कहां गई वो बचपन की अमीरी हमारी,
जब पानी में अपने भी जहाज़ चला करते थे
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सिरहाने मीर के आहिस्ता बोलो,
अभी तक रोते-रोते सो गया है…
-मीर तक़ी मीर
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स्लॉग ओवर…
डॉक्टर मक्खन से…क्या प्रॉब्लम है…
मक्खन…तबीयत ठीक नहीं है मेरी…
डॉक्टर…शराब पीते हो…
मक्खन…सुबह का वक्त है, डॉक्टर…
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इसलिए मेरा छोटा पैग ही बनाना
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हा हा हा
बहुत खूब।
क्या बात है
सुख भरे दिन बीते रे भैया….. 🙂
दिन तो अभी भी कहीं नही गए जी,
पहले पानी में जहाज अब ख्वाबों में
अपने हवाई जहाज चला करते हैं.
सिरहाने बहुत जोर से बोलियेगा हजूर
सोते सोते भी शोर सुनने की आदत जो है.
वो कागज़ की कश्ती….
शीर्षक से कुछ और ही लगा था …
खैर वे भी क्या दिन थे …
वाह, अब तो रात हो गयी डॉक्टर..
HA HA HA HA HA BAHUT KHOOB…
🙂 🙂 🙂
वाह! बहुत बढिया!
पानी में ही नहीं सभी जगह राज था। अनुपस्थिति बढ़ती जा रही है।