा…क्या गारंटी की वहां भी जुगाड़ू बचने का रास्ता नहीं निकाल लेंगे…ज़रूरत है आज इस तरह बदलने की…सौ में से एक बेइमान, इसलिए मेरा भारत महान…और ये तभी होगा जब सब खुद अपने को बदलेंगे…अन्ना जैसे ईमानदार हो जाएंगे…तब जो रास्ता निकलेगा वही फिर भारत को सोने की चिड़िया बनाने की ओर ले जाएगा…बाकी सारी बातें मेरी नज़र मे मृगतृष्णा हैं…

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राजन
13 years ago

@अंशुमाला जी,
बहुत बढिया.

अन्तर सोहिल

जुगाडू उसमें भी जुगाड निकाल लेंगे, लेकिन 100% ना सही 5-10% फर्क तो जरूर पडेगा डंडे से।
मौजूदा कानून कैसे हैं अंशुमाला जी की टिप्पणी में स्पष्ट है। डॉO दराल जी की बात भी दोबारा से पढें।
आप पूरी संसद को बदलना चाहते हैं, क्या इतना आसान है। कितने वर्ष लग जायेंगें एक-एक ईमानदार आदमी ढूंढ कर सांसद बनाने में??? और जो आज भी अच्छे राजनीतिज्ञ हैं उन्हें कैसे एक पार्टी में लाया जा सकता है? बदलाव तो आंदोलनों से ही होगा। शायद इस आंदोलन से भी कोई नयी पार्टी उभर आये।

आपकी इस बात से 100% सहमत कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिये हरेक देशवासी को खुद को सुधारना होगा।

प्रणाम

प्रवीण पाण्डेय

ईमानदारी के स्तम्भपुरुष हमारे पास हैं, उनका प्रभाव समाज पर क्यों नहीं पड़ पा रहा है?

Gyan Darpan
13 years ago

अंधश्रद्धा खत्म कांग्रेसी एजेंडा शुरू 🙂

Unknown
13 years ago

खुशदीप जी,आपने दुखती राग पे हाथ रख दिया लोग अब भी कहने से नहीं चूकते की इनसे तो अग्रेज ही अच्छे थे, परतंत्र थे मगर अनुशाशन तो था, आज न अनुशासन है न शासन, चौराहों को सबसे आगे निकलने की होड़ में जाम लगाते लोग, बिजली की कमी को रोते बिजली चुराते लोग, जेब गरम कर अपना काम इसी देश के लोगों ने ही शुरू किया है ना . सच पूछें तो डंडे की भाषा ही समझते है हम . रफ़्तार रोकने के लिए जैसे स्पीड ब्रेकर जरूरी हैं वैसे ही जन लोकपाल भी जरूरी है निरंकुशों के लिए. सामने कोई डर, कोई भय दिखना चाहिए लंबरदारों को भी. अन्ना से जुड़े अपने विचारों के साथ . जय हिंद

Amit Chandra
13 years ago

अंशुमाला जी की बातों से पुरी तरह सहमत।

डॉ टी एस दराल

खुशदीप भाई , सवाल यह नहीं है कि कितने कामयाब होंगे । सवाल यह है कि किसी ने तो शुरुआत की , आवाज़ उठाई भ्रष्टाचार के विरुद्ध ।
सज़ा से ज्यादा सज़ा का डर काम करता है । बेशक भ्रष्टाचार के मुकदमों में भी समय लग सकता है लेकिन इस विचार मात्र से ही भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है । आपातकालीन के दौरान यही देश बड़ा नियमपूर्वक और अनुशासनपूर्वक चला था । तब भी आम आदमी को जेल नहीं भेजा गया था । बस एक डर था कि कोई नहीं बच सकता ।

कभी कभी लगता है कि इससे अच्छा तो इमरजेंसी में ही था । कम से कम दफ्तरों में कम तो सुचारुपूर्ण हो रहे थे ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

अन्ना जी को ताकत देना, लोकपाल को लाने की।
आज जरूरत है जन-जन के सोये सुमन जगाने की।।

