चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनों
चलो इक बार फिर से…
न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की,
न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से,
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों से,
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से,
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनों,
चलो इक बार फिर से…
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से,
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराए हैं,
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माझी की,
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये है,
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनों,
चलो इक बार फिर से…
तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा,
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन,
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा,
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनों,
चलो इक बार फिर से…
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शुक्रिया , इस शानदार गाने के बोल देने के लिए।
मज़ा आ गया।
सटीक ….
अभी और बहुत गीत गाये जाने बाकी हैं वैसे 🙂
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
व्यावहारिकता इसी को कहते है और समझदारी भी,वाह -वाह
अभी इतनी जल्दी कुछ मत कहिये ये घाट घाट का पनी पिए लोग होते है , फायदा दिखा तो कुछ दिन बाद गाते मिलेंगे " खुलम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों "
बहुत सोच समझ कर लिखे गये हैं ये गाने।
खुशदीप जी,
चुनाव के बाद के हालात के लिए कुछ और गाने ढूंढ़ कर रखिए
– अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो, ये बड़ी अजीब सी बात है ( किशोर कुमार – हम सब उस्ताद हैं ।
– हमसे का भूल हुई जो यह सजा हमको मिली ( अनवर – जनता हवलदार )
– सोचा था क्या हो गया, क्या हो गया ( नूरजहां – अनमोल घड़ी )
इस अफ़्साने को इस खूबसूरत मोड पर छोडने की सजा तो आखिर जनता को ही भुगतनी है. सांडो का क्या? वो तो पाला बदल लेंगे.
रामराम.
शुभकामनायें खुशदीप भाई !!
नंगपन की अब कोई हद मुक़र्रर नहीं…
सेक्युलर बन ने से तो अच्छा है की अजनबी ही बन जाये सेक्युलर का मतलब एक आंख से अँधा जिसको बस एक का ही पक्ष नज़र आता है दुसरे का साथ कुछ हो तब बोलती बंद रहती है ….
जय बाबा बनारस…
(:(:(:
pranam.
चलो इक बार फिर से
गाना तो ये भी चल रहा होगा- अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं।
bhaiya ye dono to shuru se ajnabhi hi the…….:) shayad ye ek matra photo hogi, jisme dono saath the…:)
शुक्रिया अशोक जी…
जय हिंद…
प्राण जी कहां ये कालजयी गाने और कहां आजकल का कचरा…
किसी ने सही कहा है भारतीय संगीत ने कितनी तरक्की की है…कुंदनलाल सहगल से शुरू हुआ था, बाबा सहगल तक पहुंच गया है…
जय हिंद…
सटीक निशाने पे बैठा है …..
बधाई!
कुछ कालजयी गाने तो शायद इसलिए लिखे जाते हैं कि, याद आते रहें. सुंदर सोच ..!