मक्खनी का बदला…खुशदीप

स्लॉग ओवर में आज मक्खनी का मक्खन से बदला…लेकिन पहले कुछ गंभीर बात…कौन कहता है इस देश का कुछ नहीं हो सकता…हो सकता है जनाब…जब कोने कोने से अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठती है तो ज़रूर कुछ होता है…सिस्टम पर दबाव बनता है…राजनीति नैतिकता की दुहाई देने लगती है…पुलिस और सीबीआई को गुनहगारों के खिलाफ सबूत मिलने लगते हैं…ज़ाहिर है सबूत मिलने लगते हैं तो अदालतों के फ़ैसले भी बदलने लगते हैं…

लेकिन जब दबाव नहीं होता…जनता शोर नहीं मचाती…लोकतंत्र का चौथा खंभा वॉचमैन की भूमिका सही ढंग से नहीं निभाता तो न जाने कितनी रुचिकाएं नाइंसाफ़ी की चक्की में पिस कर बेवक्त दम तोड़ती रहती हैं…समाज और देश के गुनहगारों की आंखों पर बेशर्मी का पर्दा गिरा रहता है, शरीर पर बेहयाई की चर्बी और मोटी होती रहती है…जिस तरह बिल्ली चोरी पकड़ी जाने पर आंखें बंद कर ये भ्रम पाल ले लेती है कि उसे कोई देख नहीं रहा…वैसा ही भ्रम नेता-पुलिस-नौकरशाह-अपराधी-धन्नासेठों के क़ातिल गठजोड़ को भी रहता है, लेकिन पाप का घड़ा कभी तो भरना ही होता है…

अब रुचिका गिरहोत्रा का केस ही लीजिए…एकसुर में हर तरफ से न्याय के लिए आवाज़ उठी…सीबीआई रुचिका केस को दोबारा खोलने पर विचार कर रही है…केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा रुचिका के परिवार को इंसाफ़ दिलाने की बात करने लगे हैं…गृह मंत्रालय ने पूछा है कि क्यों न गुनहगार पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर के पुलिस मेडल वापस ले लिए जाएं और पेंशन भी घटा दी जाए…

रुचिका का मामला पहला नहीं है जब लोगों के आक्रोश के बाद सरकारी मशीनरी की हरकत तेज़ हुई है…इससे पहले मॉडल जेसिका लाल और लॉ स्टूडेंट प्रियदर्शिनी मट्टू के मामलों में भी ये देखा जा चुका है…पहले उन दोनों केस में भी आरोपियों को निचली अदालत ने बरी कर दिया…लेकिन दबाव बढ़ा तो पुलिस और सीबीआई दोनों को ही फाइल दोबारा खोलनी पड़ी…

एक नज़र में जेसिका, प्रियदर्शिनी और रुचिका के केस….

जेसिका लाल

मॉडल

29 अप्रैल 1999- बार में गोली मार कर हत्या

आरोपी- मनु शर्मा

21 फरवरी 2006- निचली अदालत से मनु शर्मा बरी…पुलिस हत्या का हथियार यानि पिस्टल नहीं पेश कर सकी

मनु शर्मा के बरी होने के बाद जनाक्रोश

मनु शर्मा को बरी करने के फैसले के ख़िलाफ़ दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती

20 दिसंबर 2006

दिल्ली हाई कोर्ट ने मनु शर्मा को उम्र कैद सुनाई

फिलहाल मनु शर्मा की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित

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प्रियदर्शिनी मट्टू

क़ानून की छात्रा

23 जनवरी 1996- बलात्कार के बाद हत्या

आरोपी- संतोष कुमार

1999- निचली अदालत ने आरोपी संतोष कुमार को सबूतों के अभाव में बरी किया

जनाक्रोश के बाद सीबीआई की फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती

30 अक्टूबर 2006

दिल्लीं हाईकोर्ट ने संतोष कुमार को सज़ा-ए-मौत सुनाई

फिलहाल संतोष की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित

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और अब रुचिका को इंसाफ़ का इंतज़ार

रुचिका गिरहोत्रा

टेनिस खिलाड़ी

छेड़छाड़ की घटना- 12 अगस्त 1990

आरोपी- पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौड़

28 दिसंबर 1993- रुचिका ने खुदकुशी की

21 दिसंबर 2009- सीबीआई कोर्ट ने  6 महीने की सज़ा और 1000 रुपये जुर्माना

राठौर दस मिनट बाद ही ज़मानत पर रिहा…

फिलहाल जनाक्रोश जारी

ये तो रही तीन हाई प्रोफाइल मामलों की बात…दो दिल्ली से और एक चंडीगढ़ से…ये अच्छी बात है कि जेसिका और प्रियदर्शिनी मट्टू मामलों में बरी आरोपियों को फिर सलाखों के पीछे जाना पड़ा…और रुचिका केस में भी अब केंद्र और हरियाणा सरकार की ओर से हरकत होती नज़र आ रही है…मेरा एक सवाल और भी है…ये तीनों केस हाई प्रोफाइल थे इसलिेए जल्दी सुर्खियों में आ गए….लेकिन एक नज़र डालिए देश के दूर-दराज के गांवों-कस्बों पर…क्या वहां ऐसे अपराध नहीं होते होंगे…क्या वहां नेक्सस काम नहीं करते होंगे…करते होंगे जनाब बिल्कुल करते होंगे…लेकिन उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है…क्यों…क्योंकि वो केस दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई या अन्य किसी महानगर में नहीं होते….ऐसे ही कुछ सच्चे वाकयों का ज़िक्र मैं कुछ शोध के बाद सोमवार की पोस्ट पर करूंगा….

रुचिका की याद में ये गीत देखिए-सुनिए

चिट्ठी न कोई संदेस
जाने वो कौन सा देस
जहां तुम चले गए…

मेरे पास ई-मेल और टिप्पणियों के ज़रिेए शिकायत आई हैं कि मैं स्लॉग ओवर ज़रूर दिया करूं…लेकिन मैं सीरियस पोस्ट लिखने के बाद दुविधा में पड़ जाता हूं कि स्लॉग ओवर दूं या नहीं…लेकिन फिर सोचता हूं कि जीवन के नौ रस में करुणा, हास्य, रौद्र समेत तमाम रस साथ-साथ चलते हैं…इसलिए गंभीर पोस्ट के बाद भी हास्य रस चखा जा सकता है…

स्लॉग ओवर

मक्खन बड़े अच्छे मूड में था…मक्खनी से बोला…मैं तुझसे इतने गुस्से में बोलता हूं…दारू पीकर लड़ता हूं पर तू मुझे कभी उस अंदाज़ में जवाब नहीं देती…कितनी अच्छी पत्नी है तू….वैसे गुस्से पर काबू करने का तेरा राज़ क्या है…

मक्खनी…मैं बस टॉयलट दी सीट साफ़ कर देनी वां…(मैं बस टॉयलट की सीट साफ़ कर देती हूं…)

मक्खन…टॉयलट सीट…गुस्से पर काबू….भला ये कौन सा कनेक्शन हुआ…

मक्खनी…ओ जी, टॉयलट सीट त्वाडे टूथ-ब्रश नाल साफ़ करदी हां न…(ओ जी, टॉयलट सीट तुम्हारे टूथ-ब्रश से साफ़ करती हूं न…)

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ख़त के साथ खुद को भी भेजना…

आदर्श पति क्या होता है..

सीखना चाहते हैं तो आइए मेरे अंग्रेज़ी ब्लॉग पर…Mr Laughter

Khushdeep Sehgal
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