सञ्जय झा
13 years ago

paripakwa post 100% sahmat……..

lekin, veerji….suruati tilissim ko torne ke liye ye 'chor-sipahi' ka khel jaroori hai………………..

bajariye 'sureesh chiplunkar' ke 'abhi gard-gubar ki tah baithne diya jai phir parde ke piche ka asal
chehra dikhega' ………..

and now wait & watch

pranam.

anshumala
13 years ago

खुशदीप जी
देश के कानून कैसे है आप प्रधानमंत्री, मंत्री के भ्रष्टाचार की शिकायत सी बी आई से कर सकते है किन्तु सी बी आई खुद प्रधानमंत्री के मातहत है , हर महकमे का अपना एंटी ब्यूरो सेल है किन्तु वहा पर काम करने वाले उसी महकमे के लोग है , जज पर कोई आरोप लगता है तो एक उच्च जज को ही उसके खिलाफ जाँच करने की इजाजत देनी पड़ती है , और वो ये आदेश कब देता है जब आरोपी जज पांच साल बाद रिटायर हो जाता है , पुलिस स्टेशन में पुलिस के खिलाफ ही मामला दर्ज कारवा सकते है एक बार दर्ज कारवा के दिखाइये मान जायेंगे | ये है हमारे देश का वर्तमान कानून क्या आप को लगता है की हम इस कानून के रहते देश को भ्रष्टाचार मुक्त कर लेंगे | कल सह् नावाज जी ने एक दूसरे ब्लॉग से सामग्री ला कर बताया की महाराष्ट्र में कब से लोकायुक्त है वहा कोई फर्क नहीं हुआ पर वहा ये भी लिखा था की अब तक महाराष्ट्र में जो भी लोकायुक्त हुए है वो कोई ना कोई सरकारी अधिकारी ही थे तो आप को लगता है की वो अपनी ही सरकार के खिलाफ काम करेंगे क्योकि उनको चुनने वाले वही था जिन पर आरोप लगते है | आप कर्णाटक को देखीये जहा पर एक पूर्व जज लोकायुक्त ने वो काम कर दिया जो पुरा कर्नाटक का विपक्ष , राज्यपाल और केंद्र सरकार मिल कर भी लाख तिकड़म करने के बाद नहीं कर सके वो था भ्रष्ट मुख्यमंत्री को बदलना | क्या आप के ये बदलाव बेकार का लगता है क्या ये बदलाव आप को आशाजनक नहीं लगता है | माना की दूसरे दिन से व्यवस्था नहीं बदल जाएगी किन्तु व्यवस्था को बदलने के साधन तो होंगे ना वो उसे धीरे धीरे ही सही बदलेंगे | ऐसा सुप्रीम व्यक्ति आयेगा कहा से क्या टी एक शेषन से पहले आम आदमी जनता था की ये चुनाव आयोग किस बला का नाम है , हेगड़े से पहले कोई जनता था की ये लोकायुक्त क्या बला है , किरण बेदी ने दिल्ली के ट्रैफिक , और तिहाड़ को क्या बना दिया कोई और क्यों नहीं कर सका , कालम के आलावा कोई राष्ट्रपति सभी का आदर्श क्यों नहीं बना सका ये लिष्ट काफी लंबी है जैसा की आप ने कहा की हर राजनीतिज्ञ बेईमान नहीं होता है उसी तरह सौ में से एक तो ईमानदार है ना जब उसे व्यवस्था की बागडोर देंगे तो वो कई चीजे बदल सकता है | निराशावादी बन कर ये कहना की इस देश का कुछ हो ही नहीं सकता है यहाँ कुछ बदल ही नहीं सकता है अच्छा है की जो नई व्यवस्था आ रही है उसके कमजोर पक्षों को और मजबूत करने में अपना सहयोग दिया जाये जो आज लीडर बने है उन पर इतना दबाव बनाया जाये की वो चाह कर भी अपने रास्ते से हट ना सके जनता को ठग ना सके ना की रेस से बाहर खड़े हो कर सभी पर फबत्तिया कासी जाये और कहा जाये की कुछ नहीं हो सकता है |

Unknown
13 years ago

duniya kare swaal to monu kis kis kojawab de………….

jai baba banaras……

DR. ANWER JAMAL
13 years ago

ख़ुशदीप जी ! आपने एक सही बात को बहुत सलीक़े से उठाया है ठीक ऐसे ही जैसे कि हमने भी टिप्पणियों की क़िल्लत से जूझ रहे लोगों की समस्या को उठाया है और इसकी गहराई को समझने के लिए एक ऐसी अक्ल चाहिए जिस तक पंजाबी लस्सी ज़रूर पहुंची हो। अगर आपने ऐसी लस्सी पी हो तो कृप्या इस लेख को ज़रूर देखें –
डिज़ायनर ब्लॉगिंग में रामबाण है ‘हनी बी तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (27)

Unknown
13 years ago

नि:सन्देह ऐसा कोई अपराध नहीं है जिससे निपटने के लिए हमारे देश में कानून न हो….सवाल है उन कानूनों के इमानदारी और निष्ठा से पालन का .

खुशदीपजी ! सही अवसर पर बहुत सटीक बात अपने कही….अंधश्रद्धा किसी के लिए भी नहीं होनी चाहिए परन्तु समस्या ये है कि आम पब्लिक जो रिश्वतखोरी व अन्य प्रकार के भ्रष्टाचार से त्रस्त है वह निजात चाहती है इस सड़ी गली व्यवस्था से…….उसे कोई मतलब नहीं है भाजपा से, उसे कोई मतलब नहीं है कांग्रेस से और उसे कोई मोहब्बत नहीं है रामदेव या अन्ना से . उसे तो मतलब है अपनी घर गृहस्थी से और अपने देश से……..किसी भी तरह देश का भला हो और जीवन सरल हो जाये, इसी उम्मीद में वह कभी गांधी का, कभी जेपी का, कभी वीपी का तो कभी अन्ना का साथ देने निकल पड़ती है
ईश्वर करे कोई प्रयास सफल हो……..

जय हिन्द !

Satish Saxena
13 years ago


अन्ना के परिचय के बाद, देश में जहाँ देखो बच्चों की जान तक लेने वाला, मिलावटी सामान और
नकली दवाएं बेचते दुकानदार, हाथ में नकली पट्टी बांधे भिखारी से लेकर, नौकरानी को स्नेह सहित सड़ी सब्जी और मिलावटी मिठाई देती गृह स्वामिनी तक को, टेलीविजन के नक्कालों ने चीख चीख कर देशभक्ति का पाठ पढ़ा दिया है !

पहले हमें अपने पैसे बचाने के लिए किया गया भ्रष्ट आचार त्यागना होगा !

लगता है पूरा देश भ्रष्ट हो गया है, इस समय आनंद आ रहा है उन पड़ोसियों को, जिन्हें आगे बढ़ता यह कचरा देश, रास नहीं आ रहा था !

कई महा भ्रष्ट लोग, जिनमें उच्च पदस्थ राजनेता शामिल हैं, अन्ना की मुहिम को सपोर्ट देने आगे आये हैं …

टीवी की माने तो लगता है कल से सारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा !

Satish Saxena
13 years ago

देखें करप्शन में हम कहाँ खड़े हैं ….
http://www.worldaudit.org/corruption.htm

Manish
13 years ago

एक सकारात्मक सोच !! मेरा भी यही मानना है.. लेकिन हमने जरा अलग तरीके से अपनी बात कही है…

दिनेशराय द्विवेदी

अंधश्रद्धा किसी पर भी ठीक नहीं,
खुद पर भी नहीं।
यह ज्वार यूँ ही नहीं उट्ठा है
ज्वार में किनारे से पहुँची सारी गंदगी भी है
बदलाव के लिए कशिश भी है, कोशिश भी
न जाने दिया जाए इसे व्यर्थ
जाएगा भी नहीं
कहीं कुछ तो गिरेगा
बहुत कुछ गिरेगा …

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